भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि बेहतर बैलेंस शीट, पर्याप्त नकदी और पूंजी बफर के साथ भारत का बैंकिंग क्षेत्र उद्योग की निवेश संबंधी जरूरतें पूरी करने को तैयार है। मल्होत्रा ने अपने भाषण में कहा कि कम होती महंगाई और नरम वृद्धि को देखते हुए मौद्रिक नीति को अनुकूल बनाया गया है और इस साल फरवरी 2025 से लगातार 2 बार में नीतिगत दर कुल 50 आधार अंक कम की गई है।
अमेरिकी शुल्क नीतियों के कारण हाल में पैदा हुई भूराजनीतिक अनिश्चितताओं के बारे में उन्होंने कहा कि मजबूत घरेलू मांग और निर्यात पर तुलनात्मक रूप से कम निर्भरता के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी और बाहरी हलचलों का असर कम रहेगा।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और यूएस इंडिया स्टैटेजिक पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) वाशिंगटन की ओर से शुक्रवार को आयोजित यूएस-इंडिया इकोनॉमिक फोरम में बोलते हुए मल्होत्रा ने कहा, ‘हम बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की क्षमता, जवाबदेही और लचीलापन और बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसमें दक्षता तथा स्थिरता के साथ संतुलन वाले नियमन पर जोर दिया जाएगा।’
उन्होंने कहा, ‘निवेश के लिए बेहतरीन अवसर हैं, क्योंकि निजी ऋण और जीडीपी का अनुपात अभी भी बहुत कम है। बैंकिंग क्षेत्र समाज और उद्योग की निवेश संबंधी जरूरतें पूरी करने में सक्षम है।’ यह भाषण रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर रविवार को अपलोड किया गया। उन्होंने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिए धन की बड़ी जरूरतें पूरी करता रहा है और उसने बेहतर बैलेंस शीट के के साथ लचीलापन दिखाया है। उन्होंने कहा, ‘अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की सुदृढ़ता को मजबूत मुनाफे, कम फंसी कर्ज परिसंपत्तियों और पर्याप्त पूंजी एवं नकदी बफर से प्रोत्साहन मिला है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की सेहत भी बहुत अच्छी है। हाल के महीनों में हालांकि बैंकों के ऋण में नरमी रही है, फिर भी यह लगातार 2 अंकों (करीब 12 प्रतिशत) पर बना हुआ है जबकि पिछले 10 वर्षों में औसतन करीब 10.5 प्रतिशत वृद्धि हुई थी।’
बाहरी क्षेत्र पर प्रतिक्रिया करते हुए उन्होंने कहा कि चालू खाते का घाटा प्रबंधन योग्य है और हाल के अस्थिर दौर के बावजूद भारतीय रुपया व्यवस्थित रूप से बढ़ा है। मल्होत्रा ने कहा, ‘भारत का चालू खाते का घाटा (अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान जीडीपी का 1.3 प्रतिशत) प्रबंधन योग्य सीमा के भीतर बना हुआ है। इसे तेज सेवा निर्यात व निजी धनप्रेषण से समर्थन मिल रहा है। यहां तक कि हाल की अस्थिर अवधि के दौरान भी भारतीय रुपया व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ा है और उसने प्रतिस्पर्धी देशों की मुद्राओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। इससे भारत की मजबूत वृहद् आर्थिक बुनियाद, पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार और हमारे विदेशी मुद्रा बाजार की गंभीरता का पता चलता है।’
उन्होंने कहा कि विदेशी निवेशकों का भारत पर लगातार भरोसा बना हुआ है, यह देश में आ रहे सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि से पता चलता है। अप्रैल-फरवरी 2024-25 के दौरान भारत में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 75.1 अरब डॉलर पहुंच गया जो एक साल पहले की इस अवधि में 65.2 अरब डॉलर था। उन्होंने कहा, ‘बहरहाल इस दौरान एफडीआई की आवक नरम पड़ा है क्योंकि धन निकासी और विदेश में भारतीयों का निवेश बढ़ा है। यह परिपक्व बाजार होने का संकेत है, जहां विदेशी निवेशक आसानी से निवेश कर सकते हैं और अपना निवेश निकाल सकते हैं। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की सकारात्मक स्थिति का पता चलता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार मजबूत बना हुआ है।’
घरेलू आर्थिक वृद्धि 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए मल्होत्रा ने कहा कि यह हाल के वर्षों की तुलना में कम है और भारत की उम्मीदों के अनुरूप नहीं है, लेकिन यह प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे तेज वृद्धि दर है।
उन्होंने कहा कि पिछले 4 साल (2021-22 से 2024-25) में जीडीपी की औसत सालाना वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है। उन्होंने कहा, ‘भारत लगातार तेजी से बढ़ती बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था वाला देश था और बना हुआ है। यह इस लिहाज से उल्लेखनीय चरण है जब हम पहले के दशक (2010 से 2019) की 6.6 प्रतिशत औसत वृद्धि दर से आगे बढ़े हैं।’
वित्तीय मजबूती के केंद्र के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान बनाए हुए है और व्यय की गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘सरकार बेहतर तरीके से लक्षित व्यय कर रही है। व्यय की गुणवत्ता सुधरी है। केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2019-20 में जीडीपी का 1.7 प्रतिशत था जो 2024-25 में बढ़कर 3.1 प्रतिशत हो गया है।’
मल्होत्रा ने कहा कि प्रगतिशील राजकोषीय मजबूती की वजह से भारत में निजी क्षेत्र के लिए अवसर बढ़े हैं। मल्होत्रा ने आर्थिक सुधारों का हवाला देते हुए कहा, ‘बाजार के अनुकूल नीतियों पर केंद्रित आर्थिक उदारीकरण पर सरकारों ने लगातार ध्यान दिया है। हालांकि सुधारों की गति और किसी विषय पर खास ध्यान दिए जाने की स्थिति समय समय पर अलग हो सकती है। लेकिन बाजार केंद्रित आर्थिक ढांचे को लेकर प्रतिबद्धता में कोई बदलाव नहीं आया है।’
उन्होंने आखिर में कहा कि तमाम विकसित अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक चुनौतियों और बिगड़े आर्थिक परिदृश्य का सामना कर रही हैं, ऐसे समय में भारत मजबूत वृद्धि और स्थिरता की पेशकश कर रहा है और इसकी वजह से वह निवेशकों के लिए स्वाभाविक विकल्प बन गया है। उन्होंने कहा, ‘मजबूत घरेलू मांग और तुलनात्मक रूप से निर्यात पर कम निर्भरता के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी प्रभाव से बची हुई है।’