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एलआईसी: मोटी राशि के दावेदार नहीं

Last Updated- December 11, 2022 | 9:16 PM IST

भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के पास बिना दावे की इतनी रकम पड़ी है कि कई मंत्रालयों के बजट भी उसके सामने बौने नजर आएं। एलआईसी ने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) का जो ब्योरा जमा कराया है, उसके मुताबिक देश की इस सबसे बड़ी बीमा कंपनी पास 21,539.5 करोड़ रुपये की ऐसी धनराशि पड़ी है, जिसके दावेदार ही नहीं हैं।  ये नियामकीय दस्तावेज चालू वित्त वर्ष में पहली बार एलआईसी के स्टॉक एक्सचेंज के जरिये लोगों को शेयर बेचने से पहले दाखिल किए गए हैं। यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी सार्वजनिक सूचीबद्धता होगी। 
 
बिना दावे की इस रकम में निपट चुके वे दावे भी शामिल हैं, जिनका भुगतान नहीं किया गया है। ऐसी धनराशि जो पॉलिसी के परिपक्व होने पर बकाया बन गईं। इसमें अतिरिक्त भुगतान राशि भी शामिल हैं, जिन्हें रिफंड किया जाना है। सबसे बड़ी राशि उन मामलों की है, जिनमें पॉलिसी परिपक्व हो गईं लेकिन वह धन निवेशकों तक नहीं पहुंचा है। यह धनराशि 19,285.6 करोड़ रुपये या बिना दावे की कुल राशि की करीब 90 फीसदी है।  यह धनराशि बहुत से केंद्रीय मंत्रालयों के बजट से भी अधिक है। यह नागर विमानन मंत्रालय के बजट (10,667 करोड़ रुपये), इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (14,300 करोड़ रुपये), विदेश मंत्रालय (17,250 करोड़ रुपये) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (3,030 करोड़ रुपये) के बजट से अधिक है। मार्च 2021 से छह महीनों में बिना दावे की कुल राशि 16.5 फीसदी बढ़ी है। 
 
पिछले छह महीनों के दौरान 4,346.5 करोड़ रुपये बिना दावे की राशि के रूप में हस्तांतरित किए गए हैं। इस अवधि में कुल 1,527.6 करोड़ रुपये दावों के रूप में भुगतान किए गए हैं। हालांकि बड़ी संख्या में दावे काफी समय से लंबित पड़े हैं। सितंबर 2021 के आंकड़े दर्शाते हैं कि बकाया बिना दावे की राशि में से आधी तीन साल या अधिक समय से लंबित है।  वर्ष 2015 में बने कानून के मुताबिक 10 साल से अधिक समय से जिस राशि का दावा नहीं किया जा रहा है, उसे वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (एससीडब्ल्यूएफ) में हस्तांतरित करना जरूरी है। शेयर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास जमा दस्तावेजों में कहा गया है, ‘सरकार ने अधिसूचित किया है कि सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियां उन इकाइयों में शामिल होंगी, जिन्हें बिना दावे की धनराशि को वित्त अधिनियम 2015 और वित्त अधिनियम 2016 के अनुपालन में एससीडब्ल्यूएफ में हस्तांतरित करना होगा।’

First Published - February 14, 2022 | 10:35 PM IST

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Last Updated- December 11, 2022 | 9:16 PM IST

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बिना दावे की इस रकम में निपट चुके वे दावे भी शामिल हैं, जिनका भुगतान नहीं किया गया है। ऐसी धनराशि जो पॉलिसी के परिपक्व होने पर बकाया बन गईं। इसमें अतिरिक्त भुगतान राशि भी शामिल हैं, जिन्हें रिफंड किया जाना है। सबसे बड़ी राशि उन मामलों की है, जिनमें पॉलिसी परिपक्व हो गईं लेकिन वह धन निवेशकों तक नहीं पहुंचा है। यह धनराशि 19,285.6 करोड़ रुपये या बिना दावे की कुल राशि की करीब 90 फीसदी है।  यह धनराशि बहुत से केंद्रीय मंत्रालयों के बजट से भी अधिक है। यह नागर विमानन मंत्रालय के बजट (10,667 करोड़ रुपये), इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (14,300 करोड़ रुपये), विदेश मंत्रालय (17,250 करोड़ रुपये) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (3,030 करोड़ रुपये) के बजट से अधिक है। मार्च 2021 से छह महीनों में बिना दावे की कुल राशि 16.5 फीसदी बढ़ी है। 
 
पिछले छह महीनों के दौरान 4,346.5 करोड़ रुपये बिना दावे की राशि के रूप में हस्तांतरित किए गए हैं। इस अवधि में कुल 1,527.6 करोड़ रुपये दावों के रूप में भुगतान किए गए हैं। हालांकि बड़ी संख्या में दावे काफी समय से लंबित पड़े हैं। सितंबर 2021 के आंकड़े दर्शाते हैं कि बकाया बिना दावे की राशि में से आधी तीन साल या अधिक समय से लंबित है।  वर्ष 2015 में बने कानून के मुताबिक 10 साल से अधिक समय से जिस राशि का दावा नहीं किया जा रहा है, उसे वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (एससीडब्ल्यूएफ) में हस्तांतरित करना जरूरी है। शेयर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास जमा दस्तावेजों में कहा गया है, ‘सरकार ने अधिसूचित किया है कि सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियां उन इकाइयों में शामिल होंगी, जिन्हें बिना दावे की धनराशि को वित्त अधिनियम 2015 और वित्त अधिनियम 2016 के अनुपालन में एससीडब्ल्यूएफ में हस्तांतरित करना होगा।’

First Published - February 14, 2022 | 10:35 PM IST

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