भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाहियों के लिए अपने वृद्घि अनुमान में कटौती की है। हालांकि, यह कटौती मामूली है। यह कटौती जिंसों की कीमतों और वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव, वैश्विक आपूर्ति में अवरोधों के बरकरार रहने और ओमिक्रोन की वजह से की गई है।
हालांकि, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्घि दर उम्मीद से बेहतर रहने के कारण समिति को पूरे वित्त वर्ष 2021-22 के लिए वृद्घि दर अनुमान को 9.5 फीसदी पर बरकरार रखने के लिए प्रेरित किया।
समिति ने तीसरी तिमाही के लिए अपने वृद्घि अनुमान को पहले की 6.8 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी और चौथी तिमाही के अनुमान को 6.1 फीसदी से कम कर 6 फीसदी कर दिया है। दूसरी तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी जबकि समिति ने इसके लिए 7.9 फीसदी का अनुमान जताया था।
सरकार ने हाल ही में कहा था कि महामारी से उपजी बरबादी के बाद अर्थव्यवस्था सुधार के मजबूत संकेत दे रही है। 22 आर्थिक संकेतकों में से 19 ने कोविड से पूर्व के स्तरों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। इसके बावजूद एमपीसी ने अनुमान में यह कटौती की है। सरकार की ओर से कहा गया था कि इस वर्ष के सितंबर, अक्टूबर और नवंबर महीने में इन 19 संकेतकों का स्तर महामारी से पूर्व 2019 के समान महीनों की तुलना में दर्ज स्तर से ऊपर है।
इन संकेतकों में इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह (ईटीसी) और यूपीआई से भुगतान शामिल है। अक्टूबर महीने में ईटीसी 108.2 करोड़ रुपये पर था जो कोविड से पूर्व 2019 के स्तरों से 157 फीसदी अधिक था और यूपीआई लेनदेन की संख्या 4.22 अरब के साथ करीब चार गुना अधिक है। अन्य संकेतकों में व्यापारिक आयात, ई-वे बिल, कोयला उत्पादन, रेल से माल ढुलाई, उर्वरकों की बिक्री, बिजली खपत, ट्रैक्टरों की बिक्री, सीमेंट का उत्पादन, बंदरगाह पर कार्गो का यातायात, ईंधन खपत, हवाई कार्गो, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और प्रमुख क्षेत्र का प्रदर्शन शामिल है।
हालांकि, रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात पर जोर दिया कि महामारी की दूसरी लहर के कारण जो रिकवरी बाधित हुई थी उसमें सुधार हो रहा है लेकिन इतनी भी मजबूत नहीं है कि यह अपने दम पर आगे बढ़े और टिकाऊ हो। उनके मुताबिक आने वाली सूचनाओं से संकेत मिलता है कि त्योहारी सीजन में दबी हुई मांग के जोर पकडऩे से खपत की मांग में सुधार हो रहा है। ग्रामीण मांग में मजबूती बनी हुई है और कृषि तथा संबंधित गतिविधियों के जबरदस्त प्रदर्शन से कृषि से संबंधित रोजगार बढ़ रहे हैं। दास ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क और राज्यों के वैट में की गई हालिया कटौती से क्रय शक्ति में इजाफा होने के कारण खपत की मांग को मजबूती मिलनी चाहिए।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि एमपीसी ने तीसरी और चौथी तिमाही के लिए वृद्घि अनुमानों को घटा दिया है जबकि अनुदानों के लिए सरकार की दूसरी पूरक मांग में शुद्घ रूप से अनुमान से अधिक धन गया है जिससे पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022 की दूसरी तिमाही में उम्मीद से अधिक वृद्घि परिणाम को दबी हुई मांग के बाहर आने से दम मिला। उन्होंने कहा कि भले ही घरेलू रिकवरी को लेकर उम्मीद जताई गई है लेकिन साथ ही यह भी रेखांकित किया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था न तो वैश्विक उतार-चढ़ाव और न ही कोविड-19 की ताजा लहरों से प्रतिरक्षित है।
