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Jammu Kashmir Election 2024: कश्मीरी युवाओं को नई सुबह का इंतजार

घाटी से ताल्लुक रखने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि आज की युवा पीढ़ी के लिए अनुच्छेद 370 उतना मायने नहीं रखता, जितना रोजगार और शिक्षा।

Last Updated- September 09, 2024 | 8:45 AM IST
चौथे चरण में दोपहर 3 बजे तक 50 फीसदी से ज्यादा वोटिंग; बंगाल नंबर वन, जम्मू-कश्मीर में सबसे कम, Lok Sabha Election 2024: More than 50 percent voting in the fourth phase till 3 pm; Bengal number one, Jammu and Kashmir least

Jammu Kashmir Election 2024: श्रीनगर के मुनव्वराबाद के रहने वाले 19 वर्षीय फारूक मट्टू पिछले कुछ सप्ताह से बड़ी ऊहापोह में फंसे हैं। भारी बारिश के कारण उनके मोहल्ले समेत लगभग पूरे शहर में पानी भरा है। इस कारण वह पिछले कुछ दिनों से काम पर भी नहीं जा पा रहे हैं। लेकिन इस कश्मीरी युवा की समस्या मौजूदा जलभराव जैसी चुनौती से कहीं अधिक गंभीर है।

मट्टू कहते हैं, ‘मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि इस जलभराव की शिकायत किससे करूं अथवा किसे शिकायत लिखकर दूं। यहां लोक निर्माण विभाग बेपरवाह है। सब कुछ भगवान भरोसे है। यदि हम अपनी समस्या को लेकर विरोध प्रदर्शन करें भी तो सवाल उठता है किसके खिलाफ करें? उम्मीद है अगले एक महीने में चीजें कुछ बेहतर होंगी।’

मट्टू जम्मू-कश्मीर के उन मतदाताओं में शामिल हैं, जो यहां विधान सभा चुनाव में पहली बार अपना वोट डालेंगे। केंद्र शासित प्रदेश में तीन चरणों में 18 सितंबर से मतदान होगा और मतगणना 8 अक्टूबर को होगी।

मुख्य चुनाव अधिकारी के मुताबिक 18 से 19 साल की उम्र के 45,964 मतदाता हैं। इनमें आधे से अधिक (24,310) महिलाएं हैं। इस समय राज्य में कुल युवा मतदाताओं की संख्या 25.3 लाख है। जो पीढ़ी सरकारी कार्यप्रणाली से पूरी तरह कट चुकी है, उसके लिए ये चुनाव एक सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कहीं अधिक मायने रखते हैं।

कश्मीर घाटी में रहने वाले एक राजनीतिक विश्लेषक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, इसीलिए बीते लोक सभा चुनाव में राज्य में बंपर वोटिंग हुई। पिछले दस वर्षों में सरकार लोगों की पहुंच से दूर हुई है। बिना सरकार के तो आप किसी के खिलाफ भी अपनी आवाज नहीं उठा सकते। कोई काम नहीं होने पर कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते। इसलिए लोग विधान सभा चुनाव को लेकर खासे उत्साहित हैं।’

पहली बार मतदाता बने कई युवा भी कुछ-कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त करते हैं। श्रीनगर के लाल चौक पर अबी गुजर बाजार में कपड़े की दुकान में काम करने वाले एक युवक आज रोजगार और शिक्षा को सबसे बड़ी जरूरत मानते हैं। वह अनुच्छेद 370 का हटना विकास कार्यों में बड़ी बाधा मानते हैं, लेकिन इसके बहाल होने से ही सब समस्याएं खत्म हो जाएंगी, वह इससे भी इत्तफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, ‘आखिर प्रशासन को चलाने के लिए एक व्यवस्था की तो जरूरत है, जिसका आम लोगों को लाभ मिले।’

पिछले एक दशक में 2016 में आतंकी बुरहान वानी की मौत, महबूबा मुफ्ती की सरकार का गिरना और अनुच्छेद 370 का खत्म होना जैसी घटनाओं को देखते आ रहे घाटी के युवाओं के लिए इन चुनावों का बहुत अधिक महत्त्व है, क्योंकि दस साल में पहली बार घाटी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन रही है।

कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर गुल वानी ने कहा, ‘यहां युवा पीढ़ी ने प्रशासन की अति सक्रियता देखी है और यह बहुत व्यवहारिक चीज नहीं है। जब ये युवा वोट डालने जाएंगे, तो निश्चित रूप से इस बात को ध्यान में रखेंगे। हालांकि चुनाव में रोजी-रोटी महत्त्वपूर्ण कारक होगा।’ घाटी में रोजगार बहुत ही गंभीर चिंता का विषय है।

मट्टू कहते हैं, ‘राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन से होने वाली आय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन पहले नोटबंदी, फिर कोविड महामारी और उसके बाद उग्रवाद ने इस पर बहुत गहरी चोट की है। सरकार नौकरी मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। यदि आपके पास पैसा है तो दिल्ली या देश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर सकते हैं। यदि पैसा नहीं है तो पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों में लगकर रोजी-रोटी कमा सकते हैं।’

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के अप्रैल 2023 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर (23.1 प्रतिशत) जम्मू-कश्मीर में है। हालांकि जम्मू-कश्मीर सरकार के 2023 की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक राज्य में बेरोजगारी दर लगातार घट रही है। इसके अनुसार वर्ष 2019-20 में यहां बेरोजगारी दर 6.7 प्रतिशत थी, जो 2021-22 में घटकर 5.2 प्रतिशत पर आ गई।

जम्मू-कश्मीर रोजगार निदेशालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2024 की पहली तिमाही में 3,52,000 युवाओं ने विभाग में रोजगार के लिए पंजीकरण कराया था। इनमें 1,09,000 स्नातक या इससे अधिक शिक्षित थे। पिछले वर्ष के अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में इस स्तर की शिक्षा वाले पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 99,322 थी।

पहलगाम में 20 साल के गाड़ी चालक वसीम कहते हैं, ‘अनुच्छेद 370 हटने से पहले लोग कश्मीर आने से हिचकिचाते थे। पर्यटक यह सोचते थे कि यदि कश्मीर घाटी में घूमने गए तो उनके साथ कुछ अप्रिय घटित हो जाएगा, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा हटने के बाद पर्यटकों में यह भाव कुछ हद तक कम हुआ है। अब लोग यहां अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं और पर्यटकों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ी है।’

घाटी से ताल्लुक रखने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि आज की युवा पीढ़ी के लिए अनुच्छेद 370 उतना मायने नहीं रखता, जितना रोजगार और शिक्षा।

गाड़ी चालक वसीम कहते हैं, ‘मैं यह सुनते हुए बड़ा हुआ हूं कि 1977 के चुनाव से पहले केंद्र से सब्सिडी मांगने के बजाय मेरे पिता और उनके दोस्त किस प्रकार शेख साहिब (शेख अब्दुल्ला) की अपील से प्रभावित होकर भूख हड़ताल पर चले गए थे। वह चुनाव नैशनल कॉन्फ्रेंस जीत गई थी, लेकिन यह अलग समय है और आज की पीढ़ी भी अलग तरह से सोचती है। हम ऐसी अपीलों से प्रभावित नहीं होते।’

विशेषज्ञ कहते हैं, ‘आज की युवा पीढ़ी के लिए उच्च शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू है। जम्मू-कश्मीर में उच्च शिक्षा की स्थिति बहुत ही खराब है। हालात सुधारने के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि पिछले एक दशक में बुनियादी ढांचे में सुधार एक सकारात्मक पहलू रहा है। सड़कें अच्छी हो गई हैं। साथ ही चिकित्सा सुविधाओं में भी सुधार हुआ है।’

वानी कहते हैं कि आज का युवा बेरोजगारी के मुद्दे पर वोट डालेगा, जो उसके लिए सबसे ज्वलंत समस्या है। रोजगार के अवसरों की कमी सबसे बड़ी चिंता का विषय है। हमने निवेश सम्मेलन होते हुए देखे हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं बदला, सब कुछ कागजों तक सीमित है। युवा वोट डालते समय इन हालात को ध्यान में रखेगा।

मट्टू को इस चुनाव में काफी सकारात्मक चीजें नजर आती हैं। वह कहते हैं, ‘लोक सभा चुनाव में कश्मीरियों ने पूरे उत्साह के साथ बड़ी संख्या में वोट डाले थे। इस बार भी लोग ऐसा ही करेंगे। भले ही घर के बड़े-बूढ़े चुनाव को लेकर उतने उत्साहित न हों, लेकिन युवा मतदाता चुनाव का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।’

First Published - September 9, 2024 | 8:41 AM IST

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