अमेरिकी राष्ट्रपति ने आज अभूतपूर्व कदम उठाते हुए भारत सहित अन्य देशों पर जवाबी शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया, जिससे व्यापार की जंग शुरू हो सकती है। ट्रंप ने भारत से अमेरिका निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर 27 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाया है, जो 9 अप्रैल से लागू होगा। इसके साथ ही ट्रंप ने सभी देशों से आयात पर 10 फीसदी बुनियादी जवाबी शुल्क लगाया है जो 5 अप्रैल से प्रभावी होगा।
चीन (34 फीसदी), वियतनाम (46 फीसदी), बांग्लादेश (37 फीसदी) जैसे देशों की तुलना में भारत पर अपेक्षाकृत कम शुल्क लगाया गया है जिससे भारत को निर्यात में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सकती है। इसके साथ ही भारत के अहम निर्यात क्षेत्र जैसे फार्मास्युटिकल और ऊर्जा को जवाबी शुल्क से बाहर रखा गया है। हालांकि ट्रंप के शुल्क से वैश्विक आपूर्ति में वृद्धि और घरेलू खपत में कमी के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की आशंका है, जिसका भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
अधिकारियों का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कुछ क्षेत्रों को अमेरिका द्वारा लगाए गए जवाबी शुल्क से भारत को लाभ हो सकता है। निर्यात में प्रतिस्पर्धी देशों पर उच्च शुल्क के कारण भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यातकों को फायदा मिल सकता है। दूसरी ओर समुद्री उत्पादों के निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में ‘लिबरेशन डे’ की घोषणा करते हुए ट्रंप ने कहा, ‘वे (भारत) हमसे 52 फीसदी शुल्क वसूल रहे हैं और हम वर्षों, दशकों से लगभग कुछ भी शुल्क नहीं ले रहे हैं।’ ट्रंप ने संकेत दिया कि यदि अन्य देश अमेरिकी निर्यात पर अपनी व्यापार बाधाएं हटा लें तो वे शुल्क घटाने पर विचार करेंगे। उन्होंने अन्य देशों के प्रमुखों से अपील की कि वे ‘अपने शुल्क समाप्त करें, अपनी बाधाएं हटा लें’ और ‘अपनी मुद्राओं में हेरफेर न करें।’
यूरोपीय संघ, चीन और कनाडा सहित कई देशों ने अमेरिकी शुल्क पर जवाबी उपाय करने की बात कही है मगर भारतीय अधिकारियों की प्रतिक्रिया संयमित रही। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका के साथ अपनी व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को महत्त्व देता है।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संवाददाताओं से कहा, ‘डॉनल्ड ट्रंप के लिए ‘अमेरिका प्रथम’ है लेकिन मोदी के लिए भारत पहले है। हम अमेरिका द्वारा लगाए गए जवाबी शुल्क के प्रभाव का आकलन कर रहे हैं।’ वाणिज्य विभाग ने कहा कि वह ट्रंप द्वारा किए गए विभिन्न उपायों/घोषणाओं के प्रभाव का सावधानीपूर्वक आकलन कर रहा है। बयान में कहा गया, ‘विकसित भारत के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए विभाग भारतीय उद्योग और निर्यातकों सहित सभी हितधारकों से शुल्क के बारे में उनके आकलन पर प्रतिक्रिया ले रहा है और स्थिति का आकलन कर रहा है।’
भारत को यह भी उम्मीद है कि साल के अंत तक अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चल रही वार्ताओं का सकारात्मक परिणाम निकलेगा, जिससे जवाबी शुल्क के किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। वाणिज्य विभाग ने बयान में कहा, ‘पारस्परिक रूप से लाभकारी, बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते को जल्द अंतिम रूप देने के लिए भारत और अमेरिका के बीच विचार-विमर्श जारी है। इनमें आपूर्ति श्रृंखला को एकीकृत करने सहित आपसी हित के कई मुद्दे शामिल हैं। दोनों देशों को व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण बढ़ाने पर बातचीत की जा रही है आने वाले दिनों में चर्चा आगे बढ़ने की उम्मीद है।’
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि भारत अमेरिका के शुल्कों के जवाब में नपा-तुला कदम ही उठाएगा। यह संकेत है कि अतिरिक्त शुल्कों के जवाब में भारत फिलहाल कदम उठाने के बारे में नही सोच रहा है। अधिकारी ने कहा, ‘सरकार 2025 के अंत तक अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार पर बातचीत को अंजाम तक पहुंचा देना चाहती है। इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया गया है जिसमें इस प्रक्रिया से जुड़े प्रमुख मंत्रालयों के अधिकारी शामिल होंगे। यह समिति व्यापार समझौते से जुड़े मामलों पर नजर रखेगी और उन पर चर्चा करेगी। अधिकारी ने कहा कि जिन निर्यातकों पर शुल्कों के कारण असर पड़ने जा रहा है सरकार उन्हें समर्थन देने पर भी विचार करेगी।‘
व्हाइट हाउस ने भारत द्वारा लगाए जाने वाले ऊंचे शुल्कों का हवाला दिया और कहा कि अमेरिका से यात्री वाहनों के आयात पर 70 प्रतिशत, नेटवर्किंग स्विच एवं राउटर पर 10-20 प्रतिशत और चावल भूसी पर 80 प्रतिशत और सेब पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाते हैं।
अमेरिका ने कहा, रसायन, दूरसंचार उत्पादों एवं स्वास्थ्य उपकरणों पर भारत मनमाने ढंग से जटिल एवं कड़ी शर्तें लगाता है। इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में उत्पाद बेचना काफी महंगा हो जाता है। अगर ये शर्तें हटा दी जाएं तो अमेरिका से निर्यात सालाना कम से कम 5.3 अरब डॉलर बढ़ जाएगा।
हालांकि, अमेरिका ने कहा कि भारत 17 प्रतिशत औसत सर्वाधिक तरजीही देश (एमएफएन) शुल्क लगाता है मगर 27 प्रतिशत शुल्क दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को ध्यान में रखकर लगाया गया है। मिला-जुला असर अमेरिका और चीन में व्यापार युद्ध और गहराने से भारत को फायदा मिल सकता है। अमेरिका ने अब चीन से आने वाले उत्पादों पर शुल्क बढ़ाकर 54 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है जिसमें पहले हुई 20 प्रतिशत शुल्क की घोषणा भी शामिल है।
खेतान एवं कंपनी में पार्टनर बृजेश कोठारी ने कहा, ‘चीन को लेकर अमेरिका के कड़े तेवर कहीं न कहीं भारत को लाभ पहुंचा सकते हैं। कंपनियां ऊंचे शुल्कों को देखते हुए चीन से अलग भारत जैसे देशों की तरफ रुख करना शुरू कर सकते हैं। इस दीर्घकालिक बदलाव से वैश्विक व्यापार की दिशा भारत की आर्थिक स्थिति के हक में रह सकती है। भारतीय निर्यातक इस मौके का फायदा उठाकर अमेरिकी बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाने का प्रयास करेंगे और वैश्विक आपूर्तिकर्ता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत बनाएंगे।‘
नैसकॉम के अध्यक्ष संजय नायर ने कहा, ‘बुधवार को शुल्कों की घोषणा के बाद वैश्विक व्यापार और विनिर्माण क्षेत्र में समीकरण पूरी तरह बदल जाएंगे। नायर ने कहा, कुल मिलाकर देखें तो ऐसा लग रहा है कि अमेरिकी बाजारों में भारत की निर्यात क्षमता पर तुलनात्मक रूप से कोई बड़ा असर नहीं होगा। मगर हमारे उद्योगों को निर्यात के मोर्चे पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उपाय करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।‘
हालांकि, ट्रंप के शुल्कों से वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था पहले की तरह गतिशील नहीं रह जाएगी और अमेरिका में उपभोग में कमी आएगी तो भारत पर इसका प्रतिकूल असर हो सकता है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में प्रमुख (भारत, आर्थिक शोध) अनुभूति सहाय ने कहा कि शुल्कों से भारत के जीडीपी पर 35-40 आधार अंक तक असर हो सकता है और बाकी चीजें जस की तस रहेंगी। यूबीएस सिक्योरिटीज में मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) तन्वी गुप्ता जैन ने कहा कि अमेरिकी शुल्कों को देखकर लगता है कि भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुमान 30-50 आधार कम रह सकते हैं।