आईडीबीआई को बैंक बने तीन साल पूरे हो गए हैं। तीन साल में बैंक के तीसरे अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक योगेश अग्रवाल खामियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
बिजनेस स्टैंडर्ड के सिध्दार्थ से हुई बातचीत में अग्रवाल ने बताया कि पूर्व विकास वित्तीय संस्थान एक विचित्र स्थिति का सामना कर रहा है, जब आईडीबीआई और उसके द्वारा 2005 में अधिग्रहण किए गए अन्य दो वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उपभोक्ताओं के समक्ष ऋण को अलग अलग ब्याज दर पर मुहैया कराया जा रहा है। प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश:
आप वर्तमान वित्तीय वर्ष को किस तरह देखते हैं, जहां विकास दर की गति धीमी पड़ी हुई है, जहां पहले से ही मुद्रास्फीति की दर सातवें आसमान पर है और जहां ब्याज दरों को बढ़ाने की भी बात हो रही है?
हाल के कुछ महीनों के दौरान कंपनियों को ऋण दिए जाने में कमी देखने को मिली है और इसके साथ ही यह उम्मीद की जा रही थी कि ब्याज दरों में भी थोड़ी कमी आएगी। हालांकि यहां लोन को मंजूरी तो मिल गई है लेकिन इसे अभी वितरण नहीं किया गया है।
जब इस बात की पूरी पुष्टि हो जाएगी कि ब्याज दरों में कमी नहीं आएगी तब हो सकता है कि लोन का वितरण होगा। लेकिन अगर रिटेल लोन की बात करें तो फिर आपको तस्वीर पूरी तरह बदली नजर आएगी। वहां ब्याज दर बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता है।
बाजार का मानना है कि आश्चर्यजनक रूप से कीमतों के आसमान छूने से मांग प्रभावित हुई थी। लिहाजा, आम लोग ब्याज दरों में कमी होने का इंतजार नहीं करेंगे बल्कि वे कीमतों के घटने का इंतजार करेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि बजट में प्रस्तुत मसौदे से लोगों के पास धन और बढ़ेगा और इससे लोग अधिक से अधिक खर्च करने को प्रोत्साहित होंगे।
ब्याज दरों को लेकर जो स्थिति बनी हुई है, उसके बारे में आपका क्या कहना है?
मुद्रास्फीति के बढ़ने की वजह से फिलहाल हम दरों में कटौती करने के बारे में कुछ भी नहीं सोच रहे हैं। हमने फैसला किया है कि फिलहाल हम इंतजार करेंगे और इन परिस्थितियों के समाधान के लिए जो तरीके सुझाए जाएंगे, उन पर निगाह रखेंगे। हमारे लिए अचानक से कोई फैसला लेना बेहतर नहीं होगा। अत: हमारे लिए इस वक्त इंतजार करना ही बेहतर होगा।
अभी भी एकीकरण का काम पूरा नहीं हुआ है, जबकि आईडीबीआई एक्ट को अप्रैल 2005 में ही निरस्त किया गया था?
इसमें कोई शक नहीं कि बैंक लिए एकीकरण अभी भी एक मसला बना हुआ है। यह हमारे ध्यान में है, और हम इसे प्रमुखता के साथ निपटाएंगे। हालांकि कानूनी रूप से एकीकरण का काम पूरा किया जा चुका है लेकिन यहां अभी भी तीन धाराएं मौजूद हैं।
आईडीबीआई, आईडीबीआई बैंक और यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक सभी का अपना अपना दृष्टिकोण है। ऐसी स्थिति में साथ चलना संभव नहीं है। कोई भी संगठन विभिन्न उत्पादों, विभिन्न विशेषताओं, अलग-अलग ऑफिस टाइमिंग और यहां तक अलग-अलग ब्याज दरों पर ऋण मुहैया कराने से आगे नहीं बढ़ सकता है।
इसीलिए हमने तकनीक, बिजनेस प्रक्रियाएं और मानव संसाधन का एकीकरण करने का फैसला किया है। इस दिशा में हमने एक समान तकनीकी स्तर बनाने और मानव संसाधन मुद्दों पर विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया है। हालांकि 1 अप्रैल से प्रभावी सभी चीजों का निपटारा कर लिया गया है। फिलहाल अब हम नए कर्मचारियों के लिए नए पैकेज पर काम कर रहे हैं।
तो क्या आपके द्वारा उठाए जाने वाले इस कदम के बाद आईडीबीआई के कर्मचारियों को अधिक वेतन दिया जाएगा?
ऐसा नहीं है। आईडीबीआई के कर्मचारियों का वेतन औसतन आईडीबीआई बैंक के कर्मचारियों के मुकाबले अधिक है। निजी क्षेत्र के बैंकों में सिर्फ वेतन थमा दिया जाता है।
जबकि आईडीबीआई अपने कर्मचारियों के लिए अन्य सुविधाएं जैसे घर आदि की ओर भी ध्यान दे रहे हैं। फिलहाल हम इन सब चीजों पर काम कर रहे हैं और हमें इस बात की पूरी उम्मीद है कि अगर सबकुछ ठीक चलता रहा तो आईडीबीआई बैंक के 50 उच्चस्तरीय कार्यकारियों के वेतन को सलामत रखा जाएगा।
आईसीआईसीआई के साथ आईसीआईसीआई बैंक के विलय के बाद उसमें जबर्दस्त विकास देखने को मिला था। लेकिन आपके साथ इस तरह का कोई अनुभव नहीं जुड़ा है। इसे आप किस तरह देखते हैं?
आईसीआईसीआई बैंक प्राइवेट है जबकि आईडीबीआई सार्वजनिक स्वामित्व वाला बैंक है। इस लिहाज से दोनों में बहुत ज्यादा अंतर है। लेकिन कारोबार का जो मॉडल है वह दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। फिलहाल हमारे लिए सबसे बड़ा प्रश्न समय को लेकर है। इसमें कोई शक नहीं कि अगर रिटेल में मजबूती आती है तो हम और भी तेजी से अपना कदम बढ़ा सकेंगे।
आपके सामने किस तरह की चुनौतियां हैं?
हमारे समक्ष विरासत व संस्कृति संबंधी मुद्दे हैं। हमें कुछ ऐसे तरीके अपनाने होंगे जिसे पहले से काम कर रहे कर्मचारियों के दृष्टिकोण को विकास रोल से पूरी तरह बदलकर वाणिज्यिक बैंकिंग के माहौल में तब्दील कर सके । यहां कैपिटल मार्केट दिखावा बहुत अधिक है, हम इसे कम करना चाहते हैं। फंडों के दाम बहुत अधिक है और हमें सीएएसए (चालू खाता, बचत बैंक खाता) आधार को बढ़ाने की जरूरत है।