यह 2007 की बात है जब देश की सबसे बड़ी दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी हीरो होंडा ने ग्रामीण बाजार के लिए अपना केंद्र खोला था। इसके लिए 500 से ज्यादा सेल्स रिप्रेजेंटेटिव गांवों में लगाए गए।
उन्हें गांवों में पंचायत सदस्यों, प्रधानाध्यापक और डाकिए से मिलने को कहा गया। उन्हें ग्रामीण मेलों में अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने की सलाह दी गई। साथ ही उन्हें ग्राहकों की पसंद, संतुष्टि और प्रोफाइल पता लगाने का काम भी सौंपा गया।
यह बेहद संजीदगी के साथ उठाया गया एक रणनीतिक कदम था। हीरो होंडा की प्रतिस्पर्धी कंपनी बजाज ऑटो की बाजार हिस्सेदारी काफी तेजी से बढ़ रही थी। इसलिए हीरो होंडा को कुछ अलग सोचने की जरूरत थी ताकि उसके कारोबार पर असर न पड़े।
‘हर गांव, हर आंगन’ अभियान के जरिए गांवों में जाने का फैसला हीरो होंडा के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ। शहरी बाजार पर ध्यान देने वाली बजाज ऑटो की बिक्री में पिछले कुछ महीनों में गिरावट आई है। वहीं हीरो होंडा की बिक्री बढ़ी है। मंदी की वजह से शहरी बाजारों की हालत खस्ता है।
बाजार में व्याप्त भय और असुरक्षा के माहौल की वजह से शहरी लोगों ने खरीदारी कम कर दी है। इसका असर उपभोक्ता सामान पर भी देखने को मिल रहा है। वहीं मंदी के बावजूद ग्रामीण बाजार में मांग बढ़ना जारी है।
मंदी के इस दौर में ग्रामीण बाजार खास तौर पर ऑटोमोबाइल, सीमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, दूरसंचार और उपभोक्ता सामान के लिए बेहद मददगार साबित हुआ है। शहरी खुदरा बाजार जहां मुश्किलों से घिरा हुआ है, वहीं ग्रामीण खुदरा बाजार फल-फूल रहा है। यह ग्रामीण बाजारों के प्रति बड़ी कंपनियों का बढ़ता आकर्षण ही है कि इस बाजार के बारे में विशेषज्ञता रखने वाली एजेंसियों के ग्राहकों की संख्या बढ़ती जा रही है।
पैसे की भरमार
ग्रामीण बाजार में तेजी का रुख है। जानकार इसके कई कारण गिनाते हैं। संप्रग सरकार ने सीधे गांव के लोगों के पास पैसा पहुंचाने का काम किया है। पहले की सरकारों ने ग्रामीण विकास के लिए पैसा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में डाला और लोगों तक अनाज पहुंचाने में निवेश किया था।
2006 में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू की। इसके तहत हर गरीब ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को साल में 100 दिन का रोजगार पक्का किया गया। लोगों को बुनियादी ढांचा क्षेत्र में रोजगार दिया गया। इससे तीन फायदे हुए। इससे बुनियादी ढांचे का विकास तो हुआ ही, साथ में पैसों की धांधली में भी कमी आई। इसके अलावा ग्रामीण परिवारों के अतिरिक्त आय में भी वृद्धि हुई।
पिछले साल इस योजना को देश मंग सभी 596 जिले में लागू कर दिया गया। योजना के लिए 66,800 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। सरकार ने धान और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी बढ़ा दिया है। पिछले कुछ सालों में अच्छी बरसात की वजह से जबरदस्त उत्पादन हुआ है। दरअसल, बीते साल तो अनाज का उत्पादन रिकॉर्ड 23 करोड़ टन रहा था। जबकि इसके एक साल पहले अनाज उत्पादन 21.7 करोड़ टन था।
