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कंपनियों की बायबैक योजनाएं

Last Updated- December 05, 2022 | 9:21 PM IST

जनवरी के मध्य से करीब 25 प्रतिशत की गिरावट से बाजार किसी दलदल में फंस गया लगता है।


इस दौरान कई शेयरों के भाव में तो 50 प्रतिशत से भी अधिक की गिरावट आ गई। बड़े या छोटे, घरेलू या विदेशी सभी स्तरों पर निवेशकों की भागीदारी में कमी आई है। बाजार के गंभीर परिदृश्य को देखते हुए बड़ी संख्या में कंपनियों ने 2008 की शुरुआत से बायबैक का रास्ता अपनाने की घोषणा की।


इसका सबसे बड़ा कारण अपने शेयर की कीमत को सहारा देना और अवांछित अधिग्रहण के प्रयास को नाकाम करना है। एक और कारण अतिरिक्त नगदी या निवेशों का उपयोग करना है।


इसके अलावा आईसीआई इंडिया या हिन्दुस्तान यूनीलीवर जैसी भारतीय सब्सिडरीज की विदेशी कंपनियां अपनी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से अधिक चाहती हैं। सामान्यत: बायबैक कंपनी के सरप्लस कैश को कम करता है, लेकिन यह पूंजी आधार में भी कमी लाता है जिसके कारण भविष्य में प्रति शेयर आमदनी और लाभ अनुपात में सुधार होता है।


कुछ कंपनियों ने हाल ही में अपने बायबैक ऑफर की घोषणा की है और अधिकांश कंपनियां इस सूची में शामिल होने की योजना बना रही हैं। इस संबंध में सबसे हालिया उदाहरण अरबिंदो फर्मास्युटिकल्स, बैंको प्रोडक्ट्स और सास्केन कम्युनिकेशंस के हैं। बायबैक से संबंधित इन पेशकशों और कंपनियों व इसके शेयरधारकों पर इसका कितना महत्त्व है, विस्तार से पढ़िए।


ग्रेट ऑफशोर


प्रमुख तेल सेवा प्रदाता कंपनी ग्रेट ऑफशोर ने हाल ही में शेयरों के बायबैक को स्वीकृत किया है। मार्च, 2007 तक 57 करोड़ रुपये का कंपनी का कैश बैलेंस बहुत अधिक नहीं है और न ही इससे इसकी शेयर कीमत, फंडिंग पर इसका खास असर पड़ेगा।


वहीं बायबैक राशि 54 करोड़ रुपये है जो वित्तीय वर्ष 2008 के लिए इसके अनुमानित कुल सालाना मुनाफे  217 करोड़ रुपये का तकरीबन एक-चौथाई है। कंपनी ने पिछले वर्ष अक्टूबर में एफसीसीबी का रास्ता अपना कर 168 करोड़ रुपये जुटाए जो 875 रुपये प्रति शेयर की इक्विटी में परिवर्तनीय हैं। हालांकि मजबूत औद्योगिक परिदृश्य के बीच कंपनी की वित्तीय स्थिति सुधरने से इसे कर्ज का भुगतान करने में मदद मिल सकेगी।


रिग्स का वैश्विक तौर पर अभाव पैदा हो गया है वहीं आपूर्ति की तुलना में ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है। पिछले तीन वर्षों में रिग की दरों में तकरीबन 200 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। अगले कुछ वर्षों के लिए रिग की दरों में बढ़ोतरी का यह सिलसला जारी रहने की संभावना है।  भारत के संदर्भ में तेल खोज कार्यों के लिए 320 अरब रुपये का निवेश निर्धारित किया गया है।


ग्रीट ऑफशोर फायदेमंद स्थिति में है और यह कंपनी भारत में प्रमुख समेकित ऑफशोर सेवा प्रदाता है। कंपनी भारत के साथ-साथ विदेश में तेल खोज एवं उत्पादन (ई ऐंड पी) कंपनियों को ऑफशोर ड्रिलिंग, ऑफशोर लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, मेरिन कंस्ट्रक्शन और बंदरगाह एवं टर्मिनल समर्थन मुहैया कराती है।


कंपनी ऑर्गेनिक  और इनआर्गेनिक रूट के जरिये अपने संचालन का विस्तार कर रही है। इसने भारती शिपयार्ड के साथ  एक जैक-अप रिग और मल्टीपर्पज सपोर्ट वेसेल (एमएसवी) के लिए  640 करोड़ रुपये और 260 करोड़ रुपये के ऑर्डर दिए हैं जिनके  जनवरी, 2009 और जून, 2009 तक डिलीवर किए जाने की संभावना है।


