Public procurement order: उद्योग विभाग ने कैबिनेट सचिवालय को पत्र लिखकर सार्वजनिक खरीद नियमों के तहत स्थानीय उत्पादों की गणना (calculation of local content) से परिवहन, बीमा, स्थापना, लाभ, कमीशनिंग, प्रशिक्षण और बिक्री बाद सेवा जैसे घटक हटाने की मांग की है।
स्थानीय उत्पाद की गणना में ऐसी सेवाओं को शामिल करने से देसी विनिर्माण के जरिये मूल्यवर्द्धन ज्यादा माना जा सकता है। इससे कंपनियां देश में उत्पादन के बगैर ही स्थानीय उत्पाद की कसौटी पर खरी उतर जाती हैं। इस कारण स्थानीय विनिर्माण और उत्पादन को बढ़ावा देने का बुनियादी लक्ष्य वास्तव में पूरा नहीं हो पाता।
पिछले महीने सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को तरजीह देने) आदेश को लागू करने की समीक्षा के लिए स्थायी समिति की 16वीं बैठक में उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की 26 अप्रैल, 2022 की अधिसूचना पर आपत्ति जताई थी।
इस अधिसूचना के तहत वार्षिक रखरखाव अनुबंध (AMC), समग्र रखरखाव अनुबंध (CMC), प्रशिक्षण, परिवहन और अन्य सेवाओं को सार्वजनिक खरीद के लिए स्थानीय सामग्री की गणना में शामिल करने की अनुमति दी गई थी।
बैठक की अध्यक्षता करने वाले उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग के सचिव राजेश कुमार सिंह ने उसका ब्योरा जारी करते हुए कहा, ‘DPIIT ने बताया कि आयातित उत्पादों की पेशकश करने वाले आपूर्तिकर्ताओं के लिए स्थानीय मूल्यवर्द्धन के रूप में परिवहन, बीमा, स्थापना, लाभ, कमीशनिंग, प्रशिक्षण और बिक्री बाद सेवाओं के लिए AMC/CMC को हटाने के लिए कैबिनेट सचिवालय को एक प्रस्ताव भेजा गया है।’
इस बारे में जानकारी के लिए कैबिनेट सचिवालय और DPIIT को ईमेल भेजा गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
DPIIT का तर्क है कि इस तरह का समावेश आयातित उत्पादों को भी श्रेणी-1 या श्रेणी-2 स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं के रूप में पात्र बनाता है जिससे सार्वजनिक खरीद आदेश का उद्देश्य कमजोर होता है।
फिलहाल परिभाषा के अनुसार पहले दर्जे के स्थानीय आपूर्तिकर्ता वे हैं, जिनकी वस्तुओं एवं सेवाओं अथवा कार्यों में कम से कम 50 फीसदी स्थानीयकरण होता है। इस श्रेणी के आपूर्तिकर्ताओं को सार्वजनिक खरीद में सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। दूसरे दर्जे के स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं की वस्तुओं एवं सेवाओं अथवा कार्यों में कम से कम 20 फीसदी और अधिकतम 50 फीसदी स्थानीयकरण होता है।
गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं की वस्तुओं एवं सेवाओं अथवा कार्यों में 20 फीसदी से कम स्थानीयकरण होता है। इस श्रेणी के आपूर्तिकर्ताओं को सार्वजनिक खरीद में सबसे कम प्राथमिकता दी जाती है। आम तौर पर ऐसे आपूर्तिकर्ताओं को ऑर्डर तभी दिया जाता है जब तक पहले और दूसरे दर्जे के स्थानीय आपूर्तिकर्ता उपलब्ध न हों।
इस मामले की जानकारी रखने वाले निजी क्षेत्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘उद्योग ने पहले भी यह मुद्दा सरकार के सामने उठाया है। कुछ मामलों में सेवा का हिस्सा 40 फीसदी तक होता है और कंपनी को पहले दर्जे का स्थानीय आपूर्तिकर्ता बनने के लिए महज 10 फीसदी स्थानीयकरण की दरकार होती है। सार्वजनिक खरीद का ऑर्डर कैबिनेट का निर्णय होता है न कि कानून। इसलिए मंत्रालय अपनी पसंद के अनुसार उसकी व्याख्या करते हैं। बेहतर स्पष्टता से ऑर्डर के बिल्कुल अनुरूप आपूर्ति करने में मदद मिलेगी।’