कोलकाता की बेंटिन्क स्ट्रीट में सड़कें अभी भी उपनिवेश काल की हैं और यहां बसे चीनी निवासी आज भी वेली वेली फाइन जूते बेचते हैं।
इस इलाके में एक व्यक्ति, जो तीस वर्ष से ज्यादा का है, ने अपने पुश्तैनी घर को एक दफ्तर में बदल दिया है और वह भीड़ भाड़ वाले बाजार के शोर से ऊपर उठ गया है, इस सपने के साथ कि वह सबसे कम समय में जितना हो सके, सबसे अधिक मात्रा में इस्पात बनाएगा।
तो आप अगर ऐसे व्यक्ति को खोज रहे हैं जो बदले मे रुपये का लाभ न उठाते हुए आपको अमीर बनने में मददगार हो तो संभवत: वह शख्स आदित्य जाजोदिया है और उनकी कंपनी है जय बालाजी इंडस्ट्रीज। माथे पर बल मत डालिए।
मैंने भी जब पहली बार उनके बिक्री लाभ के आंकड़े देखे तो चौंका मैं भी था, क्योंकि यह शख्स कह रहा था कि वह अगला जिंदल होगा। मैंने बीच में दखल दिया कि उन्होंने अपने समूह की कंपनी जय बालाजी में मिला दिया है और शेयरधारियों की बचत नष्ट कर दिया है। मैंने कहा कि उन्होंने 16 हजार करोड़ रुपये के विस्तार की घोषणा और मुख्यमंत्री से फीता कटवाकर विज्ञापनी तरीका अपनाया है जबकि उनका कारोबार 2000 करोड रुपये का भी नही है।
ठीक वैसे ही जैसे कोई डूबता बैंक पोस्ट डेटेड चेक दे। अब मैं एक कॉलम लिख रहा हूं कि मैं क्यों अब पहले से तय छुट्टियां रद्द कर रहा हूं और कुछ कीमती बचत अपने पुराने प्रिय जय बालाजी शेयर में डाल रहा हूं। इस्पात का कारोबार पूंजी की दरकार वाला है। इसमें सही तरीके से उचित जगह पैसे लगाने के चार तरीके हैं (पुराने जमाने में इसे सोने की खदान माना जाता था) ।
पहला, वह पैमाना तय करना जिससे कि फिक्सड लागत को सक्षमता तथा कारगर तरीके से हासिल किया जा सके, विशिष्ट तकनीक विकसित करान जिससे सचमुच आप सस्ती लागत पर इस्पात बनाएं, प्लांट को कम पूंजी लागत पर खडा करना जिससे कि आप हमेशा इसका फायदा मिले और यह सब इतनी तेजी से करना कि प्लांट लगाने की लागत घट जाए। जय बालाजी शायद सारी बातों पर खरी उतरती है।
चार साल पहले जय बालाजी महज एक लाख टन सालाना की कंपनी थी। सिर्फ 42 महीने में यह 12 लाख टन की कंपनी बन गई। चार साल पहले कोई भी इसको टीवी की मनोरंजन कंपनी की भांति मानकर गलतफहमी का शिकार हो सकता था, पर आज यह भारत की आठ बड़ी इस्पात कंपनियों में शामिल है।
चार साल पहले कई समूहों ने इस्पात उद्योग में उतरने के लिए बड़ी बड़ी घोषणाएं की थीं पर आज उनमें से सिर्फ दो ने ही वास्तव में अपनी घोषणा पर अमल किया। इनमें भी एक जय बालाजी है जिसने महज 42 महीने में 10 लाख टन क्षमता का प्लांट खड़ा कर दिया। चार साल पहले जय बालाजी ने कहा था कि वह 48 महीने के भीतर 10 लाख टन वाली पहली कंपनी बन जाएगी तब उद्योगों पर नजर रखने वालों ने कहा था – औकात। आज उसने अपना ही अनुमान 6 महीने से तोड़ दिया है।
जय बालाजी की उपलब्धि का कारण शायद उसकी ब्लास्ट फर्नेस इकाई है जिसे बनाने में 16 महीने लगते हैं। तेजी के इस्पाती माहौल में उपकरणों की सप्लाई समय पर न मिलने से इसमें और समय लग सकता है। जय बालाजी ने सिर्फ 10 महीने और 8 दिन में अपनी ब्लास्ट फर्नेस न केवल तैयार कर ली बल्कि शुरू भी कर दी।
10 महीने और 8 दिन शायद सबसे कम समय है जिसमें भारत में कोई इस्पात कारखाना बना और शुरू भी हो गया। इस परियोजना के हर चरण को न केवल समय पर बल्कि समय से पहले ही शुरू किया गया। समय भी बचा, और पैसा भी बचा।
जय बालाजी का अगला एजेंडा 1600 करोड़ रुपये का है। अगले 16 महीने में वह निम् परियोजनाएं पूरी करने की तैयारी में है- सिंटर प्लांट (जून 2008 में चालू होने की संभावना), विशिष्ट या मिश्र इस्पात (जून 2008), फेरो मिश्र (अक्टूबर 2008), पॉवर प्लांट (अक्टूबर 2008), कोक ओवेन प्लांट (जून 2009), रोलिंग मिल्स (जून 2009), पैलेट प्लांट(अप्रैल 2009) और डक्टाइल पाइप्स (सितंबर 2009)।
दूसरा तरीका ऐसा है जिसे अपनाकर इस्पात निर्माता रूझान तोड़ सकते हैं-प्लांट को इतनी कम पूंजी लागत पर लगाया जाए कि आपका प्रतिस्पर्द्धी आपके प्लांट के गेटमैन को भी तोड़ कर ले जाए। जय बालाजी ने आज के मौजूदा तीन हजार करोड़ के पैमाने के बजाय 1600 करोड़ रुपये में 10 लाख टन का एकीकृत प्लांट लगा दिया।
अनेक कारणों से यह स्थिति मुमकिन हुई है। कंपनी ने संयंत्र बनाने की जि?मेदारी ली। साथ ही परियोजनाओं को विभिन्न मॉडयूलों में बांटा, विक्रेताओं के साथ काफी मोल- भाव किया और जहां जरूरत पड़ी वहां खुद ही मॉडयूल बना लिया। जय बालाजी ने अपनी तकनीकी क्षमता का इस्तेमाल करते हुए ब्लास्ट फर्नेस की री इंजीनियंरिंग की।
जब उसे एचईजी लिमिटेड के इस्पात संयंत्र और नीलाचल इस्पात के अधिग्रहण का मौका मिला तो उसने 133 करोड़ रुपये एक मुश्त चुकाए। उम्मीद है कि यह सारा मूल्य 2008-09 की पहली छमाही में ही वापस मिल जाएगा।
इसके अलावा पैसे बनाने का एक पुराना तरीका भी है। एक ऐसे तरीके का इस्तेमाल करना जिसमें कच्चे माल और नकदी का इस्तेमाल कम किया जाता है। कंपनी टाटा मटैलिक्स के हॉट मेटल कॉस्ट पाने की राह पर है। यह उद्योग के लिए एक बेंचमार्क की तरह काम करता है। इस तरह कंपनी अपनी प्रतियोगी स्थिति को बरकरार रखना चाहती है। कंपनी को पश्चिम बंगाल में सेज स्थापित करने के लिए राज्य सरकार की प्राथमिक मंजूरी मिल गई है।
तो सवाल है कि जय बालाजी का भविष्य कैसा होगा?
अब से 6 साल में राजस्व बढ़कर 25000 करोड रुपये हो जाएगाठ्ठ ईबीआईडीटीए मार्जिन भी बढ़कर 40 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा
और उसके पास होगी लगभग 65 करोड़ की पूरी तरह बेची गई इक्विटी
इसके लिए आपको किसी कैलकुलेटर की जरूरत नही है।
(मुदार पथेरिया के इस कंपनी से हित जुड़े हो सकते हैं।)