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आरबीआई का प्रस्ताव, बैंकों की मुसीबत

Last Updated- December 05, 2022 | 9:11 PM IST

बैंकों के लिए मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पहले तो उन पर बजट में 60 हजार करोड़ रुपये का बोझ डाला गया और अब रिजर्व बैंक के नए दिशानिर्देशों की वजह से उन्हें 800 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े सकते हैं।


दरअसल, रिजर्व बैंक ने कर्ज वसूली के नियमों फेरबदल करने का प्रस्ताव किया है। इस वजह से बैंकों को अपने 10लाख कमचारियों को ट्रेनिंग देनी पड़ सकती है।हाल ही में रिजर्व बैंक ने रिकवरी एजेंट के लिए दूसरी ड्राफ्ट गाइडलाइन बनाई है। इसमें यह प्रस्ताव रखा गया है कि बैंकों को इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ बैंकिंग एंड फाइनैंस (आईआईएफबी) के साथ जुड़ना चाहिए।


बैंक अगर चाहें तो  वह अपने किसी ट्रेनिंग कॉलेज में रिकवरी एजेंटों के ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करवा सकते हैं। उन्हें यह आश्वस्त करना होगा कि आईआईएफबी की परीक्षा में सभी एजेंट पास हों।


प्रस्तावित गाइडलाइन के तहत एजेंटों को भी फिर से परिभाषित किया गया है। इसमें बैंकों से जुड़ी किसी एजेंसी के एजेंटों और कर्मचारियों के साथ-साथ बैंक के कर्मचारियों को भी इसमें रखा गया है। बैंकरों के लिए यह गाइडलाइन बुरी खबर इसलिए लेकर आया है क्योंकि उन्हें 100 घंटे के इस प्रशिक्षण के लिए 600 करोड़से लेकर 800 करोड़ रुपये तक खर्च करने पड़ेंगे।


एनआईसी स्पार्टा वित्तीय क्षेत्र में प्रशिक्षण सुविधाएं देने के लिए प्रत्येक कर्मचारी के लिए  6000 रुपये लेती है। पब्लिक सेक्टर के एक बैंक के संस्थान का कहना है कि 100 घंटे की ट्रेनिंग के लिए हरेक  कर्मचारी पर 6500 रुपये खर्च आएगा। इसमें खाने और पढ़ाई के लिए जरूरी चीजें शामिल नहीं हैं। अगर स्टडी मैटेरियल की बात की जाए तो ब्रोशर और सीडी ही 500 रुपये में मिलेंगे। 14 दिनों का खाना और दूसरी चीजों पर ही लगभग 1000 रुपये का खर्च आएगा।


अगर इन सब को मिलाकर देखे तो एक कर्मचारी पर लगभग 8000 का खर्च पड़ेगा। एक बैंकर का कहना है कि वसूली जैसा काम  जटिल तो होता ही है इसी वजह से कई कर्मचारी, वसूली विभाग में लंबा वक्त गुजारना नहीं चाहते।

First Published - April 10, 2008 | 11:30 PM IST

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