Lok Sabha Elections 2024, Uttar Pradesh: भारतीय जनता पार्टी के अपने बूते बहुमत हासिल करने के मंसूबे को सबसे बड़ा पलीता लगाने का काम उत्तर प्रदेश ने किया है। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से करीब आधी सीटें भारतीय जनता पार्टी ने गंवा दी है और पिछले लोकसभा चुनावों के मुकाबले उसे 25 के लगभग सीटों की घाटा हुआ है। पार्टी के बहुमत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अटकाने का काम उत्तर प्रदेश ने ही किया है।
उत्तर प्रदेश में संविधान, आरक्षण पर खतरा, बेरोजगारी, पेपर लीक और महंगाई जैसे मुद्दों ने भाजपा के लिए मुश्किल हालात पैदा किए तो वर्तमान सांसदों से नाराजगी और गैर यादव पिछड़ी जातियों के छिड़कने ने इसमें खाज का काम किया।
उत्तर प्रदेश में माहौल इस कदर भाजपा के खिलाफ गया कि स्मृति ईरानी, महेंद्र नाथ पांडेय, संजीव बालियान, अजय मिश्रा टेनी, भानु प्रताप वर्मा और कौशल किशोर जैसे केंद्रीय मंत्री चुनाव हार गए। वहीं कई बार से चुनाव जीतती आ रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी भी परास्त हो गईं। वैसे तो प्रदेश में हुए सात चरणों के चुनाव में हर चरण में भाजपा को अपनी सीटें खोनी पड़ी है पर सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल और अवध के क्षेत्र में हुआ है।
भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाली हार अयोध्या (फैजाबाद) की रही है जहां उसके दो बार के सांसद लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने हरा दिया है। माना जा रहा है कि इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद न केवल वहां बल्कि आसपास की सीटें भी भाजपा आसानी से जीत दर्ज करेगी।
अवध क्षेत्र में सिर्फ लखनऊ से जीती भाजपा, पूर्वांचल में भी बुरा हाल
अवध क्षेत्र में राजधानी लखनऊ को छोड़कर पड़ोसी जिले बाराबंकी, सीतापुर, लखीमपुर, सुल्तानपुर, रायबरेली, अमेठी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, प्रतापगढ़, कौशांबी, श्रावस्ती, संतकबीरनगर और बस्ती लोकसभा सीटों पर भाजपा को हार मिली है।
इसके अलावा पूर्वांचल में वाराणसी के आसपास की सीटें घोसी, लालगंज, आजमगढ़, मछलीशहर, चंदौली, जौनपुर और बलिया में भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है।
इस बार भाजपा के खिलाफ मतदाताओं का नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दशा में उसका गढ़ बनी रही राजधानी लखनऊ की सीट पर इसके प्रत्याशी केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ को लाखों नहीं बल्कि कुछ हजार वोटों से जीत मिली है। यह बीते 15 सालों में लखनऊ में भाजपा को मिली सबसे कम वोटों की जीत है।
इतना ही नहीं वाराणसी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली जीत पहले के मुकाबले खासी कमजोर रही है। हालांकि रायबरेली से राहुल गांधी ने करीब चार लाख वोटों से, मैनपुरी से डिंपल यादव ने 2.21 लाख तो कन्नौज से अखिलेश यादव ने पौने दो लाख वोट से जीत दर्ज की।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार की क्या है वजह
दरअसल भाजपा की कमजोर हालात के पीछे संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन का सघन चुनाव अभियान और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए व्यूह रचना करना रहा है। इस बार इंडिया गठबंधन ने बड़ी तादाद में गैर यादव पिछड़ों को टिकट देकर भाजपा के समीकरण बिगाड़ा तो बहुत कम तादाद में मुसलमानों को मैदान में उतार कर ध्रुवीकरण नहीं होने दिया।
बेतहाशा गर्मी में हुए चुनाव में शहरी व सवर्ण मतदाताओं ने मतदान भी कम किया और लगातार जीत से आश्वस्त भाजपा के कार्यकर्ताओं व समर्थकों में उदासीनता ने भी काम खराब किया।
इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने की दशा में बड़ी तादाद में दलित वोट भी इस बार संविधान बचाओ मुहिम के नाम पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को मिले। बड़ी तादाद में पुराने सांसदों को रिपीट करने का भी खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा।