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बीमा में अवधि का है खेल

Last Updated- December 07, 2022 | 8:04 PM IST

बीमा कंपनी से जो बेहतर चीज आप खरीद सकते हैं वो है एक बीमा पॉलिसी। हालांकि आमतौर पर हम ज्यादा लागत वाले यूलिप प्लानों की खरीद से बचा करते हैं।


इसके पीछे तर्क यह है कि किसी भी प्रकार के निवेश पर रिटर्न मिलना चाहिए। सालों से बीमा कंपनियों द्वारा टर्म प्लानों के साथ फटेहाल तरीकों से बर्ताव किया जाता रहा है। हालांकि इसमें आश्चर्य भी किसी को नही होना चाहिए क्योंकि इन कंपनियों के कुल कारोबार में यूलिप प्लानों की बहुत ज्यादा हिस्सेदारियां नही हैं।

बल्कि सीधे शब्दों में कहा जाए तो अगर आप इन प्लानों की खरीद करना चाहते हैं तो एजेंट आपको इनके बजाए दूसरे प्लान बेचने की कोशिश करेंगे यानी एक बेहद सरल प्रकार के टर्म प्लान। जहां तक टर्म प्लान की बात है तो यह बीमा की सबसे आधारभूत इकाई है जो सिर्फ लाइफ कवर प्रस्तुत करते हैं किसी प्रकार की कोई मैच्योरिटी वैल्यू वे नहीं प्रदान करते।

इसी का तकाजा है कि इसे जीवन बीमा के सबसे सस्ते प्रारूप के रूप में जाना जाता है। खासकर पॉलिसीधारक के लिए दिलचस्प बात यह बनती है कि वे लंबी अवधि हासिल होने के कारण बीमा की कुल किश्त का भुगतान करने में सफल साबित होते हैं।

मसलन एक 30 साल के व्यक्ति के लिए 50 लाख रुपये के कवर वाले बीमा का किश्तों में भुगतान करना हो तो 20 साल की अवधि में 15,000 रुपये प्रति साल की दर से रकम जमा कर सकता है। इसे और बढ़ावा देने के लिए इरडा ने हाल ही में सॉल्वेंसी अनुपात की जरूरतों में कमी की है। मालूम हो कि सॉल्वेंसी मार्जिन अनुपात बीमा कंपनियों के लिए दरकार पूंजी जरूरतों के लिए बतौर विवेकपूर्ण मानदंड की भूमिका निभाते हैं।

इन मार्जिनों से बीमा कंपनियों को यह सुनिश्चितता प्राप्त होती है कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में पैसे हैं जिससे लोगों के द्वारा दावे किए गए पैसे और उनके लाइब्लिटीज का निपटारा किया जा सकता है। सीधे शब्दों में ये पूंजी आधिक्य अनुपात यानी कैपिटल एैडीक्वेसी अनुपात के समान होते हैं। साफ तौर पर अनुमान लगाया जाए तो इसका वही अर्थ निकलेगा कि टर्म प्लानों की किश्तों में और गिरावट आनी चाहिए।

हालांकि इस वक्त केवल दो ही बीमा कंपनियों बजाज एलियांज एवं कोटक लाइफ इंश्योरेंस ने अपने किश्तों में कमी की तो हैं पर इसके भी अनुमान हैं कि दूसरी कंपनियां भी इस रास्ते की ओर मुखातिब होंगी यानी वे भी किश्तों में गिरावट लाएंगी। ये सब मिलकर बीमा खरीदारों के लिए एक मधुर संगीत या फिर मधुर वातावरण का निर्माण करते हैं या फिर करना चाहिए।

लिहाजा अगर बीमा को शुद्ध रूप से पैसा बनाने की मशीन के बजाय जोखिम हस्तांतरण या फिर जोखिमों से बचने के कवच के रूप में देखें तो यह पता चलेगा कि बीमा का मुख्य उद्देश्य परिवार की जरूरतों का ख्याल करना है मतलब यह कि पॉलिसीधारक की मौत हो जाने की स्थिति में बीमा खरीदे जाने की मुख्य वजह परिवार की जरूरतों का ख्याल होना चाहिए। यहां कुछ प्रकार के उपाय बताए जा रहे हैं जिन्हें आपके द्वारा उस स्थिति में कदम लेने चाहिए जिनमें आपके पास पहले से ही टर्म प्लान के बजाए इंडोमेंट प्लान या फिर यूलिप प्लान हों।

