ऋणदाता मुद्रा योजना में 50,000 से 10 लाख रुपये की श्रेणियों में संख्या में अपना आधार बढ़ाकर कारोबार का इजाफा करने के इच्छुक हैं। वित्त मंत्रालय की प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई ) पर जारी आंकड़ों के मुताबिक ऋणों का असमान्य वितरण हुआ है। इस क्रम में शिशु श्रेणी (50,000 रुपये तक में) में 83 फीसदी ऋण (संख्या के मामले में) रहे। दो अन्य श्रेणियों किशोर (50,000 से 5 लाख रुपये) में 15 फीसदी और तरुण श्रेणी में (5 लाख से 10 लाख) में 2 फीसदी ऋणों की संख्या थी।
सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यकारियों के मुताबिक इस योजना में बहुत अच्छे ढंग में काम किया है और इसमें आमूलचूल बदलाव की जरूरत नहीं है। इस योजना के विस्तार के साथ इसे लागू करने में कुछ बदलवा की जरूरत होगी और यह ऋणदाता के कारोबारी संचालन के स्तर पर होगी। उन्होंने जोर दिया कि अधिक राशि के ऋण की हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है। इससे रोजगार सृजन की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। बैंकरों के मुताबिक शिशु श्रेणी से ध्यान हटाने की कोई जरूरत नहीं होनी। यह योजना अपने आठ साल पूरे कर चुकी है। इस योजना को शुरू करने का ध्येय यह था कि समाज में सबसे निचले स्तर तक वित्तीय सेवाओं की पहुंच को बेहतर बनाया जाए।
मुद्रा योजना के तहत सावधि ऋण और कार्यशील पूंजी के लिए धन मुहैया करवाया जाता है। यह विनिर्माण, कारोबार और सेवा क्षेत्रों के लिए आय बढ़ाने के लिए है। इस योजना के दायरे में खेती से जुड़ी गतिविधियां जैसे कुक्कुट पालन, डेयरी और मधुमक्खी पालन को शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में शुरुआत से लेकर अब तक 23.2 लाख करोड़ रुपये के 40.8 करोड़ ऋण मंजूर किए गए हैं।