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  वित्त-बीमा  ऑटो पुर्जा उद्योग पर ब्रेक
वित्त-बीमा

ऑटो पुर्जा उद्योग पर ब्रेक

बीएस संवाददाताबीएस संवाददाता—December 21, 2008 10:39 PM IST
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आर्थिक मंदी और वित्तीय संकट के कारण वैश्विक ऑटोमोटिव क्षेत्र की गाड़ी अपनी पटरी से उतर रही है।


अमेरिका की तीन बड़ी कंपनियों (जीएम, क्रिसलर और फोर्ड ) में से दो कंपनियों को मिले लगभग 67,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज का मतलब है कि मंदी की आंच में तप रहे अमेरिकी ऑटोमोबाइल क्षेत्र को कूलेंट की ठंडक मिल रही है। इन दो कंपनियों का अमेरिकी ऑटो क्षेत्र की बिक्री में 50 प्रतिशत से अधिक पर नियंत्रण है।

इससे भारतीय कल-पुर्जा निर्माताओं के बीच अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो सकता है क्योंकि निर्यात के 4,860 करोड़ रुपये का अहम हिस्सा अमेरिका की इन्हीं तीन कंपनियों को जाता है।

माहौल भारत की प्रमुख कंपनियों के लिए भी कुछ खास अलग नहीं हैं। खर्च में कटौती, लोगों की छंटनी और निवेश में देरी का माहौल यहां भी बरकरार है।

ऑटो कल-पुर्जे बनाने वाला क्षेत्र अपने विकास के लिए वास्तविक उपकरण निर्माताओं (ओईएम) पर निर्भर है। यह क्षेत्र भी अब घरेलू क्षेत्र में बिक्री की कमी के सर्द झोंकों के साथ-साथ निर्यात बाजार में मंदी की मार झेल रहा है।

ऑटोमोटिव ग्लास निर्माता एआईएस के प्रबधं निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी संजय लाब्रू का कहना है कि इसका असर दोगुना हो सकता है।

जहां कंपनियां पूंजी व्यय की अपनी परियोजनाओं को टाल रही हैं और तेजी से रद्द कर रही हैं, वहीं वे अब पहले से तय खर्च भी कम करने पर ध्यान दे रही हैं।

उनकी कोशिश डिजाइन में फेरबदल कर माल की लागत कम करके मार्जिन बढ़ाने और प्रथम श्रेणी के बाजारों में प्रवेश करने की है। इन बदलावों का असर आंकड़ों में दिखाई देने में जहां वक्त लग सकता है, वहीं निकट भविष्य काफी धुंधला है।

ऑटो पुर्जा क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों से चक्रवृध्दि सालाना विकास दर 27.2 प्रतिशत की रही है, लेकिन वित्त वर्ष 2009 में दर के इकाई आंकड़े में रहने की उम्मीद है।

समस्या घरेलू बाजार की है, जो 90,000 करोड़ रुपये के भारतीय ऑटो कल-पुर्जा क्षेत्र का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा है। घरेलू बाजार ऑटो की बिक्री में गिरावट के कारण बदतर दौर से गुजर रहा है।

कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री नवंबर में साल-दर-साल के आधार पर क्रमश: 24 प्रतिशत और 15 प्रतिशत घट गई है, जबकि व्यावसायिक वाहनों (सीवी) की बिक्री में 48 प्रतिशत की गिरावट आई है।

इस साल के खत्म होने तक बड़ी मात्रा में स्टॉक इकट्ठा होने, आर्थिक मंदी, ऊंची ब्याज दरों और पैसे की कमी के साथ वाहनों की बिक्री लगभग 85 लाख रहने की उम्मीद है (लगभग पिछले साल के बराबर)।

सरकार के केंद्रीय उत्पाद शुल्क (सेनवैट) में 4 प्रतिशत की कटौती करने से अनबिके वाहनों के बड़े स्टॉक पर मामूली असर दिखाई दे सकता है।

