रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने सिस्टमैटिकली इंपॉर्टेंट यानी ग्राहकों को ज्यादा प्रभावित करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसीएस) के लिए कैपिटल एडिक्वेसी मानकों यानी पूंजी पर्याप्तता के नियमों को और कड़ा करने का प्रस्ताव दिया है।
यह प्रस्ताव उन वित्तीय संस्थाओं के लिए है जिनकी परिसंपत्तियां 100 करोड़ से अधिक है, इसके अलावा बैंक ने ऐसी एनबीएफसी के डेरिवेटिव्स एक्सपोजर और रियल एस्टेट में निवेश के बारे में सारी जानकारी दिए जाने को कहा है। केंद्रीय बैंक इन वित्तीय संस्थाओं के लिए कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो का अनुपात 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहती है।
अप्रैल 2009 से इस अनुपात को बढ़ाकर 15 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव है। गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के डेरिवेटिव्स पर रिजर्व बैंक का यह प्रस्ताव बैंकों के लिए दिए गए प्रस्ताव से ठीक एक दिन बाद आया है। इसके तहत इन एनबीएफसी को इस साल किए गए अपने डेरिवेटिव्स कारोबार की जानकारी भी देनी है।
यही नहीं उन्हे अपनी बैलेंस शीट में डेरिवेटिव्स से होने वाले रिस्क एक्सपोजर के अलावा जोखिम प्रबंधन पॉलिसी जैसे गुणात्मक डिस्क्लोजर और नेशनल प्रिंसिपल एमाउंट, क्रेडिट एक्सपोजर व मार्केट टू मार्केट पोजिशन जैसे संख्यात्मक डिस्क्लोजर शामिल हैं। कंपनियां अपनी फॉरेक्स और ब्याज दर की जोखिम से निपटने के लिए डेरिवेटिव्स का उपयोग करती हैं।
रिजर्व बैंक के प्रस्ताव केअनुसार अहम गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को पूंजी पर्याप्तता अनुपात एसेट और लायबिलिटी के मैच्यूरिटी पैटर्न का मार्च 2009 तक खुलासा करना होगा। इससे पहले अप्रैल में घोषित वार्षिक पॉलिसी स्टेटमेंट में इस पर पुनर्विचार का प्रस्ताव दिया गया था।