ग्रामीण इलाकों में मजदूरी में सुस्त बढ़ोतरी आने वाले महीनों में आर्थिक रिकवरी की राह में बड़ी चुनौती बन सकती है।
श्रम ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण मजदूरी में वास्तविक वृद्धि कुछ महीनों के संकुचन के बाद सितंबर 2021 में धनात्मक क्षेत्र में गई है। लेकिन यह बढ़ोतरी इतनी कम है कि स्थिरता जैसी नजर आती है।
सितंबर महीने में सामान्य कृषि श्रमिकों (पुरुष) की वास्तविक ग्रामीण मजदूरी में महज 2.64 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, उसके बाद अक्टूबर में 2.64 प्रतिशत और नवंबर में 2.64 प्रतिशत वृद्धि हुई है। दरअसल यह मामूली बढ़ोतरी करीब 7 महीने के संकुचन के बाद हुई है, जो दिसंबर 2020 में शुरू हुई और अगस्त 2021 तक (मई 2021 को छोड़कर) चली। इससे पता चलता है कि पहली और दूसरी लहर के बाद आर्थिक गतिविधियां भले ही स्थिर हुई हैं, लेकिन यह सवालों के घेरे में है कि क्या इसका लाभ सभी को मिल रहा है। यह खबर दिए जाने तक ग्रामीण मजदूरी के नवंबर 2021 तक के आंकड़े उपलब्ध थे।
जून 2020 में पहला लॉकडाउन खत्म होने के बाद मजदूरी में बढ़ोतरी शुरू हो गई और नवंबर 2020 तक यह स्थिति बनी रही। लेकिन उसके बाद फिर मजदूरी घटनी शुरू हो गई।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हिमांशु ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘सितंबर 2021 से वास्तविक ग्रामीण मजदूरी में मामूली सुधार हुआ है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह जारी रहेगा। स हमने पहले ग्रामीण मजदूरी में उतार चढ़ाव देखा है और पिछले 5-7 साल से गांवों में मजदूरी स्थिर रही है, जो अब तक के सबसे लंबे वक्त में से एक है, जब ग्रामीण भारत में वृद्धि नहीं हुई है।’
उन्होंने कहा कि इस तरह की लंबे समय तक मजदूरी में स्थिरता का यह भी मतलब है कि गरीब तबके में आर्थिक रिकवरी का लाभ नहीं पहुंच पाया है और चिंता की बात है कि इसे कैसे दुरुस्त किया जाए।