2004-05 से अब तक सरकार धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 33 फीसदी और गेहूं के समर्थन मूल्य में 56.3 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुकी है। यह बढ़ोतरी कृषि लागत में हुई वृद्धि से कहीं ज्यादा है। पानी और बिजली पर कई राज्य सरकारें सब्सिडी दे रही हैं। उर्वरक के दामों में होने वाले संभावित बढ़ोतरी को भी केंद्र ने सब्सिडी बढ़ाकर थामे रखा है।
शहरी उदासी से दूर
पिछले साल जनवरी के बाद से शेयर बाजार में 60 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। इससे शहरी लोगों की आमदनी पर असर तो पड़ा लेकिन गांव वालों की आमदनी पर कोई असर नहीं पड़ा। गांव के लोग शेयर बाजार में पैसा लगाने के बजाय बैंक और डाकघर में जमा करने को प्राथमिकता देते रहे हैं। इसलिए जब शेयर बाजार लुढ़के तो ग्रामीण बाजार पूरी तरह बचे रहे।
आर सी ऐंड एम की बिजनेस हेड प्रिया मोंगा का कहना है कि भारत के किसान मौसम के खतरे को बखूबी समझते हैं इसलिए उन्हें मालूम है कब पैसा लगाना है और कब जमा करके रखना है। उनका बाजार शहरी बाजार से तीन गुना बड़ा है।
ग्रामीण सीमा
अगर संक्षेप मे कहें तो ग्रामीण बाजार कंपनियों के लिए उत्पादों क ो बेचने की सही जगह बन गया है। एजेंसी रिसर्च के मुताबिक मंदी के आने से भी गांव के लोगों ने अपने निजी कार्यक्रमों जैसे शादी-ब्याह, तीर्थ यात्रा या घर बनवाने जैसे कार्यक्रमों के बजट में कोई कटौती नहीं की है।
कपूर का कहना है ‘न चीन, न भारत अगर विश्व को आर्थिक मंदी से कोई बचा सकता है तो वह है ग्रामीण भारत।’ भारत में एफएमसीजी उत्पादों की कुल 60 फीसदी खरीदारी ग्रामीण बाजार में होती है।
नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च द्वारा एकत्रित प्राथमिक आंकड़ों के मुताबिक 2009-10 में ग्रामीण बाजारों में मोटरसाइकिल, कार, टेलीविजन, खाद्य तेल, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं, शैम्पू, साबुन, कपडे धोने वाले साबुन और बिस्कुटों की मांग बढ़ने की संभावना है।
ग्रामीण उपभोक्ता कौन है?
टाटा स्काई के मुख्य विपणन अधिकारी विक्रम मेहरा का कहना है कि ‘अक्सर कंपनियां गांव के लोगों को बहुत दयनीय मानती हैं। पर ऐसा है नहीं।
गांव का उपभोक्ता यह जानता है कि उसे क्या चाहिए और वह हमेशा सस्ती चीजों के पीछे भी नहीं भागता। जिस तरह शहरी उपभोक्ता चीजों को समझता है ठीक वैसे ही ग्रामीण उपभोक्ता भी उसे समझता है।’
उदाहरण के लिए टाटा स्काई का मानना था कि उनकी भिन्न-भिन्न आकर्षित सुविधाओं से शहरी उपभोक्ता ही प्रभावित हो सकता है । पर शादी के विज्ञापन, खेल प्रतियोगिता और भविष्य की जानकारियों जैसी सुविधाओं की मांग गांवों में बहुत ज्यादा है।
शहरी उपभोक्ता जिसके पास इंटरनेट की सुविधाएं भी हैं, उसके मुकाबले ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए कार्यक्रम सामान्य क्रियाकलाप का माध्यम बन गए हैं। मेहरा का कहना है, ‘मोबाइल फोन ने गांव के लोगों को ज्यादा जागरूक बना दिया है। किसी भी नए उत्पाद के बाजार में आने से पहले उसे गांव और शहर दोनों ही तरह के उपभोक्ताओं पर परखा जाता है।
