मैंने सबसे पहले तालेब की चीप ऑप्शन खरीदने संबंधी कहानी के बारे में वर्ष 2000 में पढ़ा था। उस समय भारत में ऑप्शन में भरोसा करनेवालों के लिए यह समय मुश्किलों से भरा था।
तब से अब तक आठ साल हो चुके हैं और मैं अभी भी तालेब की चीप ऑप्शन थ्योरी में उतना ही विश्वास करता हूं, जितना पहले करता था लेकिन उनकी ही रेंडम थ्योरी पर अमल करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है,यहां तक कि मुझे इसे चुनौती देने का मन करता है।
इससे पहले भी मैं तालेब के सिध्दांत पर अपनी आपत्तियां जाहिर कर चुका हूं और मेरा मानना है कि उनके सिध्दांत पर निश्चित तौर पर बहस होनी चाहिए। सबसे प्रमुख बात जो मुझे समझ में आती है वह यह कि तालेब बाजार की विपरीत स्थितियों को मात देने संबंधी कोई ठोस उपाय की बात करते नजर नहीं आते हैं। इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि तालेब बाजार में भविष्य में पैदा होनेवाली स्थितियों का मूल्यांकन कर पाने में सफल नहीं हो पाए हैं।
उन्होंने हेज फंड के संबंध में ही सकारात्मक बातें कही हैं और बाजार में बनने वाली स्थितियों के बारे में वह सार्थक बातें नहीं बता पाएं हैं। हमलोग बाजार में कारोबार करते हुए कयासों पर ज्यादा निर्भर रहतें हैं लेकिन बाजार को मात कर देने वाली बातों से हम परहेज करते हैं। लेकिन आप मानिए कि बाजार में चल रही उठापटक को मात देने के कई उपाय हैं।
आप डाउ जोन्स और सेंसेक्स से ज्यादा का रिटर्न दे सकते हैं या आप हर एक सप्प्ताह होने वाली गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं जिसे डाउ जोन्स और सेंसेक्स भांपने में एक साल से ज्यादा का समय लगा देते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2007 में सेंसेक्स में आश्चर्यजनक रूप से उतार-चढ़ाव हुए। इनमें सबसे पहला परिवर्तन 7 जनवरी को देखने को मिला जब सेंसेक्स 13,860 अंकों पर था।
उसके बाद 11 फरवरी को इसमें चढ़ाव देखने को मिला और यह 14,538 के स्तर पर पहुंच गया और इसके तुरंत बाद इसमें 18 मार्च 2007 तक गिरावट देखने को मिली जब यह 12,430 के स्तर तक पहुंच गया। 18 मार्च 2007 को समाप्त हुए सप्ताह से लेकर 22 जुलाई 2007 तक सेंसेक्स 15,565 के स्तर तक बना रहा और उसके बाद 19 अगस्त तक इसमें थोड़ी गिरावट दर्ज की गई एवं उसके बाद 13 जनवरी 2008 तक इसमें एकतरफा चढाव देखने को मिला और यह 20,000 अंकों से उपर चला गया।
गौरतलब है कि नेट बेसिस पर बाजार हालांकि 50 प्रतिशत ऊपर गया लेकिन ग्रॉस बेसिस पर छह महीनों में यह ण77 प्रतिशत उपर तक चढ़ा जबकि 23 प्रतिशत की इसमें गिरावट दर्ज की गई। डेरिवेटिव के कारोबारी बाजार में होने वाले कुल उतार-चढ़ाव से मतलब नहीं रखते बल्कि कुल कारोबारी उतार-चढ़ाव उसके लिए ज्यादा मायने रखता है। अत: बाजार को मात देने का मतलब पूरे साल भर में सेंसेक्स में होनेवाले उतार-चढ़ाव पर नजर रखना है जोकि एक असंभव सा लक्ष्य लगता है।
लेकिन वर्ष 2007 के नेट रिटर्न में से 50 प्रतिशत तक को भी पकड़ लेना एक खरीद के लिए आसाना था और निवेशक 7 जनवरी 2007 से 13 जनवरी 2008 तक निवेश करते रहे। इन पैसिव इन्वेस्टर ने बाजार को 2007 में मात दे दी होती लेकिन वर्ष 2008 में बाजार की परिस्थितियां उन्हें मात दे रही हैं। पूरे साल के लिए इसमें 28 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
इससे एक बात जाहिर होती है कि बाजार को मात देने का कोई खास मतलब नहीं निकलता है। ऐसा कोई हेज फंड, जो कि 1975 से 2000 केबीच बाजार में रहा और जिसने 1987 की गिरावट को झेला, वह बाजार को मात देने का दावा कर सकता है। बाजार को मात देने का मतलब दोहरे और तिहरे अंकों में मिलनेवाला रिटर्न है जो कि बाजार की परिस्थितियों को भांप लेने का ज्ञान और कारोबारी कुशलता दर्शाता है।
इसका उदाहरण रॉबर्ट प्रेशर का है जिन्होंने तीन महीनों में मॉनिटर्ड ट्रेडिंग एकाउंट में 444 प्रतिशत का मुनाफा कमाया। कारोबार करना अपने आप में रिस्क उठाने के बराबार होता है, आप जब 26 से 45 साल के बीच होते हैं तो आप सक्रिय रूप से कारोबार करते हैं और तालेब ने भी यही किया। लेकिन जब बाजार का चक्र आपके जीवन चक्र पर हावी होना शुरू होता है तब हम बाजार को मात देने की कल्पना करने लगते हैं।
