कुंदापुर वमन कामत के बिना आईसीआईसीआई बैंक की कल्पना करना किसी के लिए भी मुश्किल होगा। के वी कामत पिछले 13 सालों से आईसीआईसीआई बैंक को अपनी सेवा दे रहे थे।
इस बीच अगर उन्हें सबसे ज्यादा मशक्कत करनी पड़ी है तो वह साल 2008-09 ही था। यह वह साल था जब क्रेडिट बाजार चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया था और ब्याज दरों में सबसे ज्यादा अस्थिरता देखी जा रही थी।
अनिश्चितता के ऐसे माहौल में कामत ने आईसीआईसीआई बैंक की छोटी-बड़ी सभी कमजोरियों के बारे में बताया था। मालूम हो कि एक समय ऐसा जब आईसीआईसीआई बैंक की खुदरा विकास से जुड़ी रणनीतियां काफी आक्रामक थीं और जो आगे चलकर बैंक के लिए कुछ ज्यादा ही आक्रामक व घातक साबित हुई।
बैंक की आक्रामक रणनीतियों की वजह से नॉन परफॉर्मिंग लोन (एनपीएलएस) धराशायी हो गई और साथ ही मुनाफे के ग्राफ में भी गिरावट दर्ज की गई। आईसीआईसीआई बैंक के नए प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी चंदा कोछड़ ने इस ‘ब्रेकर’ को हटाने का फैसला किया और कहा कि कम से कम अगले एक साल तक आईसीआईसीआई अपनी बैलेंस शीट में कोई बढ़ोतरी नहीं करेगी।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऋण अदायगी से प्राप्त की गई करीब 30,000 करोड़ रुपये की राशि से बैंक उन लोगों को ऋण देना जारी रखेगी जो ऋण लेना चाहते हैं।
बदलाव की बयार
चंदा कोछड़ ने जो कदम उठाया है उसे शायद आज के समय में एक सही फैसला कहा जा सकता है। मार्च 2009 तिमाही के आंकड़े पहले से ही एक बदलाव का लक्षण दिखा रहे हैं। हालांकि बैंक के शुध्द मुनाफे में 35 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कमाई की गुणवत्ता में काफी सुधार देखने को मिला है।
आईसीआईसीआई बैंक के शुध्द ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में 20 बेसिस प्वाइंट्स का इजाफा देखने को मिला है। यह इजाफा वास्तव में लगातार 2.6 फीसदी के हिसाब से हुआ है। यह इजाफा इसलिए भी देखने को मिला है क्योंकि बैंक ने थोक बाजार में कम उधारी की है।
इसके अलावा बैंक के चालू और बचत खातों (सीएएसए) के सस्ते शेयर की वजह से 130 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी भी देखने को मिली है। यह बढ़ोतरी वास्तव में लगातार 28.7 फीसदी के हिसाब से देखने को मिली है। कोछड़ ने बताया कि अब उनका मुख्य ध्यान कम लागत पर पैसे जुटाने का होगा।
लिहाजा इसके लिए बैंक की मौजूदा 1,400 नेटवर्क में से करीब 600 शाखाओं को जोड़ जाएगा। कोछड़ यह भी उम्मीद जता रही हैं कि इस साल के अंत तक चालू और बचत खातों के आंकड़ों में 33 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।
वास्तव में, आईसीआईसीआई बैंक का मार्जिन उसके समकक्ष बैंक एचडीएफसी बैंक के मुकाबले काफी नीचे जा रहा था। मालूम हो कि एचडीएफसी बैंक का शुध्द ब्याज मार्जिन 4.2 फीसदी और साथ ही चालू और बचत खातों का आंकड़ा सबसे ज्यादा 44 फीसदी पर है।
कांटे की टक्कर!
आईसीआईसीआई और एचडीएफसी के बीच के आंकड़ों को देखकर मुंबई का दलाल स्ट्रीट भी आश्चर्यचकित था। हालांकि शेयर बाजार का यह मानना था कि आईसीआईसीआई पर छाई काली परछाई का निपटारा तभी हो सकता है जब बाजार में थोड़ी स्थायित्व देखने को मिले।
ऐसे देखा जाए तो मार्च तिमाही में बैंक के पास जितना नॉन परफॉर्मिंग लोन (एनपीएलएस) था, वह कमोबेश दिसंबर 2008 तिमाही के स्तर के बराबर ही था। मालूम हो कि मार्च तिमाही में बैंक का एनपीएलएस 1,250 करोड़ रुपये था। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बैंक अपनी परिसंपत्तियों को पुनर्गठित कर सकती है।
परिसंपत्तियों का पुनर्गठन खास तौर से कार्पोरेट लोन में किया जा सकता है। बैंक का ग्रॉस एनपीएलएस 4.14 से बढ़कर 4.32 तक पहुंच गया है और यह थोड़ी बढ़ोतरी रिटेल खातों में ढिलाई की वजह से हुई है। यह आशंका जताई जा रही है कि परिसंपत्ति गुणवत्ता में और अधिक गिरावट हो सकती है।
विकास से दो हाथ
इन चुनौतियों से दो-दो हाथ करने की वजह से आईसीआईसीआई की जो गति थी वह थोड़ी मंद हो गई है। मार्च 2009 तिमाही में बैंक का सालाना लोन बुक अनुबंध 3.2 फीसदी था। इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा साल में बैंक की परिसंपत्तियों में सिर्फ 8-10 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
सौभाग्य से, आईसीआईसीआई के पास पर्याप्त पूंजी मौजूद है और वह क्रेडिट मांग के जरिए फायदा उठा सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बैंक की अच्छी छवि अभी भी बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बैंक का लोन बुक करीब 25 फीसदी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कारोबार में बहुत ज्यादा फायदा नहीं होने की वजह से बैंक के लोन बुक में कमी आ सकती है। मालूम हो कि रिटेल पोर्टफोलियो सिकुड़ने की वजह से आईसीआईसीआई बैंक की शुल्क आय पर प्रतिकूल असर पड़ा है और यह गिरावट सालाना 30 फीसदी के हिसाब से हुआ है।
