पिछले कुछ महीनों में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्युचुअल फंड निवेशकों के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं।
सबसे पहले बोर्ड ने घोषणा की है कि 4 जनवरी 2008 से म्युचुअल फंडों में प्रत्यक्ष निवेशकों पर कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगाया जाएगा। इसी के एकदम बाद एक और निर्देश दिया गया कि बोनस यूनिटों पर भी किसी प्रकार का प्रवेश और निर्गम शुल्क नहीं लागू होगा।
बाद में जारी दिशा-निर्देशों ने एक बार फिर बोनस यूनिटों को सुर्खियों में ला दिया। आयकर कानून में किए गए संशोधन के तहत ऐसा हुआ, जिसमें करदाताओं को ‘बोनस स्ट्रिपिंग’ से महरूम रखा गया है। इस प्रावधान में बताया गया है कि अगर बोनस यूनिटों को बेचते हैं और उसमें कोई नुकसान होता है तो इस नुकसान को कर योग्य आय के रूप में नहीं माना जाएगा। बल्कि, इस नुकसान को बोनस यूनिट खरीदने में लगने वाली लागत की तरह माना जाएगा।
बोनस यूनिटों को बेचने पर पूंजी लाभनुकसान की गणना बोनस यूनिट की लागत के रूप में की जाएगी, इसलिए इसकी लागत नगण्य हो जाती है। चलिए इसे एक उदाहरण की मदद से समझते हैं।20 रुपये शुध्द परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) वाले एक म्युचुअल फंड पर 1 अप्रैल को 1:1 में बोनस घोषित किया जाता है। बोनस जारी करने की तिथि एक महीना बाद रखी जाती है।
इससे आकर्षित हो कर कोई निवेशक अप्रैल महीने में 20 हजार रुपये में फंड के 1000 यूनिट खरीद लेता है, ताकि उसे अगले महीने बोनस यूनिट भी मिल सकें। जब बोनस आवंटित किया जाता है, तब उसके यूनिट खरीदे हुए मूल यूनिटों से बढ़कर 2000 हो जाएंगे। और इन यूनिटों के अध्रिहण की लागत शून्य है। अब जब प्रवेश लागत शून्य थी, बोनस यूनिट जारी करने से यूनिट का एनएवी गिर कर 10 रुपये रह जाता है।
अब जब आपके पास फंड 2000 यूनिट हैं तब भी इन यूनिटों का कुल मूल्य 20 हजार रुपये है। मान लेते हैं निवेशक 10 हजार रुपये मूल्य के 1000 यूनिट बेच देता है। ऐसे में इसे, अल्पावधि नुकसान मानेंगे, क्योंकि एक महीने पहले जब 1000 यूनिट खरीदे थे, तब इनका मूल्य 20 हजार रुपये था। पहले, कानून के तहत, यह नुकसान पूंजी लाभ में घटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, इसलिए इससे कर देनदारी में कमी आ जाती थी।
बहुत से निवेशक कानून के इस कमजोर पहलू का फायदा उठाते थे। इस प्रक्रिया को ‘बोनस स्ट्रिपिंग’ कहा जाता है। आयकर कानून में संशोधन के बाद, इस 10 हजार रुपये के नुकसान को किसी भी तरह के पूंजी लाभ में घटाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
संशोधित कानून इस 10 हजार रुपये के उपेक्षित नुकसान को बोनस यूनिट की लागत की तरह मानता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि अगर निवेशक इन बोनस यूनिटों को जुलाई में 11 हजार रुपये में बेचता है, तब उसे 1000 रुपये का अल्पावधि पूंजी लाभ कमाने पर, उसे इस मुनाफे पर पूंजी लाभ कर चार्ज किया जाएगा।
कानून के तहत अब दो बार की समयसीमा पूरी करना जरूरी है, यानि कि बोनस यूनिट जारी होने के लिए रेकॉर्ड तिथि से पहले के तीन महीनों के भीतर यूनिट खरीदना और रेकॉर्ड तिथि के 9 महीनों के भीतर मूल यूनिटों को बेचना। अगर लेन-देन के लिए इन दोनों तिथियों में से कोई एक भी लागू नहीं होगी, तो निवेशक को कोई कर नहीं देना होगा।
अगर यूनिटों को जनवरी में खरीदा जाता, जो मई की रेकॉर्ड तिथि के 3 महीने की अवधि से पहले खरीदे जाते, तो 10 हजार रुपये के इस नुकसान को पूंजी लाभ से घटाने की अनुमति है। दिसंबर से इन यूनिटों की बिक्री को पूंजी लाभ में घटाया जा सकता है। बोनस स्ट्रिपिंग का यह नया अनुच्छेद सिर्फ म्युचुअल फंडों के यूनिटों पर ही लागू होता है और कंपनी के शेयरों पर नहीं।
लेखक, चार्टर्ड एकांउटेंट हैं।