पूरे राजस्थान में एक लाल डायरी चर्चा का विषय बनी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में सीकर की अपनी जनसभा के दौरान इसका उल्लेख किया था। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस लाल डायरी के पीछे कौन है और इसमें क्या है?
राजस्थान में उदयपुरवाटी झुंझुनूं लोकसभा सीट का हिस्सा है जहां के विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा हैं। वह 2008 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक चुने गए थे।
वर्ष 2009 में उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में जीते बसपा के सभी पांच विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर के एक तरह दल बदला था। इनाम के तौर पर उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंत्री बनाया था।
हालांकि, जब 2013 में कांग्रेस के साथ-साथ गुढ़ा भी विधानसभा चुनाव हार गए तब फिर से वह बसपा में वापस लौट आए और वर्ष 2018 में उसी विधानसभा सीट के लिए बसपा का टिकट हासिल कर लिया।
उदयपुरवाटी सीट जीतने के बाद, वह एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और सैनिक कल्याण (सैनिक कल्याण) और अन्य क्षेत्रों से संबंधित विभागों के मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक चतुराई के लिए खुद की पीठ थपथपाई।
पिछले साल लोगों ने उनको लेकर काफी चर्चा करनी शुरू कर दी जब गहलोत के ‘स्वघोषित’ वफादार से आलोचक बने गुढ़ा ने खुले तौर पर कांग्रेस के सचिन पायलट गुट को अपना समर्थन देना जारी रखा और गहलोत के आचरण की सार्वजनिक रूप से आलोचना की थी। इस पूरे घटनाक्रम के बाद बवाल तब शुरू हुआ तब उन्होंने विधानसभा में कहा कि मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए अन्याय पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, मुख्यमंत्री को राजस्थान की महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर ध्यान देना चाहिए।
गुढ़ा, पायलट की ओर से दिल्ली दौरा कर रहे थे और इस बात को नजरअंदाज कर रहे गहलोत ने आखिरकार कार्रवाई करते हुए उन्हें सरकार से बर्खास्त कर दिया और इसके बाद उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज करा दिए गए। पद छोड़ते समय, गुढ़ा ने दावा किया कि उनके पास एक लाल डायरी है जिसमें कथित तौर पर गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा किए गए अवैध लेनदेन के रिकॉर्ड हैं।
गुढ़ा को कांग्रेस से टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं
आगामी चुनावों में उन्हें कांग्रेस से टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं है और कांग्रेस आलाकमान ने पायलट को गहलोत के साथ सुलह करने का निर्देश दिया है ऐसे में गुढ़ा दो पाटों के बीच गिरते दिख रहे हैं।
भारत के कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों की तरह, झुझनूं एक विरोधाभास का प्रतिनिधित्व करता है। इस क्षेत्र के अधिक लोगों ने देश के अन्य अधिकांश शहरों की तुलना में भारत के लिए संपत्ति तैयार की है। लक्ष्मी निवास मित्तल के साथ बजाज, बिड़ला, डालमिया, गोयनका, पीरामल, पोद्दार और सिंघानिया सहित कई प्रमुख व्यापारिक परिवारों का यहां से ताल्लुक है।
हालांकि, इस आर्थिक कौशल के बावजूद, शेखावटी के तीन शहरों, झुंझनूं, सीकर और चुरू को विकास की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और यहां एक मजबूत लड़ाका जाट आबादी है, जिसने कम्युनिस्ट विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसमें एक मशहूर कम्युनिस्ट, अमरा राम जैसी हस्तियां इस क्षेत्र से निकलीं।
इसके विपरीत, गुढ़ा ने खुद को किसी खास विचारधारा के साथ नहीं जोड़ा और अगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ से उन्हें निमंत्रण मिल जाता है तो वह उस पार्टी में भी शामिल हो जाएंगे। लेकिन उन्हें अब तक कोई निमंत्रण नहीं मिला है।
लोकसभा चुनाव में, भाजपा के नरेंद्र कुमार को 56 प्रतिशत वोट मिले जो किसी भी पार्टी के लिए सबसे अधिक वोट थे। कई वर्षों तक इस सीट पर सशक्त नेता शीश राम ओला का कब्जा रहा।
गुढ़ा लगभग 7,000 वोटों के अंतर से अपनी विधानसभा सीट जीतने में कामयाब रहे, जो मामूली अंतर नहीं है, लेकिन स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों का सुझाव है कि उन्हें बहुत आत्मसंतुष्ट नहीं होना चाहिए। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भाजपा इस सीट को विधानसभा चुनाव के लिए उपयुक्त मान रही है। हालांकि बेशक इसमें कई किंतु-परंतु शामिल हैं।
कांग्रेस सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने कथित तौर पर मतदाताओं के सबसे हाशिए पर जी रहे वर्गों को भी प्रभावित किया है लेकिन इसको लेकर अनिश्चितताएं हैं।
राजस्थान में हर बार सत्ता बदलने वाली राजनीति का इतिहास, विपक्ष को सत्ता में लाने में लगभग कभी विफल नहीं रहा है। हालांकि, हर कोई इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि यह रुझान इस बार सच होगा।
कांग्रेस राज्य में फिर से सरकार बनाने को लेकर आशान्वित है और पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल कहते हैं, ‘हमें पूरा यकीन है कि कांग्रेस पार्टी राजस्थान में जीतेगी। उम्मीदवारों का चयन उनकी जीतने की क्षमता के आधार पर किया जाएगा। हम यह सुनिश्चित करने के लिए कई सर्वेक्षण कर रहे हैं और पार्टी उम्मीदवारों पर सितंबर के पहले सप्ताह में फैसला किया जाएगा।’
क्या गुढ़ा इस बार अपनी क्षमता से ज्यादा पा सकते थे? यह कहना मुश्किल है। हालांकि, उदयपुरवाटी सीट के लिए लड़ाई निश्चित तौर पर दिलचस्प होगी। गुढ़ा ने पहला झटका दे दिया है। अब दूसरों को इसका जवाब देना है।