ग्रेट ऑफशोर ने ब्रिटिश स्थित ऑफशोर ड्रिलिंग कंपनी सीड्रैगन ऑफशोर में मं  भी लगभग 56 अरब रुपये में नियंत्रण भागीदारी (90 प्रतिशत) हासिल की है।सीड्रैगन दो सिक्स्थ जेनरेशन, डीपवाटर, 10 हजार फुट तक की खुदाई की क्षमता वाले हार्श एनवायरनमेंट सेमी-सबमर्सिबल ड्रिलिंग रिग तैयार कर रही है जिनके 2009 की चौथी तिमाही और सितंबर 2010 तक डिलीवर होने की संभावना है।


कंपनी द्वारा की जा रही इन पहलों से इसका वित्तीय आधार और अधिक मजबूत होने की संभावना है।वित्तीय वर्ष 2009 और वित्तीय वर्ष 2010 के लिए इसके शेयर में शानदार 11 गुना और 7.5 गुना इजाफा होने का अनुमान है। निवेशक भविष्य में इसके शेयर खरीदने की योजना बना सकते हैं।


आईसीआई इंडिया


आईसीआई इंडिया पेंट कारोबार क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों में से एक है।आईसीआई इंडिया के शेयर में 24 मार्च से 31 मार्च के बीच 20 प्रतिशत का उछाल आया। इसका श्रेय कंपनी द्वारा लिए गए चिपकाने वाले पदार्थों के कारोबार की बिक्री के फैसले को को जाता है।


आईसीआई इंडिया एकजो नोबेल की 53.88 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली सहायक कंपनी है। इस वर्ष जनवरी में ब्रिटेन की कंपनी आईसीआई पीएलसी के अधिग्रहण के बाद एकजो नोबेल का गठन हुआ है।


अपनी रणनीति के तहत इसकी नई कंपनी (एकजो नोबेल) आईसीआई के पेंट कारोबार को विस्तृत करना चाहती है और अन्य व्यवसायों में भी किस्मत आजमाना चाहती है। आईसीआई इंडिया का चिपकाने वाले पदार्थ का कारोबार 260 करोड़ रुपये में हेंकेल गु्रप की एक भारतीय इकाई को भी बेचा जा रहा है और यह प्रक्रिया दिसंबर, 2008 तक पूरी हो जाने की संभावना है।


आईसीआई इंडिया को पेंट कारोबार से अच्छा लाभ हासिल होने की संभावना है। एकजो नोबेल के प्रयासों के कारण कंपनी अपने पोर्टफोलियो को कई नए उत्पादों को शामिल कर रही है। कंपनी ने प्रमुख उत्पादों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और लगभग 880 करोड़ रुपये की रकम जमा की है जिसका इस्तेमाल ऑर्गेनिक और इनऑर्गेनिक विकास अवसरों के लिए किया जा सकता है।


कंपनी को पेंट कारोबार से अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है। इसका शेयर कारोबार वित्तीय वर्ष 2009 के लिए लगभग 18 गुना अनुमानित है।  दीर्घावधि के निवेशकों को शेयर बनाए रखना चाहिए और प्रत्याशित निवेशक इसका शेयर खरीद सकते हैं।


मास्टेक


मास्टेक सॉफ्टवेयर सॉल्युशन मुहैया कराने वाली प्रमुख कंपनी है। मास्टेक के बोर्ड ने कंपनी के 65 करोड़ रुपये के शेयरों के बायबैक को स्वीकृत किया है। अक्टूबर, 2007 में कंपनी का शेयर 750 रुपये पर था। बायबैक की घोषणा के बाद से बीएसई सेंसेक्स के साथ कंपनी के शेयर में उछाल आया और बीएसई आईटी सूचकांक में भी इसने बेहतर प्रदर्शन किया।


सॉफ्टवेयर सॉल्युशन और इंटीग्रेशन सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनी मास्टेक भारत से सेवाओं का निर्यात करने वाली टॉप-20 आईटी सॉफ्टवेयर कंपनियों में शामिल है। कंपनी बीमा क्षेत्र, सरकार और वित्तीय सेवा संगठनों को वैश्विक तौर पर एंटरप्राइज सॉल्युशन मुहैया कराती है। मास्टेक अपने सॉल्युशन फ्रेमवर्क एलिक्सिर के साथ बीमा क्षेत्र में अपनी अलग जगह बनाए हुए है।