वित्त वर्ष 2010 में उम्मीद है कि कम हुई ब्याज दरों, अधिक नकदी, महंगाई में कमी और ईंधन की कम कीमतों का प्रभाव विकास दर पर देखने को मिलेगा और बहुत संभव है कि यह दर बढ़कर 10 प्रतिशत हो जाए।

निर्यात

भारत के कुल 18,000 करोड़ रुपये के पुर्जा निर्यात में अमेरिका का योगदान लगभग 27 फीसदी है और वहां की तीन बड़ी कंपनियों का इसमें अहम हिस्सा है। इसके मद्देनजर निर्यात से होने वाली कमाई पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।

भारत की सबसे बड़ी ऑटो पुर्जा निर्यातक भारत फोर्ज (वैश्विक राजस्व : 4,752 करोड़ रुपये) का अमेरिकी ऑटो क्षेत्र में 10 प्रतिशत कारोबार है और वहां की तीन बड़ी कंपनियों में इस भारतीय कंपनी का कारोबारी हिस्सा लगभग 3 प्रतिशत है।

इस समय निर्यातकों के लिए सबसे बुरी बात निर्यात के लिए कर्ज की कमी है। डन ऐंड ब्रैडस्ट्रीट इंडिया की अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ याशिका सिंह का कहना है, ‘भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम लगभग 50 भारतीय ऑटो कल-पुर्जा कंपनियों को कर्ज मुहैया कराने से इनकार कर रहा है।

ये वे कंपनियां हैं जो तीन बड़ी कंपनियों को पुर्जों की आपूर्ति करती हैं। निगम ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि वह जीएम, फोर्ड और क्रिसलर की मौजूदा परिस्थितियों में साख पर फैसला नहीं कर पा रहा।’

ऑटो कल-पुर्जा क्षेत्र को अमेरिका में निर्यात से लगभग 4,860 करोड़ रुपये के राजस्व में से लगभग 50 प्रतिशत कारोबार तीन बड़ी कंपनियों से मिलता था, लेकिन स्थितियों के बदलने के बाद भारतीय कंपनियों का हिस्सा 2,500 करोड़ रुपये तक रह जाएगा।

पैकेज में बदलावों के बाद भी ठेकों की कीमतों और उनकी संख्या में तेज गिरावट के साथ ठेकों पर दोबारा काम करने का दबाव भी हो सकता है।

यूरोपीय ऑटो बिक्री कैलेंडर वर्ष 2007 में 1.90 करोड़ वाहनों की बिक्री के साथ सिर्फ 2 प्रतिशत बढ़ा और मौजूदा वर्ष में इसमें गिरावट देखने को मिल सकती है।

ए टी कियर्नी के विशेषज्ञ मनीष माथुर का कहना है कि इसके सकारात्मक पहलू पर नजर दौड़ाएं तो खर्च कम करने और आउटसोर्सिंग का दबाव विकास दर  बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

उम्मीद है कि आउटसोर्सिंग का रुझान आगे भी बढ़ेगा। भारतीय कंपनियों की अलग-अलग क्षेत्र में मौजूदगी और कम लागत से उन्हें कैलेंडर वर्ष 2010 में मांग में इजाफे का फायदा मिलेगा।

खुले व्यापार करारों और अधिग्रहणों के जरिये पुर्जा निर्माताओं को अपने उत्पाद विभिन्न देशों में बेचने का मौका मिलेगा और वे विदेशी संयंत्रों का इस्तेमाल विदेश में अपनी सहायक कंपनियों को आपूर्ति के लिए कर सकेंगी।

नए बाजार व नए क्षेत्र

मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर विनिर्माता अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान दे रहे हैं। सिंह का कहना है, ‘ऑटो पुर्जे बनाने वाली कंपनियां पश्चिम एशिया और अफ्रीका जैसे दूसरे क्षेत्रों में भी निर्यात बढ़ाने पर विचार कर रही हैं।’

एशिया और अफ्रीका का ऑटो कल-पुर्जा निर्यात में लगभग 4,000 करोड़ रुपये का योगदान है। जिन कंपनियों ने निर्यात बाजार में काफी निवेश किया है, उन्हें डॉलर और दूसरी मुद्राओं के मुकाबले रुपये की कीमत में कमी का फायदा मिलेगा।

