अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि महंगाई को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का देश के वित्तीय स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
एडीबी ने हाल ही में एशियन डेवलपमेंट आउटलुक-2008 जारी किया है। इसमें कहा गया है कि भारत सरकार का वित्तीय संतुलन तनाव की दशा से गुजर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘भारत ने कीमतों के बढ़ते दबाव को कम करने के लिए कृतिम उपाय किए हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्न और तेल की कीमतें बढ़ी हैं, जिसका प्रभाव महंगाई पर पड़ा है। इसका सीधा और व्यापक प्रभाव बजट पर पड़ा है। पहले से ही ब्याज के भुगतान पर सरकार मोटी रकम अदा कर रही है, जिससे आफ बजट खर्च बढ़ रहा है।’
दूसरी ओर आईएमएफ की रिपोर्ट में विकासशील देशों द्वारा महंगाई को रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों की सफलता पर ही सवाल उठाया गया है। साथ ही इस बात पर भी चिंता जाहिर की गई है कि सरकार के इस कदम का वित्तीय योजनाओं पर प्रभाव पड़ेगा।
आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री सिमोन जानसन ने वाशिंगटन में वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक चैप्टर जारी किए जाने के अवसर पर हाल ही में कहा, ‘कीमतों में हस्तक्षेप प्राय: सही ढंग से लागू नहीं हो पाता। यह सही है कि कीमतें रोकने के लिए हो रहे उपायों को लेकर हम चिंतित हैं। इसमें से कुछ देशों के द्वारा उठाए गए कदमों पर हम लोगों की पैनी नजर है। यह गंभीर मामला है।
हमारे लिए यह जरूरी है कि अगर कीमतें इसी दर पर स्थिर होती हैं तो सदस्य देशों के बीच इस मामले पर बातचीत होनी चाहिए।’केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात करों में कटौती कर दी है। नान-बासमती चावल और दालों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। स्टील उत्पादकों को कीमतों पर लगाम लगाने को कहा गया है। राज्यों को आवश्यक जिंसों की स्टॉक सीमाएं निधार्रित करने को कहा गया है।
बासमती चावल के निर्यात पर डयूटी इंटाइटलमेंट पासबुक (डीईपीबी) के तहत दी जा रही छूट को खत्म कर दिया गया है। आईएमएफ के भारत में नियुक्त वरिष्ठ अधिकारी जोसुआ फेलमेन का कहना है, ‘सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का प्रभाव सीमित है। इससे बजट घाटा बढ़ेगा।’
एडीबी ने इस बात की भी चेतावनी दी है कि तेल और खाद्य पदार्थो पर सब्सिडी दिए जाने से वित्तीय घाटा बढ़ेगा। आईएमएफ ने विकासशील देशों से कहा है कि, ‘बायोईंघन के उपयोग को प्रभावी तरीके से प्रोत्साहन दिए जाने और संरक्षणवादी तत्वों को हतोत्साहित किए जाने की जरूरत है।’
वैश्विक कीमतें
तेल की कीमतें: 2002 से प्रति साल 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ी।
खाद की कीमतें: 2006 में 260 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 2008 में 768 डॉलर प्रति टन हुई।
चावल की कीमतें: 2002 में 185 डॉलर प्रति टन थीं, जो 2008 में बढ़कर 700 डॉलर प्रति टन हो गईं।
गेहूं की कीमतें: 2006 में 200 डॉलर प्रति टन थीं जो 2008 में बढ़कर 400 डॉलर प्रति टन पहुंचीं।
खाद्य तेलों की कीमतें: 2006 में 650 डॉलर प्रति टन थीं, 2008 में 14,00 डॉलर प्रति टन पर पहुंचीं।