20 से 30 साल की उम्र के बीच: इस स्थिति में ज्यादा उम्मीद होती है कि आप अकेले और स्वतंत्र होंगे। और यद्यपि आपको इस उम्र में पॉलिसी की दरकार न हो पर इसे आप टैक्स बचाने के लिहाज से इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर बीमा रकम की कुछ किश्तें अगर जमा कर दी गईं हैं तो फिर आपपॉलिसी को समर्पित करने के विकल्प पर विचार कर सकते हैं खासकर तब जब पॉलिसी इसके लायक तैयार हो चुकी हो।

भले ही, आप पर आश्रित हों आप पॉलिसी समर्पण के विकल्प पर विचार कर सकते हैं क्योंकि विकल्प के रूप में आपके पास टर्म प्लान हैं जो कम ही किश्तों पर ज्यादा पैसे दे सकते हैं। इससे इस प्रकार आपके परिवार को ज्यादा बड़े जोखिम को भी कवर किया जा सकता है। फिर बाकी बची रकम को म्युचुअल फंडों में निवेश करें।

35 से 45 के उम्र वाले: आप तेजी से अपने करियर के बीच वाले पड़ाव की ओर अग्रसर हैं। ज्यादा संभावना है कि आप शादीशुदा होंगे और बच्चे होने के साथ साथ आप पर माता पिता समेत अन्य प्रकार की वित्तीय लाइबिलिटीज (जिम्मेवारियां) मसलन होम लोन एवं ऑटो लोन होंगे। लिहाजा इस उम्र के पड़ाव के दौरान जीवन बीमा की जरूरत सबसे ज्यादा होती है।

जाहिर तौर पर यह बेहद अहम है कि आपके पास पर्याप्त मात्रा में लाइफ कवर हो क्योंकि ऐसे कई लोग हैं जो बतौर किश्त लाखों रुपये अदा करते हैं पर फिर भी लाइफ कवर कम ही रहता है। इसके पीछे साधारण सी वजह यह है कि लाखों रुपये अदा करने वालों का ज्यादा ध्यान कर को बचाने से लेकर निवेश पर मिलने वाले रिटर्न पर होता है।

लिहाजा वे निवेशजनित प्लान खरीदते हैं जिसके जरिए वे कर बचाते हुए अवधि पूरी होने पर रिटर्न पा लेते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए वो कम कवर के लिए भारी किश्तें देना बंद कर देते हैं। इस परिदृश्य में आप अपनी संपूर्ण लाइबिलिटीज का विश्लेषण करें और उसके अनुरूप टर्म प्लान की खरीदारी करें। एक बार जैसे ही यह काम पूरा हो जाए आप अपनी पारंपरिक पॉलिसियों को सरेंडर यानी समर्पित करना शुरू कर दें।

खासकर लंबी अवधि वाले प्लानों की सरेंडरिंग तो करें ही करें। साथ ही जिसकी ज्यादा किश्तें जमा करनी हों। हालांकि जिन किश्तों की 60 फीसदी रकम का भुगतान किया जा चुका हो उसे बनाए रखें।

45 से 55 साल वाले: इस उम्र के लोग आमतौर पर अपनी पॉलिसी अवधि की समाप्ति की कगार पर होते हैं।  लिहाजा आपके लिए बेहतर यह होगा कि आप पॉलिसी को बरकरार ही रखें कयोंकि आपके पास खोने के लिए बहुत ज्यादा नही है।

साथ ही कई ऐसे प्लान भी हैं जिनमें अवधि पूरे होने के वक्त किसी प्रकार के कोई प्रीमियम यानी किश्तों के भुगतान करने की जरूरत नही होती। तब जब एक खास अवधियों के दौरान प्रीमियम की रकम अदा कर दी गई हो। इस अवधि तक इसके भी आसार होते हैं कि बड़ी मात्रा में परिसंपत्तियां एकत्रित हो गई हों।

और चूंकि उम्र के इस पड़ाव पर किसी अन्य प्रकार प्लान खासे खर्चीले साबित होंगे सो आपकी जेब पर भारी बोझ न पड़े इसके लिए बेहतर यह रहेगा कि आप टर्म प्लान की ही खरीद करें। बहरहाल अगर आपने हाल ही में किसी निवेशजनित पॉलिसी की खरीद की है तो बेहतर रहेगा कि आप उसे छोड़ दें क्योंकि इस पडाव पर प्रीमियम काफी ज्यादा होगा।

First Published - September 7, 2008 | 10:02 PM IST

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