भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा है कि भारत में बैंकिंग क्षेत्र द्वारा उन कर्जदारों के करीब दो लाख करोड़ रुपये के ऋणों को पुनर्गठित किए जाने की संभावना है जो कोविड-19 महामारी से प्रभावित हुए हैं। कर्ज पुनर्गठन के लिए इस अनुमान (2,00,000 करोड़ रुपये के) में कॉरपोरेट, एमएसएमई और रिटेल सेगमेंट को शामिल किया गया है। एसबीआई के लिए, अनुमान सभी सेगमेंट के लिए 20,000 करोड़ रुपये के दायरे में हैं। फिलहाल पुनर्गठन के लिए मांग बहुत ज्यादा नहीं है। एसबीआई के चेयरमैन का कहना है कि यदि आर्थिक सुधार में ज्यादा विलंब नहीं हुआ तो पुनर्गठन का दायरा सीमित बना रहेगा।
कुमार ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा आयोजित बैंकिंग वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा के ऋणों के साथ कुछ ही बड़ी कंपनियों द्वारा पुनर्गठन की राह पर आगे आने की संभावना है।
बड़ी कंपनियों के मामले में बैलेंस शीट को साफ-सुथरा बनाने और कर्ज घटाने के प्रयास पहले ही हो चुके हैं। इसके अलावा कंपनियां ऋण पुनर्गठन का ठप्पा लगने से भी बचना चाहती हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित हुए कुछ सेगमेंट में विमानन, आतिथ्य क्षेत्र और शॉपिंग मॉल शामिल हैं। उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट क्षेत्र को चार-पांच साल से संघर्ष करना पड़ा है और अब महामारी से समस्याएं और बढ़ गई हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सबसे बड़ी चिंता इसे लेकर है कि पुनर्गठन योजना का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। उन्होंने बैंकिंग नियामक द्वारा निर्धारित सख्त मानकों पर बात करते हुए कहा कि पिछले वर्षों में सफल समाधानों के बजाय विफलताएं ज्यादा दिखी हैं।
आरबीआई द्वारा कोविड-19 संबंधित संकट के लिए समाधान ढांचे पर नियुक्त विशेषज्ञ समिति (कामत पैनल के नाम से) ने महामारी की वजह से दबाव झेल रहे 26 क्षेत्रों के लिए वित्तीय मानक तैयार किए हैं।
समिति की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी से रिटेल और थोक व्यापार, सड़क, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वहीं, पहले से दबाव झेल रहे क्षेत्रों, जैसे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), विद्युत, इस्पात, रियल एस्टेट आदि के लिए महामारी से समस्याओं में इजाफा हुआ है। आर्थिक सुधार का जिक्र करते हुए एसबीआई प्रमुख ने कहा कि अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के प्रयासों को समर्थन देने के लिए मजबूत वित्तीय प्रणाली जरूरी है और फंसे कर्ज जैसे जोखिमों को कम करने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश से अर्थव्यवस्था को सुधार की राह पर लाने में मदद मिलेगी। पांच वर्षों के इन्फ्रास्ट्रक्चर ऑर्डर प्रवाह (110 लाख करोड़ रुपये या 1.5 लाख करोड़ डॉलर के) से अर्थव्यवस्था को काफी हद तक ताकत मिल सकेगी।