उद्योगों समेत प्रत्येक क्षेत्र को लोक सभा चुनावों से उम्मीदें होती हैं। हर कोई चाहता है कि उसके हित के लिए काम करने वाली सरकार सत्ता में आए। लेकिन हीरा उद्योग की प्रतिक्रिया अलग है।
केंद्र में बनने वाली अगली सरकार से अपेक्षाओं के सवाल पर 62 वर्षीय सावजी धनजी ढोलकिया कहते हैं कि हीरा उद्योग इस बारे में कुछ भी नहीं सोच रहा। उसकी कोई अपेक्षा सरकार से नहीं है।
ढोलकिया ने करीब 40 साल पहले अपने भाइयों के साथ मिलकर हीरा का कारोबार शुरू किया था। आज ढोलकिया भारत में हीरों की राजधानी सूरत के ही नहीं, वैश्विक बाजार के जाने-माने व्यापारी हैं।
हरि कृष्णा एक्सपोर्ट्स का इच्छापुर में कई एकड़ में फैला परिसर हेलीपैड जैसी तमाम सुविधाओं से लैस है। यहीं हीरे तैयार और निर्यात किए जाते हैं। इस विशाल परिसर में एक दिन में पूरा घूमना या पैदल चलकर तमाम कार्यों को अंजाम देना मुश्किल होता है। इसलिए आगंतुकों और यहां काम करने वाले कर्मचारियों की आवाजाही के लिए गोल्फ कार्ट तैयार रहती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परिसर का 2017 में उद्घाटन किया था। परिसर का उद्घाटन करते हुए उनका बड़ा-सा फोटो स्वागत कक्ष यानी रिसेप्शन की मुख्य दीवार पर लगा है।
चमकदार हीरा तैयार करने के लिए कार्ययोजना से लेकर हीरों को काटने और तराशने जैसे काम अलग-अलग इकाइयों में किए जाते हैं। हीरे बनाने के लिए उन्नत तकनीक के साथ आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। ये मशीनें यूरोप से आयात की जाती हैं।
हीरा काटने की लेजर मशीन की ओर इशारा करते हुए गाइड ने बताया, ‘इस मशीन को सेट कर आप दूसरे काम में लग जाइए। यह अपना काम बखूबी अंजाम देती रहेगी।’
यहां एक विशाल हॉल में डायमंड इंजीनियर और पॉलिश आर्टिस्ट बैठे हुए थे। आधुनिक मशीनें आने के बावजूद इस उद्योग में इनकी काफी मांग है। इनका काम बहुत बारीक और महत्त्वपूर्ण होता है।
वर्ष 2022 में पदमश्री सम्मान से नवाजे जा चुके ढोलकिया अब परोपकार के कामों में अधिक ध्यान देते हैं। लगभग 6,000 कर्मचारियों वाले अपने कारोबार को अगली पीढ़ी संभाल रही है। हीरों की खान या हीरा हब इच्छापुर में हरि कृष्ण एक्सपोर्ट्स के अलावा भी कई अन्य कंपनियां हैं, जो हीरों का कारोबार करती हैं।
सूरत लोक सभा सीट पर भाजपा के मुकेश दलाल पहले ही जीत दर्ज कर चुके हैं। यहां की स्थिति स्पष्ट होने के बाद स्थानीय लोग पड़ोस की नवसारी और बारडोली सीटों पर होने वाले चुनावों को लेकर चर्चा में व्यस्त रहते हैं।
जब चुनावों के नतीजों के बारे में जानना चाहा तो ढोलकिया ने कहा, ‘उन्हें 110 फीसदी भरोसा है कि कोई भी मैदान में आ जाए, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ही वापसी कर रहे हैं।’
ढोलकिया की कंपनी में तैयार होने वाले अधिकांश हीरे निर्यात किए जाते हैं और अमेरिका इनके सबसे बड़े ग्राहकों में है। कारोबारी चुनौतियों के बारे में कुरेदने पर ढोलकिया स्वीकार करते हैं कि पिछले दो साल से चीन को होने वाला निर्यात रुक गया है।
वह कहते हैं कि कारण कुछ भी रहे हों, लेकिन चीन में हीरों की मांग कम होती जा रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध का भी हीरा कारोबार पर बुरा असर पड़ा है। कच्चे हीरे का सबसे बड़ा स्रोत रूस हुआ करता था। लेकिन अब यहां से माल नहीं आता।
हरि कृष्ण समेत अन्य कंपनियां भी दक्षिण अफ्रीका से कच्चा माल मंगा रही हैं। वह हंसते हुए कहते हैं, ‘लेकिन कोई बात नहीं, अपने कारोबार में उतार-चढ़ाव आता रहता है। लोगों के पास पैसा होगा तो हीरे की मांग भी बढ़ती जाएगी।’
कारोबार को लेकर लक्ष्यों के बारे में पूछे जाने पर ढोलकिया कहते हैं, ‘इस क्षेत्र में बहुत अधिक संभावनाएं हैं। पिछले 45 सालों में हम 100 देशों तक ही कारोबार कर रहे हैं। हम इस साल इसे बढ़ा कर कम से कम 125 देशों में जाना चाहते हैं।’
उद्योग जगत और सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत से निर्यात होने वाले कुल हीरों का 50 फीसदी अकेले अमेरिका जाता है। वर्ष 2023-24 के शुरुआती 9 महीनों में भारत से तराशे गए कुल हीरों का निर्यात लगभग 98,638 करोड़ रुपये रहा। इससे पूर्व के साल में यह निर्यात 1.32 लाख करोड़ रुपये था।
हीरा उद्योग में महिलाओं की कम भागीदारी के सवाल पर ढोलकिया ने कहा, ‘यह सोच से जुड़ा मामला है। किन्हीं कारणों से गुजरात की महिलाएं इस कारोबार से नहीं जुड़ना चाहतीं।’ जब उनसे पूछा गया कि हीरा कारोबार को क्या आने वाली सरकार से कुछ भी चाहत नहीं है? इस पर ढोलकिया ने जवाब दिया, ‘सरकार की ओर से इस उद्योग को किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलता और सही पूछें तो इसकी जरूरत भी महसूस नहीं होती। सरकार की ओर से हीरा कारोबार में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जाता, इसलिए सब ठीक-ठाक चल रहा है।’
लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि हीरा उद्योग से जुड़े अन्य कारोबारियों को सरकार से किसी भी प्रकार के सहयोग की दरकार नहीं है। उदाहरण के लिए, इंडियन हीरा इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष दिनेश नवेदिया प्रमुख रूप से तीन मांगों का जिक्र करते हैं।
वह चाहते हैं कि केंद्र में बनने वाली नई सरकार विदेशी खदान मालिकों को भारत में अपने उत्पाद बेचने की अनुमति दे। साथ ही इस उद्योग में यूरोप और दुबई जैसे नियम लागू किए जा सकते हैं। सरकार औसत टर्नओवर टैक्स के बारे में भी विचार कर सकती है। सरकार को हीरा की ऑनलाइन बिक्री पर थोपे गए करों में छूट का वादा निभाना चाहिए।