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मुझे नहीं लगता कि एआईजी भारत में अपनी हिस्सेदारी बेचेगा

Last Updated- December 07, 2022 | 10:04 PM IST

क्या टाटा और एआईजी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है और क्या आपको लगता है कि एआईजी जीवन बीमा और गैर जीवन बीमा में अपनी हिस्सेदारी टाटा को बेच देगा?

नहीं, एआईजी इंडिया ने तो अभी तक रिपोर्ट नही सौंपी हैं। साथ ही ऐसा लगता भी नही है कि ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न हो रही है कि एआईजी अपनी हिस्सेदारी टाटा एआईजी लाइफ या  फिर टाटा एआईजी जनरल में बेचने जा रही है अगर एआईजी को अपनी परिसंपत्ति बेचनी ही होती तो उसने फेड बैंक जाने से पहले ही इस काम को अंजाम दे दिया होता।

एआईजी के द्वारा जिस स्तर का कर्ज फेड बैंक से लिया गया है वह उसकी परिसंपत्ति मूल्य के मुकाबले कहीं कम है। उन्हें नकद प्रवाह की समस्या हो सकी होगी पर उन्होने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। नतीजतन मुझे नही लगता कि एआईजी भारत की दो कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है।

भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) इक्विटी निवेश पर कुछ ज्यादा लिमिट चाहता है। साथ ही उसने कुछ और लचीलेपन की भी मांग की है। आपने इस पर क्या फैसला लिया है?

एलआईसी के भविष्य का निवेश नए निवेश नियमों के तहत ही  होगा। यह पुराने निवेश पर नहीं लागू होगा। एलआईसी के चेयरमैन एवं उनकी टीम ने मुझसे मुलाकात में बताया कि किस प्रकार की परेशानियां उन्हें हो सकती हैं।

खासकर जब निवेश का बड़ा वॉल्यूम कतार में हैं। जबकि एक्सपोजर के लिए तार्किक नियमों का पालन ज्यादा अहम है। हम नही चाहते कि हमारी बीमा कंपनियां ज्यादा एक्सपोज्ड् हों।

हम एक पारंपरिक तरीका अपनाना चाहते हैं और स्थायित्व हमारा केंद्र होगा। हालांकि एलआईसी के साथ हमारी बातचीत जारी है।

गैर-जीवन बीमा कंपनियां कब पॉलिसी की वर्डिंग्स (शब्दों) को खुद से तय कर सकेंगीं?

ऐसा करने के लिए हमें एक बहुमत बनाने की जरूरत है और दिसंबर तक हमें इसकी उम्मीद है कि यह काम पूरा कर लिया जाए। पहली चीज जिस पर हमें बहुमत बनाने की दरकार है वो यह कि वर्डिंग्स(शब्द) एक खास अर्थ रखते हैं।

मसलन भारत में बीमा में आग का अर्थ  सिर्फ आग ही नही है बल्कि इसके कई और अर्थ भी हैं। दूसरी चीज जो सालों से चिंता का सबब बनी हुई हैं, कि कई बार विवादास्पद शब्दों को अदालत से स्पष्ट कराया गया है।

सो, अगर हम इस वक्त बदलाव करते हैं और इसकी जगह कोई नया शब्द लाते हैं तो फिर वहां भी पचड़े पड़ सकते हैं। अत: जरूरत इस चीज की है कि अदालत से स्पष्ट किए गए शब्दों का ही इस्तेमाल किया जाए ताकि विवाद उत्पन्न ही न हों।  

क्या आप यह सोचते हैं कि बैंकों को भी बहु बीमा कंपनियों के उत्पाद बेचने की स्वीकृति दी जानी चाहिए?

इस वक्त तो मैं दोनो ही विकल्पों(एकल और बहुल उत्पादों की बिक्री) का मूल्यांकन कर रहा हूं। आज के दौर में बैनकैश्योरेंस प्रारूप में 70 से 75 फीसदी कारोबार पांच बैंकों के साथ हो रहा है।

सो हमें सबूत की भी दरकार है जो अब तक मिलनी बाकी है कि यह सेवा को इंप्रूव कर पाता है या नहीं। बैंक अगर बहु-उत्पाद, बहु बीमा कंपनी व्यवस्था को अपनाना चाहती है तो फिर बैंक यह काम एक ब्रोकिंग कंपनी खोलकर भी कर सकता है। ब्रोकिंग फिर बीमा नियामक के तहत आता भी है।

आप स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों को किस प्रकार सरल करेंगे?

हम यह बहुमत बना पाने में सफल साबित हो सके हैं कि पहले से मौजूद बीमारी का मतलब क्या है और इसके लिए जो मानक बनेंगे वह देशभर में लागू होंगे। दूसरा मसला उम्र की गणना करने का है क्योंकि विभिन्न कंपनियां विभिन्न प्रकार से उम्र की गणना करती हैं।

हालांकि अब इसको लेकर हम एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर आ चुके हैं। इनके अलावा कुछ दूसरे मसलों का भी हल निकाला जाना बाकी है। किसे कवर किए जाने की दरकार है और किन किन स्थितियों में कवर अनुपलब्ध होंगे उन सबका निपटारा किया जाना है।

First Published - September 23, 2008 | 10:28 PM IST

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