ऑटो पुर्जा निर्माता खुद को ऑटो उद्योग में मंदी के चक्र से दूर रखना चाहते हैं, जिसके लिए वे गैर-ऑटो क्षेत्र जैसे विमानन, रक्षा, रेल, ट्रैक्टर, निर्माण उपकरण, बिजली आदि पर ध्यान दे रहे हैं।

इसके अलावा वे नए उत्पादों पर भी ध्यान दे रहे हैं। बड़ी कंपनियां जैसे भारत फोर्ज बिजली क्षेत्र में एलस्टॉम और एनटीपीसी के साथ कारोबार फैला रही है।

सीवी क्लच बनाने वाली सेटको ऑटोमोटिव्स जैसी छोटी कंपनियों की योजना भारी वाहनों और हल्के व्यावसायिक वाहनों के लिए अगले दो वर्षों में क्लच बनाने की है।

आगे है धुंधला रास्ता

पिछले महीनों में कीमतों में जबरदस्त इजाफे और आर्थिक मंदी के बाद प्रमुख कंपनियों (एमटेक ऑटो और भारत फोर्ज के ईबीआईडीटीए मार्जिन में 3 प्रतिशत की गिरावट हुई) के मार्जिन दूसरी तिमाही में खत्म हो गए।

हालांकि कच्चे माल (इस्पात की कीमत अपने सबसे ऊंचे स्तर से लगभग 45 प्रतिशत कम) की कीमतें पिछले कुछ महीनों में कम हो गईं, तब भी उन्हें अपने एक साल पहले के स्तर पर आने में काफी समय लगेगा।

ऑटो पुर्जा निर्माता कंपनियां अभी भविष्य के लिए कोई भी अनुमान नहीं लगा पा रही हैं, क्योंकि उनके दोनों मुख्य बाजार-ओईएम और मरम्मत-पर मांग में कमी के चलते बुरी मार पड़ रही है और अंतिम उत्पाद की कीमतों में कटौती को लेकर अब भी अस्थिरता बरकरार है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ऑटो कल-पुर्जा क्षेत्र के जिन उपक्षेत्रों जैसे टायरों, बीयरिंग और बैटरियों की कंपनियों को राजस्व का बड़ा हिस्सा मरम्मत और घरेलू बाजार से मिलता है, उन पर ओईएम कंपनियों को आपर्ति करने वाली कंपनियों के मुकाबले कम असर देखने को मिलेगा।

भारत फोर्ज और एमटेक ऑटो के राजस्व में एक बड़ा हिस्सा निर्यात बाजार से आता है, हो सकता है कि इन कंपनियों के मार्जिन और राजस्व में आगे भी कमी हो।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कीमतों में गिरावट के साथ ज्यादातर ऑटो कल-पुर्जा निर्माता कंपनियों को नुकसान का सामना करना होगा। वे दो वर्ष के लिहाज से एक्साइड, बॉश और मदरसन सुमी जैसी कंपनियों को तरजीह देते हैं।

बॉश

कंपनी को 90 प्रतिशत से अधिक राजस्व ऑटोमोटिव क्षेत्र से मिलता है। कंपनी का भाग्य सीधे तौर पर ऑटो उद्योग की कंपनियों से जुड़ा हुआ है।

वित्त वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही के लिए कंपनी की बिक्री पर ओईएम कंपनियों की ओर से सीवी, तिपहिया वाहनों और ट्रैक्टरों के लिए डीजल फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम (63 प्रतिशत राजस्व) की कम खरीद, कच्चे माल (इस्पात) की अधिक लागत और रुपये की कीमत में कमी का असर दिखाई दे रहा है।

मरम्मत के बाजार की लगभग 20 प्रतिशत की विकास दर से कंपनी को अपनी बिक्री 16 प्रतिशत बढ़कर 1,219 करोड़ रुपये करने में मदद मिली है। गैर-ऑटोमोटिव कारोबार के साथ कंपनी 25 प्रतिशत की दर से विकास करेगी। कंपनी की योजना 1,700 करोड़ रुपये खर्च कर अपने 5 प्रतिशत शेयरों के बायबैक की भी है।

