बकाया राशि में जबरदस्त बढ़ोतरी और गैरनिष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के मद्देनजर के्डिट कार्ड कंपनियां बहुत कड़े कदम उठा रही हैं।
इसके तहत कंपनियां ग्राहकों को नए कार्ड जारी करने में कमी करने के साथ ही मौजूदा ग्राहकों की के्रडिट ऋण सीमा में भी कटौती कर रही हैं।
सिटी बैंक इंडिया के बिजनेस प्रबंधक (कार्ड) संदीप भल्ला का कहना है, ‘इस इंडस्ट्री में पिछले कुछ सालों में लगभग 30-40 फीसदी की रफ्तार से बढ़ोतरी हुई है। लेकिन हाल के दिनों में तरलता की कमी और गैर निष्पादित संपत्तियों जैसे मुद्दों की वजह से इसकी वृद्धि अब 5-10 फीसदी की दर से हो रही है।’ उनका कहना है, ‘कार्ड जारी करने वालों पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि वे बिजनेस मॉडल का मूल्यांकन करें।’
रिजर्व बैंक के आंकड़े कहते हैं कि पिछले एक साल में कुल के्रडिट कार्ड के बकाए में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पिछले दिसंबर में यह बकाया राशि बढ़कर 29,359 करोड़ रुपये हो गई जो इससे पहले वाले साल की इसी अवधि में 17,306 करोड़ रुपये थी।
इसी तरह एनपीए में बढ़ोतरी भी सतर्क होने का संकेत दे रही है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड के महाप्रबंधक और प्रमुख आर. एल. प्रसाद (कार्ड और पर्सनल लोन) का कहना है, ‘इस इंडस्ट्री में औसत एनपीए 15-16 फीसदी है। एक साल में यह लगभग 60 फीसदी की बढ़ोतरी है।’
रेटिंग एजेंसी इक्रा (आईसीआरए)के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक का एनपीए 30 सितंबर 2008 तक 21.22 फीसदीक के स्तर पर रहा है। इसको हल करने के लिए कंपनी ने इस पर प्रतिबंध और इसके निपटारे का विकल्प चुना है।
पिछले छह महीने में के्रडिट कार्ड में 34 लाख से 30 लाख की गिरावट आई है। एसबीआई कार्ड के सीईओ दिवाकर गुप्ता ने एक साल पहले कहा था कि हर महीने 75,000 कार्ड जारी किए जा रहे हैं। अब उनका भी यही कहना है कि इस संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है।
जिन शहरों में यह कार्ड जारी किए जाते थे उनकी संख्या में भी कमी आई है और ये शहर अब 115 से कम होकर 35 शहर हो गए हैं। कुछ दूसरे बैंक भी खुद को केवल छह मेट्रो शहरों तक ही सीमित रख रहे हैं।
इक्रा की उपाध्यक्ष और सह-प्रमुख विभा बत्रा का कहना है, ‘कुछ के्रडिट कार्ड कंपनियों ने नए कार्ड जारी करने में लगभग 70 फीसदी की कटौती करनी शुरू कर दी है। कंपनियां अब बेहतर ग्राहकों और उधार्रकत्ताओं को लेकर काफी सतर्क हैं।’
दूसरे उपायों के तहत आधारभूत पात्रता मानकों को भी थोड़ा कड़ा किया गया है। इसी के तहत वेतन सीमा को 8,000-10,000 से 20,000-30,000 रुपये बढ़ा दिया गया है। बैंकरों का कहना है कि वे ज्यादा वेतन वाले ग्राहकों के साथ सहज महसूस करेंगे।
मल्टीनेशनल बैंकों तो एक कदम आगे ही चले गए हैं, उन्होंने हर साल न्यूनतम 10 लाख रुपये वेतन की शर्त रखी है। एक वरिष्ठ बैंकर का कहना है कि कम वेतन वाले ग्राहकों के विकल्प रखने से वित्तीय कुप्रबंधन की संभावना ज्यादा होती है।