एक ओर जहां अन्य क्षेत्र प्रमोटर फंडिंग से अपने को अलग कर रहे हैं वहीं सरकारी बैंक इसे कारोबार के बेहतर अवसर के रूप में देख रहे हैं।
हालांकि बैंकों ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है लेकिन विश्लेषकों ने इस बात की इशारा किया है कि पिछले कुछ महीनों में कंपनियों ने 5,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं जिनमें अधिकांश राशि बैंकों से आई है। इन कंपनियों ने यह रकम रेटेट पेपर को जारी कर जुटाएं हैं।
जबकि कुछ ने अतिरिक्त ऋण के लिए जमानत के तौर पर शेयर रखे हैं। इस बारे में सरकारी बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की अपेक्षा प्रमोटरों को सीधे तौर पर उधार देना अपेक्षाकृत ज्यादा आसान है।
उल्लेखनीय है कि एनबीएफसी को दिए जावे वाले ऋणों की ब्याज दर 15-17 फीसदी है, अब मार्जिन फंडिंग अब बहुत ज्यादा टिकाऊ नहीं रहा है और इसी कारण से सरकारी बैंक प्रमोटर फंडिंग कारोबार में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।
बैंकों के इस कारोबार में दिलचस्पी दिखाने को महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि परंपरागत रूप से सरकारी बैंक के लिए ऋण मुहैया कराना आईपीओ फंडिंग और शेयर ब्रोकरों तक ही सीमित था। प्रमोटर फंडिंग से जुड़े मुंबई स्थित वित्त कंपनी के एक अधिकारी ने कहा कि हाल में ही नकदी संबंधी मुद्दे के उजागर होने से पहले यह कारोबार करीब 20,000 करोड रुपये का था।
एडिलवाइस कैपिटल के एक अधिकारी ने कहा कि प्रमोटर फंडिंग के कारोबार में विदेशी बैंकों द्वारा स्थापित एनबीएफसी का एक बहुत बड़े हिस्से पर नियंत्रण था लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल के छाने के बाद कारोबार पर बुरा असर पडा और नकदी की हालत खराब हो गई।
अधिकारी ने कहा कि इसकेबाद उधार लेना काफी महंगा हो गया जिससे लागत और मुनाफे का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ गया और सामान्य ब्याज दरों पर ऋण लेना पहले की तरह आसान नहीं रह गया।
अधिकारी ने यह भी कहा कि कुछ वित्तीय कंपनियां अपने ग्राहकों को ऋण लेने के लिए सरकारी बैंकों के पास भेज रहीं हैं क्योंकि एनबीएफसी अब सस्ती दरों पर कर्ज मुहैया कराने में अपने को अक्षम पा रही हैं।
बैंकों के लिए अब सीधे कॉर्पोरेट को ऋण देना काफी भा रहा है क्योंकि इनको अब एनबीएफसी जैसी इकाइयों को ऋण देने की इजाजत नहीं है। हालांकि सरकारी बैंक अभी भी कुछ एनबीएफसी को कर्ज दे रहे हैं लेकिन वे सिर्फ कार्यशील पूंजी की जरूरत के लिए है और कारोबार विस्तार के लिए इनको किसी भी तरह सहायता नहीं दी जा रही है।