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एनबीएफसी पर चल सकता है आरबीआई का डंडा

Last Updated- December 05, 2022 | 11:05 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) देश की तमाम जमा राशि लेने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (डी-एनबीएफसी) पर अंकुश लगाने की जुगत में है।


उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह आरबीआई के डिप्टी गवर्नर वी लीलाधर ने कहा था कि आरबीआई को अपनी नीतियों की समीक्षा करने की जरुरत है। उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई आगामी मौद्रिक नीति में एनबीएफसी से संबंधित प्रस्तावों को ला सकता है।


आरबीआई की मौद्रिक नीति की घोषणा 29 अप्रैल को की जाएगी।हालांकि डी-एनबीएफसी यह उम्मीद कर रही है कि उन्हें नॉन-डिपोजिट-टेकिंग कंपनियों या बैंक या फिर किसी अन्य मॉडल में खुद को बदलने के लिए पर्याप्त समय मुहैया कराया जाएगा।


डी-एनबीएफसी के अधिकारियों ने बताया कि आरबीआई पहले ही इस बाबत अनौपचारिक रूप से बातचीत कर चुका है। अधिकारियों ने यह भी बताया कि आरबीआई ने उन्हें समझाने की कोशिश की है कि कम से कम तीन साल के अंदर लोगों की जमा राशि पर से उन्हें अपनी निर्भरता कम कर देनी चाहिए। डी-एनबीएफसी के प्रबंध निदेशक ने बताया कि अगर आरबीआई की दिशा-निर्देशों को प्रभावी किया जाता है तो एनबीएफसी के पास जितनी भी जमा राशि है, उसे रिपेड करना पड़ेगा।


अगर आरबीआई इस दिशा में कोई कदम उठाता है तो सबसे ज्यादा प्रभाव रेसिडयूरी एनबीएफसी (आरएनबीएफसी) पर पड़ेगा। आरएनबीएफसी एक वित्तीय कंपनी है जो कि पूरी तरह सार्वजनिक जमा राशि पर ही निर्भर करती है। देश की तीन प्रमुख आरएनबीएफसी- सहारा इंडिया फाइनैंशियल कॉर्पोरेशन, पीयरलेस जनरल फाइनैंस और दिसारी इंडिया सेविंग एवं क्रेडिट कॉर्पोरेशन- 362 एनबीएफसी द्वारा जुटाए 24,665 करोड़ रुपये की जमा राशि में 91.7 फीसदी के लिए उत्तरदायी थी।


गौरतलब है कि पिछले साल, आरबीआई ने लखनऊ स्थित सहारा और कोलकाता स्थित पीयरलेस से आग्रह किया था कि वे आगामी वर्ष 2010 से सार्वजनिक जमा राशि लेने पर रोक लगा दें। हालांकि एक कंपनी के अधिकारी का कहना है कि अगर आरबीआई डी-एनबीएफसी से संबंधित किसी नीति में बदलाव लाती है तो देश की तीन आरएनबीएफसी किसी अन्य मॉडल में अपने आप को बदल लेंगी।


पीयरलेस जनरल फाइनैंस के प्रबंध निदेशक एस के रॉय द्वारा कंपनी की वेबसाइट पर जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक, ”आरएनबीसी श्रेणी में हमारे उत्पादों की रेंज काफी बड़ी है। लेकिन इसके बावजूद इस कारोबार में अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखना काफी मुश्किल है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कठोर प्रावधानों की वजह से इस कारोबार का भविष्य अनिश्चित हो गया है।


लिहाजा भविष्य में अपनी स्थिति सुनिश्चित करने के लिए हम एफपीडी (फाइनैंशियल प्रॉडक्ट डिस्ट्रिब्यूशन) व्यवसाय की ओर रुख कर सकते हैं।”यह भी विदित है कि पीयरलेस पहले से ही खुद को एफपीडी कंपनी में तब्दील करने की दिशा में अग्रसर है।


यह कंपनी म्युचुअल फंडों की वितरण, बीमा पॉलिसी (जीवन और गैर-जीवन), ऋण उत्पादों और क्रेडिट कॉर्ड के लिए ताल-मेल बैठाना शुरू कर चुकी है। यही नहीं कंपनी जमाकर्ताओं से विभिन्न वित्तीय उत्पादों की खरीद के लिए जमा राशि इस्तेमाल करने के लिए भी आग्रह कर रही है। हालांकि इस संदर्भ में सहारा के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है।


बहरहाल, अगर आरएनबीएफसी को अलग करके देखा जाए तो अधिकांश एनबीएफसी के कुल संसाधनों में 5 से 10 फीसदी की उगाही सार्वजनिक जमा राशि से ही होती है। बीते तीन सालों में इसके महत्व में गिरावट देखने को मिली है। जबकि अन्य स्रोतों जैसे कि बाजार ऋण और बैंक फाइनैंस के महत्त्व में इजाफा हुआ है।


गिनती शुरू


डी-एनबीएफसी यह उम्मीद कर रही है कि उन्हें नॉन-डिपोजिट-टेकिंग कंपनियों या बैंकों या फिर किसी अन्य मॉडल में खुद को बदलने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।
पिछले साल, आरबीआई ने लखनऊ स्थित सहारा और कोलकाता स्थित पीयरलेस से आग्रह किया था कि वे आगामी वर्ष 2010 से सार्वजनिक जमा राशि लेने पर रोक लगाएं।


अगर आरएनबीएफसी को अलग करके देखा जाए तो अधिकांश एनबीएफसी के कुल संसाधनों में 5 से 10 फीसदी की उगाही सार्वजनिक जमा राशि से होती है।

First Published - April 23, 2008 | 11:03 PM IST

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