बॉन्ड बाजार के प्रतिभागियों को उम्मीद थी कि आम चुनाव के नतीजों के बाद उधारी के स्तर में कटौती होगी, लेकिन अब ऐसा नहीं लग रहा है। डीलरों का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि गठबंधन सरकार बनने से सरकारी खजाने पर दबाव पड़ सकता है।
अगर संरचनात्मक सुधारों के एजेंडे में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता है तो भारतीय रुपये की सांकेतिक प्रभावी विनिमय दर (NEER) में हाल की गिरावट का रुझान कायम नहीं रह सकता है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) बहुमत का आंकड़ा पार करने में सफल रहा, लेकिन भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। भाजपा को तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और जद (यू) जैसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी, जो केंद्र में अपना समर्थन देने के बदले अपने राज्यों के लिए (आंध्र प्रदेश और बिहार) विशेष पैकेज की मांग कर सकती हैं।
बॉन्ड बाजार को उम्मीद है कि RBI सरकार की अधिशेष नकदी का प्रबंधन करने के लिए पुनर्खरीद (बायबैक) नीलामी जारी रखेगा।
पीएनबी गिल्ट्स के प्रबंध निदेशक (MD) और मुख्य कार्याधिकारी (CEO) विकास गोयल का कहना है, ‘नकदी का प्रबंधन नीलामी रद्द करने के माध्यम से नहीं किया जाएगा। यह बायबैक के जरिये किया जाएगा। इसके अलावा वे सरकारी फंड की नीलामी, यानी रीपो पर निर्भर हो सकते हैं। गठबंधन सरकार के कारण खर्च ज्यादा होगा। इसके अलावा जल्दी खर्च करने का भी दबाव होगा।’
RBI द्वारा सरकार को रिकॉर्ड अधिशेष हस्तांतरण के बाद, बॉन्ड कारोबारियों को उम्मीद थी कि सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए अपनी सकल उधारी कम कर सकती है।
RBI ने वित्त वर्ष 2024 के लिए केंद्र सरकार के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश को मंजूरी दी थी जो वित्त वर्ष 2023 से लगभग 141 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, आकस्मिक जोखिम बफर (सीआरबी) को पिछले 6 फीसदी से बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है।
10 साल के बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल मंगलवार को 7.04 फीसदी के मुकाबले 7.03 फीसदी पर पहुंच गया।