इससे मूल कंपनी की हिस्सेदारी लगभग 74 प्रतिशत हो जाएगी और बॉश के ईपीएस में इजाफा होगा। मौजूदा 3,036 रुपये के स्तर पर (कैलेंडर वर्ष 2009 ईपीएस पर 15 गुना पीई का अनुमान) कंपनी के शेयर अगले 15 महीनों पर लगभग 25 प्रतिशत की बढ़त का संकेत दे रहे हैं।

एक्साइड इंडस्ट्रीज

इस सच के बावजूद कि कंपनी की बिक्री का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा ऑटोमोटिव क्षेत्र से आता है, ओईएम के साथ-साथ ऑटोमोटिव (सीवी और यात्री वाहन) और औद्योगिकी क्षेत्र (दूरसंचार टावर, यूपीएस व्यावसायिक एवं घरेलू) के मरम्मत क्षेत्र में भी मौजूदगी का मतलब है कि कंपनी पर दूसरे कल-पुर्जा निर्माताओं के मुकाबले कम असर पड़ेगा।

जहां ओईएम बिक्री में हलचल नहीं है, वहीं औद्योगिकी क्षेत्र से बिक्री में 40 प्रतिशत के इजाफे  से एक्साइड को वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में 35 प्रतिशत विकास के साथ 1,807 करोड़ रुपये राजस्व हासिल हुआ है।

सीसे की कीमतों में जबरदस्त कटौती और अधिग्रहणों (दो सीसा स्मेल्टिंग संयंत्र) के साथ कंपनी ने न सिर्फ सीसे की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की है, बल्कि उसे कच्चे माल की लागत को कम करने में भी मदद मिलेगी।

लगभग 500 करोड़ रुपये नकद, औद्योगिक क्षेत्र में तेज विकास और कच्चे माल की सुनिश्चित आपूर्ति, आईएनजी वैश्य लाइफ इंश्योरेंस में 50 प्रतिशत हिस्से के साथ कंपनी के हाथ काफी मजबूत हैं।

48 रुपये के स्तर (वित्त वर्ष 2010 ईपीएस पर 10.6 गुना पीई का अनुमान) पर शेयर अगले एक साल में 18 प्रतिशत तक रिटर्न दे सकता है।

मदरसन सुमी

वाहनों में रोशनी के लिए वायरिंग के साजो सामान में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अधिक मुनाफे वाली असेंबली और मॉडयूल के क्षेत्र में मौजूद मदरसन सुमी एक अच्छा विकल्प है। वह अपने मुख्य ग्राहकों मारुति और हुंडई की विस्तार योजनाओं का बखूबी फायदा उठा पाएगी।

जहां फिलहाल कपंनी को अपने राजस्व का लगभग 73 प्रतिशत निर्यात से मिलता है, वहीं कंपनी को उम्मीद है कि संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया से मिलने वाले राजस्व के चलते वित्त वर्ष 2010 तक उसके राजस्व में 60 प्रतिशत  का इजाफा होगा।

कंपनी को तांबे की कीमतों में कमी का फायदा मिलेगा, वहीं इसकी पॉलिमर (प्लास्टिक मोल्ड) प्रोसेसिंग और रबरधातु के पुर्जों के कारोबार के विकास पर भी संभावनाएं टिकी हैं। कंपनी एक संयुक्त उपक्रम में जर्मनी की बाल्डा के साथ मोबाइल हैंडसेटों के लिए पुर्जे भी बनाती है।

वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में  33 प्रतिशत इजाफे के साथ उसकी बिक्री 1,239 करोड़ रुपये हो गई है और वित्त वर्ष 2009 में  लगभग 25 प्रतिशत विकास दर रहने की उम्मीद है।

68 रुपये के स्तर (वित्त वर्ष 2010 के ईपीएस पर 9.7 गुना पीई का अनुमान) पर शेयर अगले एक साल में 25 से 30 प्रतिशत तक का रिटर्न दे सकता है।

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