वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ऋण वितरण में असंतुलन को लेकर चिंता जताई है। मंत्रालय का कहना है कि वित्त वर्ष 2025 तक पिछले 5 साल में खासकर श्रम केंद्रित उद्योग की श्रेणी में ऋण वृद्धि सुस्त रही है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक इस अवधि के दौरान 100 करोड़ रुपये से ऊपर के सेग्मेंट में ऋण 17.7 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि विनिर्माण और खनन जैसे क्षेत्रों को सरकारी बैंकों द्वारा दिया गया कर्ज सिर्फ 1.3 प्रतिशत बढ़ा है।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारत से आयात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगा दिया गया है और श्रम वाले निर्यात केंद्रित क्षेत्रों में नौकरियां जाने का जोखिम है। अधिकारी ने कहा, ‘विनिर्माण और खनन क्षेत्र में ऋण वृद्धि चिंताजनक है। सरकारी बैंकों को इन क्षेत्रों को ऋण बढ़ाने की जरूरत है।’
अधिकारी ने आगे कहा कि 10 करोड़ रुपये से नीचे की श्रेणी में कृषि और खुदरा क्षेत्रों को दिया गया ऋण लक्ष्य के क्रमशः 92 प्रतिशत और 98 प्रतिशत पर पहुंच गया है। अधिकारी ने कहा, ‘कृषि और खुदरा क्षेत्र को दिए गए ऋण ने अन्य क्षेत्रों के कर्ज को पीछे छोड़ दिया है। इससे पता चलता है कि ऋण वृद्धि छोटे छोटे ऋणों से संचालित है। इससे सरकारी बैंकों द्वारा बड़े ऋण देने के जोखिम से बचने की कवायद का भी पता चलता है।’
सूत्रों ने आगे कहा कि 100 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण में कुल वृद्धि का 87 प्रतिशत हिस्सा ‘वित्त, व्यापार, व्यावसायिक सेवाओं, बिजली और निर्माण’ से था, जो कि मुख्य इंजीनियरिंग, खनन, विनिर्माण क्षेत्र को उच्च मूल्य के ऋण के सीमित समर्थन को दर्शाता है।
सरकारी बैंकों द्वारा दिए गए 10 करोड़ रुपये तक के ऋण में पिछले 5 साल के दौरान 13.1 प्रतिशत की संयुक्त सालना वृद्धि दर (सीएजीआर) दर्ज की गई है। वहीं 10 से 100 करोड़ रुपये के बीच के मझोले आकार के ऋण की सीएजीआर महज 0.1 प्रतिशत रही है। इसके विपरीत 100 करोड़ रुपये से ऊपर का ऋण 8.9 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ा है।
वहीं निजी क्षेत्र के बैंकों की ऋण की रफ्तार मजबूत रही है। 10 करोड़ रुपये तक के ऋण में 17.9 प्रतिशत सीएजीआर की वृद्धि हुई है, जबकि 10 से 100 करोड़ रुपये के कर्ज की संयुक्त सालाना वृद्धि दर 14.7 प्रतिशत और 100 करोड़ रुपये से ऊपर के ऋण की संयुक्त सालाना वृद्धि दर पिछले 5 साल के दौरान 9.3 प्रतिशत रही है।