रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने अनुसूचित बैंकों को निर्देश दिया है कि वे अपने प्रत्येक ग्राहक का प्रोफाइल बनाते समय यह भी तय करते जाएं कि उनके ग्राहक किस तरह की रिस्क कैटेगरी में हैं।
उनकी कैटगरी की समय समय पर समीक्षा की जाए, इससे उन्हे अपने ग्राहकों की बेहतर मॉनिटरिंग का मौका मिलेगा और लेनदेन में किसी भी तरह की अनियमितता होने की जानकारी भी समय से मिल सकेगी।
रिजर्व बैंक ने इसके लिए कोई अच्छा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने की भी सलाह दी है। जो खातों में किसी भी अनियमितता की हालत में तुरंत ही एलर्ट कर सके और साथ ही साथ ग्राहक की रिस्क यानी जोखिम की कैटगरी को भी अपडेट करता रहे। यह सॉफ्टवेयर संदेहास्पद लेनदेन का भी ख्याल रखेगा।
बैंकों को इलेक्ट्रानिक फार्मैट में फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट को कैश ट्रांजैक्शन रिपोर्ट (सीटीआर) और सस्पिशस ट्रांजैक्शन रिपोर्ट (एसटीआर) सौंपनी होती है। हालांकि कई बैंक यह रिपोर्ट नियमित रूप से नहीं देते हैं। रिजर्व बैंक का कहना है कि जिन बैंकों की शाखाएं कंप्यूटरीकृ त होनी बाकी हैं, वो बैंक अपनी रिपोर्ट इलेक्ट्रानिक फार्मैट में करके भिजवा सकते हैं।
बैंकों को यह भी सलाह दी गई है कि ग्राहकों को इस रिपोर्ट की कोई जानकारी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि कई बार ग्राहकों से उनके द्वारा किए गए अनियमित लेन-देन का ब्यौरा मांगे जाने पर वह उससे संबंधित कोई भी दस्तावेज देने से मना कर देते हैं। बैंकों को खुद से इस पर नजर रखनी होगी और हरेक ऐसे किए गए लेन देन की रपट एफआईयू को भेजते रहनी होंगीं।ग्राहकों की रिस्क कैटेगरी मिलने के बाद बैड लोन पर लगाम लगाने में बैंकों को आसानी होगी।