केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने साझेदारों से 28 नवंबर तक हीरे के प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर सुझाव मांगे हैं। इस मसौदे में सभी हीरों के लिए स्पष्ट लैबलिंग और प्रमाणीकरण के उपबंध भी शामिल हैं।
इन साझेदारों में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग, रत्न और आभूषण निर्यात संवर्द्धन परिषद, भारत का हीरा संस्थान, परीक्षण का राष्ट्रीय एक्रीडेशन बोर्ड और कैलिब्रेशन प्रयोगशालाओं सहित अन्य हैं। अधिकारी के अनुसार, ‘हमने समग्र दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने से पहले सभी साझेदारों के सुझाव आमंत्रित किए हैं। सुझाव भेजने की अंतिम तिथि 28 नवंबर है।’
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सीपीए), 2019 के तहत नियामकीय संस्था केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) है। यह प्राधिकरण उपभोक्ताओं के अधिकारों के हनन, व्यापार के अनुचित तरीकों, ग्राहकों और आम लोगों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले झूठे व भ्रामक विज्ञापन से जुड़े मुद्दों पर नजर रखता है। सीसीपीए उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा व लागू करने के साथ व्यापार के अनुचित तरीकों से भी निपटता है।
प्राकृतिक और प्रयोगशाला में बने हीरों पर विवाद और भ्रम बढ़ा रहा है। सीसीपीए ने ग्राहकों की चिंताओं के मद्देनजर हीरे उद्योग के स्पष्ट दिशानिर्देशों की आवश्यकता पर 18 नवंबर को बैठक आयोजित की थी। प्राकृतिक हीरे करोड़ो वर्षों में प्रकृति में बनते हैं जबकि प्रयोगशाला में हीरे कृत्रिम तरीके से बनाए जाते हैं। लेकिन प्रयोगशाला में बने हीरे के गुण प्राकृतिक हीरे की तरह ही होते हैं।
हीरा उद्योग में प्राकृतिक हीरे और प्रयोगशाला में तैयार हीरे के बीच प्रमाणीकरण की शब्दावली का अभाव और अपर्याप्त रूप से जानकारी देने की प्रथाएं प्रचलित हैं। इससे ग्राहकों में भ्रम की स्थिति है और अनुचित तरीके जारी हैं।
सीसीपीए का लक्ष्य यह है कि इन दिशानिर्देशों को अपनाने से शब्दावली के मानकीकरण को बढ़ावा मिलेगा और इन चुनौतियां से निपटा जा सकेगा। प्राकृतिक हीरे और प्रयोगशाला में तैयार हीरे की अलग-अलग लैबलिंग और प्रमाणीकरण से खुलासा करने की स्पष्टता तय होगी। इसके अलावा पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
इन व्यापक दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए बनाया जाएगा। इन दिशानिर्देशों में सभी प्रकार के हीरों की स्पष्ट लेबलिंग, उनके उद्गम व बनने के तरीके का विस्तार से उल्लेख, ‘प्राकृतिक’ व ‘वास्तविक’ जैसे भ्रामक शब्दों पर प्रतिबंध और हीरा जांचने की प्रयोगशालाओं के मानकीकरण, अनियमित संस्थाओं के उदय पर अंकुश लगाना शामिल है। ऐसा पहली बार नहीं है कि सरकार ने हीरा क्षेत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया है।