मुंबई में अपनी प्रमुख ऑफशोर डिलीवरी इकाई के जरिये मास्टेक अमेरिका, यूरोप, जापान और एशिया प्रशांत क्षेत्रों में अपना कारोबार चलाती है। कंपनी कई प्रमुख बीपीओ कंपनियों के साथ गठजोड़ के प्रयास में भी लगी हुई है। मास्टेक ने मार्च, 2008 की तिमाही में शानदार वृद्धि दर्ज की जो अनुमानित बढ़ोतरी से भी अधिक रही। तिमाही-दर-तिमाही के लिए इसकी कुल बिक्री 10 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 230 करोड़ रुपये रही।


दिसंबर, 2007 की तिमाही की तुलना में इसके संचालन लाभ में 19.3 प्रतिशत का इजाफा हुआ। विश्लेषकों का मानना है कि आगामी वर्षों में कंपनी मजबूत बढ़ोतरी दर्ज करेगी।


पाटनी कम्प्यूटर


पाटनी कम्प्यूटर का शेयर आईटी क्षेत्र में सबसे सस्ते शेयरों में से एक है। बीएसई आईटी सूचकांक पर कंपनी का शेयर बेहतर नहीं रहा है। कंपनी 325 रुपये के अधिकतम बायबैक पर विचार कर रही है जो मौजूदा 240 रुपये की बाजार कीमत का 35 प्रतिशत प्रीमियम है। प्रवर्तकों द्वारा लगभग 58 प्रतिशत की हिस्सेदारी पर नियंत्रण के बाद से यह अंतर जल्द ही सीमित हो सकता है।


पाटनी का अमेरिका बाजार में भी अच्छा दबदबा है। इसके राजस्व में अमेरिकी बाजार का योगदान 78 प्रतिशत है। कंपनी यूरोप, जापान और एशिया-पैसीफिक में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रही है।


मौजूदा समय में अमेरिकी वित्तीय संकट और बैंकिंग और वित्तीय सेवा सेगमेंट में मंदी से इसके राजस्व बढ़ोतरी पर विपरीत असर पड़ने की संभावना है। वित्तीय वर्ष 2007 की चौथी तिमाही में कंपनी का प्रदर्शन धीमा रहा। तिमाही-दर-तिमाही के लिए 1.9 प्रतिशत की राजस्व बढ़ोतरी के साथ इसका राजस्व 686 करोड़ रुपये रहा और कुल मुनाफा तिमाही-दर-तिमाही 9.2 प्रतिशत की गिरावट के साथ 99.7 करोड़ रुपये रहा।


वित्तीय वर्ष 2008 की पहली तिमाही के लिए पाटनी की तिमाही दर तिमाही राजस्व 0.5 प्रतिशत से 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 700-704 करोड़ रुपये रहा।


रिलायंस एनर्जी


रिलायंस एनर्जी द्वारा 800 करोड़ रुपये के बायबैक की घोषणा की गई जो 2007 के शुरू के बाद से अब तक सबसे बड़ी बायबैक राशि है। कंपनी 25 मार्च को बायबैक के शुरू होने के बाद 250 करोड़ रुपये के शेयर पहले ही खरीद चुकी है।


बायबैक से इसके वित्तीय रूप से अधिक प्रभावित होने की संभावना नहीं है। कंपनी के पास मार्च, 2007 तक 7500 करोड़ रुपये का कैश एवं निवेश बैलेंस था। दिसंबर, 2007 तक की 9 महीनों की अवधि में कंपनी ने 773 करोड़ रुपये का मुनाफा दर्ज किया। इन 9 महीनों में इसके मुनाफे में तिमाही दर तिमाही 37 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई।
 
इसके अलावा इसने प्रवर्तकों को 7,834 करोड़ रुपये की रकम के 4.3 करोड़ अधिपत्र जारी किए जो जुर्लाई, 2009 तक 1822 रुपये की कीमत के शेयरों में परिवर्तनीय हैं। इसने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूतियों के जरिये 5000 करोड़ रुपये जुटाने की भी योजना बनाई है। भारतीय विद्युत क्षेत्र और इन्फ्रास्ट्रक्चर कारोबार में अपनी मजबूत उपस्थिति के कारण कंपनी द्वारा अगले वर्षों में अच्छी बढ़ोतरी हासिल किए जाने की संभावना है।

First Published - April 14, 2008 | 12:23 AM IST

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