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भविष्य की योजना

Last Updated- December 07, 2022 | 8:04 PM IST

पूरी दुनिया में सेवानिवृत्ति की योजना उस राशि से है जो व्यक्ति को अपना शेष जीवन व्यतीत करने के लिए मिलती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश यह सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्ति को अपना बुढ़ापा काटने के लिए पर्याप्त राशि मिले।


हालांकि भारत में हम अभी यह लक्ष्य हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं। पिछले कुछ सालों से सरकार पेंशन के आकार लेते क्षेत्र के विकास में सक्रिय भूमिका निभा रही है। इसी के चलते सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना (एनपीएस) की शुरुआत की गई है।

उम्मीद की जा रही है आने वाले कुछ महीनों में स्वरोजगार से जुड़े लोगों को एनपीएस से जोड़ने के लिए इसमें और सुधार किया जा सकता है। इस बारे में क्या किया जा सकता है? इस पर एक नजर

सबके लिए हो योजना

वर्तमान में यह पेंशन योजना सिर्फ उन सरकारी कर्मचारियों के लिए है जो एक निश्चित तिथि के बाद सेवा में आए हैं। इस बंधन के कारण हजारों लोग इस योजना में निवेश करने से वंचित रह जाएंगे। इस योजना में सबको शामिल किए जाने से कई निवेशक इसे एक विकल्प मानकर पैसा लगा सकते हैं।

अभी स्वरोजगार से जुड़े लोगों के लिए दो ही विकल्प हैं, पहला तो वे बीमा कंपनियों द्वारा दी जा रही पेंशन पॉलिसी या फिर एन्यूटी प्लॉन लें, दूसरा म्युचुअल फंड की पेंशन योजना में निवेश करे। जब कोई निवेशक इन योजना का चुनाव करता है तो उसके लिए इस बाबत जारी नए दिशा-निर्देशों को जानना जरूरी हो जाता है। यह निवेशक पर ही निर्भर है कि वह इस योजना में निवेश के लिए कौन सा तरीका और विकल्प चुनता है।

कोई भी व्यक्ति जो इस योजना में निवेश करना चाहता हो तो उसे कई तरह के निर्णय लेने पड़ते हैं। कि निवेश को लेकर  आक्रामक रुख अख्तियार करेगा या फिर सुरक्षात्मक। इसके साथ यह योजना उन लोगों के लिए ज्यादा लाभदायक है जिनके रिटायरमेंट को 15 साल बाकी हैं। वे इसमें अपने रिटायरमेंट के लिए अच्छी खासी राशि एकत्र कर सकते हैं।

निजी फंड प्रबंधक

अब तक किसी भी निवेशक के लिए अपने रिटायरमेंट के लिए बचत या फिर निवेश का निर्णय लेना बेहद आसान था। कई मामलों में रिटर्न बिलकुल तय होता था। इसको लेकर चिंता की कोई बात नहीं थी। दूसरी स्थितियों में भी रिटर्न और प्रदर्शन को सुनिश्चित करने का जिम्मा उस पक्ष की होती थी जिसे धन दिया गया है। इस एनपीएस में आपके धन के प्रबंधन के लिए एक निजी फंड मैनेजर होगा।

यह एक अहम फैसला है क्योंकि निवेशकों को फंड मैनेजरों के प्रदर्शन का आकलन करना होगा। क्योंकि यहां वे जो रिटर्न एकत्र करेंगे वही यह तय करेगा की उन्हें कितनी पेंशन मिलेगी। यह निवेशकों के लिए भी अहम है कि वे विभिन्न फंड मैनेजरों के प्रदर्शन का आकलन करें क्योंकि कुछ समय बाद उन्हें इनमें से किसी एक का चयन करना होगा।

अभी वर्तमान में किसी किसी भी पेंशन प्लॉन या म्युचुअल फंड के जरिए यह नहीं जाना जा सकता कि रिटायरमेंट पर कितनी राशि मिलेगी क्योंकि यह उक्त योजना के लंबे अंतराल में प्रदर्शन पर निर्भर करता है।

निवेश की पसंद संभव

एनपीएस के आने से निवेशक अपनी पसंद के निवेश को चुनने के लिए स्वतंत्र हुए हैं। हालांकि इस बारे में कोई भी निर्णय अपनी उम्र, रिस्क प्रोफाइल, लक्षित पूंजी और परिसंपत्ति आवंटन के तरीके के आधार पर ही लिया जाना चाहिए। यह उनका दायित्व बनता है कि वह ऐसा पोर्टफोलियो चुने जो उनकी आवश्यकताओं के अनुसार हो।

यहां इस बात की भी संभावना है कि इस योजना में विभिन्न निवेश विकल्प हों। इनमें पूरी तरह से सुरक्षित विकल्प-जहां पैसा डेट फंडों में निवेश किया जाएगा, आक्रामक विकल्प जहां आपके पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी में निवेश किया जाएगा। इनके अतिरिक्त भी कई और विकल्प हैं जहां निवेशक बीच का रास्ता अपना सकता है।

द कोरोलरी इसी तरह का सुरक्षित विकल्प है जो उन लोगों के लिए भी ठीक है जो रिटायरमेंट के बेहद करीब हैं। क्योंकि उनके पोर्टफोलियो में थोड़ा भी परिवर्तन उनके रिटर्न पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। उदाहरण के लिए एक लाख रुपये की राशि 6 फीसदी सालाना दर से 20 साल में 3.20 लाख रुपये होगी, जबकि 8 फीसदी की दर से यह 4.66 लाख रुपये होगी।

इसी तरह अगर 60,000 रुपये हर साल निवेश किए जाएं तो 6 फीसदी सालाना दर से यह राशि 20 सालों में 25.43 लाख रुपये हो जाएगी, जबकि 8 फीसदी की दर से यह 32.67 लाख रुपये हो जाएगी। यहां 8 फीसदी वाले प्लॉन में भले रिटर्न अधिक हो, लेकिन इसमें जोखिम भी अधिक है।

यहां दूसरी सबसे अहम बात यह है कि अगर आपने कोई निवेश प्लॉन लिया है तो इसकी समयावधि में परिवर्तन भी किए जा सकते हैं। यह इसलिए कि आपको 25-30 साल की उम्र में निवेश की आक्रामक शैली अधिक उपयुक्त लगती है, लेकिन जैसे-जैसे आप रिटायरमेंट की ओर बढ़ते हैं तो यह आक्रामकता कम होती जाती है और सुरक्षात्मक शैली ज्यादा बेहतर लगती है।

वास्तव अंतिम चरण में भी निवेश का कोई भी निर्णय बाजार की स्थिति के नजरिए पर ही आधारित होना चाहिए। यह बाजार पर लगातार निगाह रखकर ही किया जा सकता है। एनपीएस चुनने पर निवेशकों का दायित्व बढ़ता है। शुरुआती वर्षों में तो यह पता नहीं लगता क्योंकि उस समय निवेशक के सिर कोई जिम्मेदारी या फिर उनके पास उनके पैसे से कितना रिटर्न मिलेगा यह जानने का विकल्प नहीं होता। 

First Published - September 7, 2008 | 10:19 PM IST

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