लोक सभा चुनाव के लिए केरल में दूसरे चरण के तहत शुक्रवार को मतदान होगा। ऐसे में दो प्रमुख सवाल उभर कर सामने आते हैं। पहला, क्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस दक्षिणी राज्य में अपना खाता खोल पाएगी और दूसरा, क्या मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का राष्ट्रीय दल का दर्जा बचा पाने में केरल कुछ मदद कर पाएगा?
वर्ष 2019 में भाजपा राज्य में पड़े कुल वोटों का 13 प्रतिशत ही हासिल कर पाई थी। राजग सहयोगियों को भी कुल मिलाकर 16 प्रतिशत वोट ही मिले थे। इससे पहले यानी 2014 के चुनावों को देखते हुए यह बहुत मामूली बढ़ोतरी थी, क्योंकि दस साल पहले के लोक सभा चुनाव में भाजपा को 10 प्रतिशत और राजग को कुल मिलाकर 11 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। राज्य में अपना खाता खोलने की कोशिशों में जुटी भाजपा ने दो सीटों तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है।
पिछले सप्ताह के प्रमुख त्रिशूर पुरम समारोह को लेकर खड़े हुए विवाद को व्यापक तौर पर भाजपा के पक्ष में माना जा रहा है और समझा जा रहा है कि इससे उसे कम से कम एक सीट जीतने में मदद मिल सकती है।
कथित रूप से पुलिस द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और रीति-रिवाजों में बाधा डाले जाने के कारण उत्सव के रंग में भंग पड़ गया और लोग इसे पूरे जोश-खरोश से नहीं मना सके।
केरल में वर्ष 2004 को छोड़ लोक सभा चुनाव में मतदाताओं का झुकाव अमूमन कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की तरफ रहा है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सज्जाद इब्राहिम केएम कहते हैं, ‘सामान्य तौर पर राज्य में भाजपा का वोट शेयर लगभग 16 प्रतिशत रहा है और इस बार भी इसमें बढ़ोतरी की संभावना कम ही है। भाजपा का अधिकांश वोट बैंक हिंदू उच्च जातियों में है। अब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती अल्पसंख्यक वोटों को अपने पाले में करने की है।’
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनसंख्या में मुसलमानों और ईसाइयों की संख्या लगभग 45 प्रतिशत है। इनमें मुसलमानों की जनसंख्या अधिक है।
मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी मलप्पुरम में 68 प्रतिशत, पुन्नानी में 62 प्रतिशत, वायनाड में 41 प्रतिशत, कोझिकोड में 37 प्रतिशत, कासरगाड़ में 31 प्रतिशत, वडकरा में 31 प्रतिशत और कुन्नूर में 26 प्रतिशत है। इसी प्रकार इडुकी में 42 प्रतिशत और पतनममिट्टा में 40 प्रतिशत ईसाई आबादी रहती है।
कम से कम छह निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जहां ईसाइयों की आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है। यही कारण है कि भाजपा राज्य में ईसाइयों को अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है।
त्रिशूर में भाजपा प्रत्याशी सुरेश गोपी ने ईसाई समुदाय के बीच जाकर अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत की। इस निर्वाचन क्षेत्र में ईसाई वोटों की हिस्सेदारी लगभग 21 प्रतिशत है। तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस प्रत्याशी शशि थरूर को केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर से कड़ी चुनौती मिल रही है। पार्टी राज्य के तटीय इलाकों में अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश में जुटी है।
यह स्पष्ट है कि तिरुवनंतपुरम में भी अल्पसंख्यक और मछुआरा समुदाय इस चुनाव में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीएम सुधीरन कहते हैं कि सत्ता विरोधी लहर केरल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। राज्य में इंडिया गठबंधन का पलड़ा भारी कह सकते हैं। केरल प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुधीरन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘सत्ता विरोधी लहर राज्य में माकपा और केंद्र में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। हम सकारात्मक नतीजों की उम्मीद कर रहे हैं। पिनरई राज्य में पूरम समेत सभी मोर्चों पर विफल साबित हुए हैं।’
त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के किले ध्वस्त होने के बाद माकपा को अपना अस्तित्व बचाने के लिए केरल का रण बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो चला है।
यदि पार्टी तीन राज्यों में कम से कम 11 सीट हासिल नहीं कर पाती है तो उसके लिए अपना राष्ट्रीय दल का दर्जा बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा। वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में माकपा को केवल तीन सीटें और 1.75 प्रतिशत वोट मिले थे।
इब्राहिम कहते हैं, ‘यूडीएफ ‘ का कोर वोट बैंक लगातार घट रहा है। वह अब तटस्थ वोटों पर अधिक निर्भर है। इसी प्रकार माकपा के कट्टर समर्थकों की संख्या कम होती जा रही है।
पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, सत्ता विरोधी लहर और राज्य की गड़बड़ाती वित्तीय हालत ऐसे कारक हैं, जो चुनाव में अपना रंग दिखा सकते हैं।’ इस समय सरकारी कर्मचारियों को वेतन और पेंशन वितरण में दिक्कतें पेश आ रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे गढ़ खोने के बाद सतर्क माकपा ने केरल में मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी को पिछले चुनाव में केवल एक सीट मिली थी, संभावना है कि इस बार इसमें कुछ बढ़ोतरी हो।’