भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अनिश्चित तौर पर दो विपरीत लक्ष्यों को संतुलित बना रहा है और अर्थशास्त्रियों ने इन पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। ये लक्ष्य हैं – घरेलू बाजार में आसान वित्तीय स्थिति बनाए रखना, जबकि बाह्य स्थिरता सुनिश्चित करना।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत ‘इम्पोसिबल ट्रिनिटी’ की त्रि-आयामी स्थिति से गुजर रहा है। आरबीआई स्वतंत्र पूंजी खाते और लचीली विमिय दरों के परिवेश में स्वतंत्र मौद्रिक नीति (घरेलू ब्याज दरें तय करना) पर अमल नहीं कर सकता है। केंद्रीय बैंक के लिए स्थिति अब इसे लेकर और ज्यादा जटिल है कि वित्तीय बाजार की स्थिरता सभी अन्य तीनों लक्ष्यों के विपरीत है। इसलिए एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने इसे ‘क्वाड्रीलेमा’ नाम भी दिया है।
भवन एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च के सहायक प्रोफेसर (फाइनैंस) अनंत नारायण ने एक ताजा रिपोर्ट में लिखा है, ‘इम्पोसिबल ट्रिनिटी के पहलुओं पर बेहतर ढंग से विचार किए जाने की जरूरत होगी। इन पहलुओं में मौद्रिक नीति, पूंजी प्रवाह और मौद्रिक बाजारों में परस्पर क्रिया शामिल है। ब्याज दरों में अंतर से हमारे मौद्रिक बाजार और व्यापार प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है। इसी तरह से, अत्यधिक आरबीआई केंद्रित बाजार हस्तक्षेप से भारी गुप्त लागत को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे बैंकों पर बोझ पड़ सकता है।’
अनंत नारायण ने मौद्रिक नीतिगत ढांचे की तर्ज पर विदेशी एक्सचेंज प्रबंधन ढांचे की वकालत की है। नारायण ने लिखा है, ‘आरबीआई के हस्तक्षेप की प्रवृत्ति ने मौद्रिक दरों के निर्धारक के तौर पर पेश किया है, भले ही उसकी नीति या आशय कुछ भी हो।’
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आरबीआई का ज्यादातर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अपारदर्शी है। आरबीआई का कहना है कि वह विनिमय दर की अस्थिरता दूर करने के लिए हस्तक्षेप करता है। देश इस साल फरवरी तक 27 अरब डॉलर के चालू खाता अधिशेष से गुजर रहा था। वित्त वर्ष 2021 में फरवरी तक, भारत का शुद्घ विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) प्रवाह 41 अरब डॉलर था, और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) 36 अरब डॉलर था। 104 अरब डॉलर के नारायण का कहना है कि मजबूत विदेशी मुद्रा प्रवाह के बावजूद सामान्य संदर्भ में रुपये के मुकाबले डॉलर महज 2 प्रतिशत कमजोर हुआ और यह मार्च 2020 के 75.30 से कमजोर होकर फरवरी 2021 में 73.90 पर था।
यह तब है जब वैश्विक डॉलर सूचकांक 99 से 8.2 प्रतिशत गिरकर 90.0 पर आ गया।
हाजिर बाजार में आरबीआई की 74 अरब डॉलर की डॉलर खरीदारी और वायदा बाजार में अन्य 79 अरब डॉलर खरीदारी इस नरमी की वजह थी। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा कर आरबीआई त्रि-आयामी अनिश्चितता की स्थिति में आ सकता है। वह मौद्रिक दर को स्थिर बनाए रखकर पूंजी प्रवाह अवशोषित कर रहा है। लेकिन ब्याज दरें नीचे बनाए रखकर वह उन्नत देश की ब्याज दर और घरेलू दरों के बीच अंतर घटा रहा है।
ऐक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौगत भट्टाचार्य ने कहा, ‘आरबीआई ने घरेलू ब्याज दरों, हाजिर और रुपया विनिमय दरों, विदेशी मुद्रा प्रवाह में तेजी और घरेलू तरलता के चुनौतीपूर्ण लक्ष्यों का मजबूती के साथ प्रबंधन किया है। ये समस्याएं एक साल से ज्यादा समय से बनी हुई हैं।’ भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समूह में मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोषि का कहना है कि मुद्रास्फीति परिदृश्य अब आपूर्ति संबंधित समस्याओं की वजह से कुछ हद तक अनिश्चित बना हुआ है।