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यूरोप तक लगाए चक्कर, हाथ लगी सफर की धूल

Last Updated- December 08, 2022 | 1:02 AM IST

वैश्विक वित्तीय संकट और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से कानपुर के चमड़ा कारोबारियों, खासकर लेदर गारमेंट व्यवसायियों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।


इसकी वजह से निर्यातकों को नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कानपुर के करीब 50 निर्यातकों को जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन से ऑर्डर हासिल करने में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। निर्यात ऑर्डर के सिलसिले में निर्यातक पिछले दिनों यूरोपीय देशों की यात्रा पर भी गए थे, लेकिन उन्हें कुछ खास हासिल नहीं हुआ।

कांउसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट (सीएलई) के क्षेत्रीय निदेशक इंदिरा मिश्रा ने बताया कि पिछले साल की तुलना में चालू वित्त वर्ष में निर्यात ऑर्डर में करीब 50 फीसदी की गिरावट आई है। अमेरिकी निर्यात में करीब 17 फीसदी, तो स्पेन को निर्यात में करीब 27 फीसदी की गिरावट आई है। इसी तरह जर्मनी के निर्यात में 2 फीसदी, तो रूस भेजे जाने वाले ऑर्डर में करीब 87 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

निर्यातक ताज आलम ने बताया कि पश्चिमी देशों में आए मौसमी बदलाव की वजह से भी मांग में कमी आई है। उन्होंने बताया कि हर साल सितंबर माह के तक इन देशों से भारी मात्रा में लेदर के परिधानों की मांग आती थी, लेकिन अब तक ऑर्डर नहीं मिल पाया है। दरअसल, वायुमंडलीय परिवर्तन की वजह से इन देशों में अब तक ठंड नहीं शुरू हुई है।

ऐसे में निर्यातकों ने अब उन परिधानों पर ध्यान देना शुरू किया है, जिसे कम ठंड के दौरान भी पहना जा सके। इसके लिए लेदर के साथ कॉटन का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह के जलवायु परिवर्तन रोमानिया, बुल्गारिया, पोलैंड, इटली और फ्रांस में भी पिछले तीन सालों से देखा जा रहा है।

हिंदुस्तान एक्सपोटर्स के मो. हारून का कहना है कि मांग में कमी को देखते हुए निर्यातक विदेशों में शो भी आयोजित कर रहे हैं, ताकि उत्पादों की मांग में इजाफा हो सके। सीएलई के चेयरमैन मुख्तार-उल-अमीन ने बताया कि यूरोप भारतीय लेदर परिधानों का सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन वित्तीय संकट से मांग में वहां भी कमी है।

First Published - October 22, 2008 | 12:18 AM IST

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