तालेब का दर्शन सिर्फ उन कारोबारियों के लिए नहीं है जो बाजार को मात देना चाहते हैं और साथ ही तिहरे अंकों का रिटर्न पाने की तमन्ना रखते हैं। तालेब का 1987 का जैकपॉट उनके लिए महत्वपूर्ण था जिसने कि कठिनाइयों से उनको उबारा और इसका बाजार में भविष्य में होने वाली घटनाओं के साथ कोई संबंध नहीं था। दूसरी बात कि तालेब की रेंडमनेस थ्योरी में कोई दम नहीं था।
कोई अकेले आदमी ने ही 1987 में बाजार को टूटते हुए नहीं देखा था और 2000 में एक ही नहीं कई कारोबारियों ने टेक्नालाजी का बुलबुला फूटते देखा था। इसी तरह अमेरिकी सब प्राइम संकट की मार किसी से छिपी नहीं है। रेंडमनेस आम आदमियों के लिए होती है जो यह नहीं समझते कि बाजार कैसे काम करता है। मार्केट घड़ी की सुई जैसी होता है न कि रेंडम, जैसा कि तालेब ने बताया है। बाजार में होनेवाली संभावित परिस्थितियों के बारे में भविष्यवाणी करनेवाले लोगों की बातें कई बार प्रमाणित भी हुई है।
ऐसे भी कुछ तकनीशियन थे जिन्होंने 11 सितंबर से सिर्फ दो दिन पहले शॉर्ट कॉल की आशंका जताई थी और कुछ तकनीशियनों ने 11 सितंबर के तुरंत बाद भविष्यवाणी की थी कि बाजार कभी भी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच सकता है। इसके ठीक बाद कारोबार के 21 दिनों में ही डाउ निचले स्तर तक पहुंच गया और अगले 40 कारोबारी दिनों में बाजार 11 सितंबर के स्तर से उपर पहुंच गया। तालेब की रेंडम थ्योरी कमजोर साबित होती है जो कि अचानक घटी घटनाएं, जैसे भूकंप और त्रासदी को समझ पाने में नाकाम रहती है जिसका शेयर बाजार पर खास असर नहीं पड़ता है।
अभी कुछ ही दिन पहले चीन में विनाशकारी भूकंप आया था और इसके बाद शंघाई के शेयर बाजार में कोई गिरावट दर्ज नहीं की गई, यहां तक कि 2004 के दिसंबर में आई सुनामी, जिसमें कि 11 देशों के करीब 225,000 लोग मारे गए और इसके बाद भी विश्व के शेयर बाजारों में उछाल देखा गया। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की हत्या हो जाना भी अचानक घटी घटनाओं में शामिल होती है जिसका शेयर बाजार से ज्यादा लेना देना नहीं होता है।
बाजार की अनिश्चिताओं का पता लगाया जा सकता है और यह अचानक घटी घटनाओं की तरह नहीं होती है जिसका शेयर बाजार पर असर पड़ भी सकता है और नहीं भी। तीसरी बात यह कि हाल के ब्रोकर इवेंटिवनेस और ट्रेडिंग वॉल्यूम के लिए मारामारी से जिलियन लेवरेज्ड प्रोडक्ट्स में काफी बढ़ोतरी हुई है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि बाजार में गिरावट की अपेक्षा उछाल ज्यादा देखा गया। हां, एक बात जरूर हुई कि कुल ऑप्शन का 85 प्रतिशत बिना किसी खास प्रदर्शन के समाप्त हो गया।
अगर आप चीप ऑप्शन खरीद रहे होते हैं तो 1987 की तरह ही अनिश्चतता आपको अमीर बना सकती है। अनिश्चितता का माहौल चक्रीय होता है और 2007 में शुरू हुई यह अनिश्चितता 25 वर्षीय है जो कि 2015 के मध्य में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच सकती है। इसका अर्थ यह निकलता है कि चीप ऑप्शन खरीदने की संभावनाएं कम होती जा रही हैं लेकिन इनको खरीदना फायदेमंद जरूर है।
ऑप्शन ढेरों संभावनाएं लिए रहते हैं और यह अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। लांग ऑप्शन के होने पर हमें काफी मदद मिलती है क्योंकि ऑप्शन में गिरावट होने के कई खतरे हैं जिसका बहुत बड़ा असर हो सकता है। हम अभी भी बाजार को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हैं और निफ्टी का अगला लक्ष्य 4000 अंकों पर देख रहे हैं।
जून के अंत में हम इंटरमीडिएट बॉटम आने की उम्मीद कर रहे हैं लेकिन बाजार के ऐसे माहौल में कोई भी कयास लगाना इतना आसान भी नहीं होता और किसी भी कारोबारी के लिए मुनाफा कमाने के लिए केवल चीप ऑप्शंस का सहारा लेने के अलावा भी कुछ करना होता है। उसे केवल वैल्यू के आधार पर नहीं बल्कि अपनी प्रेडिक्टिव नॉलेज यानी बाजार को पढ़ने के अपने अनुभव का इस्तेमाल ज्यादा करना होता है।
(लेखक ऑर्फेस कैपिटल्स के सीईओ हैं)