facebookmetapixel
भारत के नए उप राष्ट्रपति होंगे सीपी राधाकृष्णन, बी. सुदर्शन रेड्डी को हरायासेबी ने IPO नियमों में ढील दी, स्टार्टअप फाउंडर्स को ESOPs रखने की मिली मंजूरीNepal GenZ protests: नेपाल में क्यों भड़का प्रोटेस्ट? जानिए पूरा मामलाPhonePe का नया धमाका! अब Mutual Funds पर मिलेगा 10 मिनट में ₹2 करोड़ तक का लोनभारतीय परिवारों का तिमाही खर्च 2025 में 33% बढ़कर 56,000 रुपये हुआNepal GenZ protests: प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के बाद राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने भी दिया इस्तीफापीएम मोदी ने हिमाचल के लिए ₹1,500 करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया, मृतकों के परिजनों को ₹2 लाख की मददCredit risk funds: क्रेडिट रिस्क फंड्स में हाई रिटर्न के पीछे की क्या है हकीकत? जानिए किसे करना चाहिए निवेशITR Filing2025: देर से ITR फाइल करना पड़ सकता है महंगा, जानें कितनी बढ़ सकती है टैक्स देनदारीPower Stock में बन सकता है 33% तक मुनाफा, कंपनियों के ग्रोथ प्लान पर ब्रोकरेज की नजरें

बैंकों को भा रही है प्रमोटर फंडिंग

Last Updated- December 10, 2022 | 12:15 AM IST

एक ओर जहां अन्य क्षेत्र प्रमोटर फंडिंग से अपने को अलग कर रहे हैं वहीं सरकारी बैंक इसे कारोबार के बेहतर अवसर के रूप में देख रहे हैं।
हालांकि बैंकों ने अभी तक  सार्वजनिक तौर पर इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है लेकिन विश्लेषकों ने इस बात की इशारा किया है कि पिछले कुछ महीनों में कंपनियों ने 5,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं जिनमें अधिकांश राशि बैंकों से आई है। इन कंपनियों ने यह रकम रेटेट पेपर को जारी कर जुटाएं हैं।
जबकि कुछ ने अतिरिक्त ऋण के लिए जमानत के तौर  पर शेयर रखे हैं। इस बारे में सरकारी बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की अपेक्षा प्रमोटरों को सीधे तौर पर उधार देना अपेक्षाकृत ज्यादा आसान है।
उल्लेखनीय है कि एनबीएफसी को दिए जावे वाले ऋणों की ब्याज दर 15-17 फीसदी है, अब मार्जिन फंडिंग अब बहुत ज्यादा टिकाऊ नहीं रहा है और इसी कारण से सरकारी बैंक प्रमोटर फंडिंग कारोबार में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।
बैंकों के इस कारोबार में दिलचस्पी दिखाने को महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि परंपरागत रूप से सरकारी बैंक के लिए ऋण मुहैया कराना आईपीओ फंडिंग और शेयर ब्रोकरों तक ही सीमित था। प्रमोटर फंडिंग से जुड़े मुंबई स्थित वित्त कंपनी के एक अधिकारी ने कहा कि हाल में ही नकदी संबंधी मुद्दे के उजागर होने से पहले यह कारोबार करीब 20,000 करोड रुपये का था।
एडिलवाइस कैपिटल के एक अधिकारी ने कहा कि प्रमोटर फंडिंग के कारोबार में विदेशी बैंकों द्वारा स्थापित एनबीएफसी का एक बहुत बड़े हिस्से पर नियंत्रण था लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल के छाने के बाद कारोबार पर बुरा असर पडा और नकदी की हालत खराब हो गई।
अधिकारी ने कहा कि इसकेबाद उधार लेना काफी महंगा हो गया जिससे लागत और मुनाफे का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ गया और सामान्य ब्याज दरों पर ऋण लेना पहले की तरह आसान नहीं रह गया।
अधिकारी ने यह भी कहा कि कुछ वित्तीय कंपनियां अपने ग्राहकों को ऋण लेने के लिए सरकारी बैंकों के पास भेज रहीं हैं क्योंकि एनबीएफसी अब सस्ती दरों पर कर्ज मुहैया कराने में अपने को अक्षम पा रही हैं।
बैंकों के लिए अब सीधे कॉर्पोरेट को ऋण देना काफी भा रहा है क्योंकि इनको अब एनबीएफसी जैसी इकाइयों को ऋण देने की इजाजत नहीं है। हालांकि सरकारी बैंक अभी भी कुछ एनबीएफसी को कर्ज दे रहे हैं लेकिन वे सिर्फ कार्यशील पूंजी की जरूरत के लिए है और कारोबार विस्तार के लिए इनको किसी भी तरह सहायता नहीं दी जा रही है।

First Published - February 6, 2009 | 9:18 PM IST

संबंधित पोस्ट