भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उन बैंकों से आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा है जिनका सत्यम कंप्यूटर्स सर्विसेज और इसकी सहयोगी कंपनियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर ऋण और इक्विटी में निवेश है।
इन आंकड़ों में वैसे निवेश भी शामिल होंगे जो भारतीय बैंकों की अंतरराष्ट्रीय शाखा द्वारा कंपनी और उससे संबंधित पक्षों में किया गया है। इस घटनाक्रम से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सर्वप्रथम बैंकों से अल्पावधि के ऋण माफ करने को कहा जा सकता है ।
जिसकी बदौलत कंपनी ने ब्रोकिंग हाउस के साथ मार्जिन की राशि बरकरार रखी और जिसे शेयर की कीमतों में भारी गिरावट के बाद बाजार में शेयरों की खरीद-फरोख्त बनाए रखने के लिए कस्टोडियन के पास जमा करवाया था।
दूसरा, सीधे इक्विटी में जिनका निवेश संस्थागत प्रकार का है और दीर्घावधि के ऋणों के लिए ऋण वसूली का आम रास्ता अपनाने को कहा जा सकता है।
बैंक कंपनी को अपने रियल एस्टेट निवेश में से भी फंड जारी करने को कह सकता है। इन मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए सभी संबंधित बैंकों की बैठक होगी।
चूंकि कंपनी ने वित्तीय अनियमितताओं को स्वीकार किया है इस लिए विभिन्न कर्जदाताओं की बकाया रकम गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाों की श्रेणी में आ सकती हैं (अगर कर्ज की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया)।
भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसी परिस्थिति में, बैंक को सबसे पहले ऐसी परिसंपत्ति का गैर निष्पादित वर्ग में रखने और ऐसे बकायों के लिए पर्याप्त प्रावधान करने की जरूरत है। इसके बाद ही बैंक कंपनी के विरूध्द ऋण-वसूली की प्रक्रिया की शुरुआत कर सकती है।
इस कंपनी में भारतीय स्टेट बैंक का निवेश लगभग 200 करोड़ रुपये का माना जा रहा है। हालांकि, निवेश की वास्तविक राशि और वह किन रूपों में किया गया है यह अभी सुनिश्चित नहीं की जा सकी है।
सितंबर 2008 तक कंपनी के बैलेंस शीट के अनुसार सत्यम का कुल सुरक्षित ऋण लगभग 253 करोड़ रुपये का था। सूत्रों ने बताया कि नकदी की राशि बढ़ा-चढ़ा कर बताए जाने के कारण ये ऋण गैर-निष्पादित वर्ग में आ सकते हैं।
इसी अवधि में कंपनी का असुरक्षित ऋण लगभग 235 करोड़ रुपये का था। सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार किसी भी बैंक का निवेश सत्यम में एक प्रतिशत से अधिक का निवेश नहीं है।
सूत्रों ने बताया कि मार्जिन राशि के रूप में दिए गए ऋण पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि इन्हें मार्क टु मार्केट होने में वक्त नहीं लगेगा। इस पूरी प्रक्रिया का प्रभाव बैंकों के बैलेंस शीट पर पड़ेगा दो महीने बाद जिसकी बंदी होने वाली है।
एक सूत्र ने कहा कि यह सब वैसे समय में हो रहा है जब आर्थिक मंदी की वजह से खाते किसी न किसी तरह से गैर-निष्पादित वर्ग में शामिल होते जा रहे हैं।
‘मार्क टु मार्केट’ एक प्रक्रिया है जिसके तहत शेयर के वर्तमान मूल्य के आधार पर निवेश का मूल्यांकन किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि कंपनी के शेयरों की कीमतों में जबरदस्त गिरावट आई है और बाजार सूचकांक से इसे हटाए जाने की प्रक्रिया चल रही है।