ग्रामीण उपभोक्ता भी ब्रांड, उपभोक्ता सेवाओं, उत्पाद और उसके सौंदर्य को तवाो देते हैं। जैसे-जैसे उनकी आमदनी में इजाफा हो रहा है, वैसे ही उनमें उत्पादों की समझ भी बढ़ती जा रही है। बात साफ है। गांव के उपभोक्ताओं की अपनी जरूरतें हैं और वे बेहतर सुविधाओं के लिए पैसा भी लगाने को तैयार हैं। नोकिया का उदाहरण लें।
एक सर्वे के जरिए यह पता चला है कि अखबार गांवों तक नहीं पहुंच पाते हैं। तब मलयालम मनोरमा के साथ मिलकर नोकिया ने एक एसएमएस अलर्ट की सुविधा शुरू की और उसे बडे पैमाने पर प्रतिक्रियाएं भी मिलीं।
नोकिया ने ऐसी सुविधाओं के लिए आवेदन पत्र निकाले हैं जिनके जरिए ग्रामीण और कस्बाई लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा (जैसे अंग्रेजी सीखने में मदद), मनोरंजन और कृ षि की सहूलियत दी जाएंगी। नोकिया लाइव टूल नाम की इस सेवा की शुरूआत जनवरी 2009 में महाराष्ट्र के पांच जिलों में की गई थी।
भारत में नोकिया के अध्यक्ष रघुवंश स्वरूप का कहना है कि ‘एनएलटी के द्वारा हम उन लोगों को जानकारी मुहैया करायेंगे जिनके पास टीवी तक नहीं है।’
सही दाम, सही उत्पाद
आईटीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (कृ षि-व्यापार क्षेत्र) शिवकुमार का कहना है कि ग्रामीण उपभोक्ताओं की मांगें भी शहरी उपभोक्ताओं की तरह ही होती हैं। हां, कीमत के मोर्चे पर दोनों की राय अलग अलग हो सकती है। अब एफएमसीजी क्षेत्र में अच्छे उत्पादों की मांग है।
उपभोक्ता अगर पैसे खर्च करने को तैयार हैं तो उन्हें अच्छी चीजें चाहिए होती हैं। शिवकुमार का कहना है कि अब लोगों में सही चीजों के प्रति विश्वास बढ़ा है। इसकी वजह से अब कपडों और परिधानों का बाजार 5 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी हो गया है।
टाटा स्काई ने अपनी डायरेक्ट टू होम सेवा की शुरुआत ग्रामीण उपभोक्ताओं को ध्यान में रख कर ही की थी। इस सेवा की शुरूआत 99 रुपये के पैकेज से की गई थी जो एक छोटी थाली की कीमत जितनी थी जिसमें जरूरत लायक चीजें होती हैं। यह पहली ऐसी कंपनी है जिसकी प्रोग्राम गाइड अंग्रेजी और हिंदी दोनों में उपलब्ध है।
मेहरा का कहना है कि पहले लोग डीटीएच टेक्नोलॉजी से डरते थे और ऊपर से मेन्यू अंग्रेजी में होने से उनका डर और बढ़ गया था। सैमसंग ने भी अपने उत्पादों को इस तरह बनाया है जो ग्रामीण बाजार के अनुरूप हैं। जैसे सैमसंग रेफ्रिजरेटर में स्टैबलाइजर की जरूरत नहीं है जिससे बिजली के खर्च से बचा जा सकता है।
फ्लैट टीवी में चैनल चुनने के विकल्प हैं। सैमसंग इंडिया के उप प्रबंध निदेशक रविंदर जुत्शी का कहना है कि पहले इस बाजार से सैमसंग को 25 से 27 फीसदी का फायदा होता था और अब यह बढ़कर 30 फीसदी तक होने की संभावना है।
प्रचार के लिए कम खर्च
ग्रामीण बाजारों में प्रचार के लिए विशेष तौर पर अभियान चलाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए टाटा स्काई ग्रामीण उपभोक्ताओं तक अपने उत्पादों की जानकारी पहुंचाने के लिए खास मशक्कत करती है।
मेहरा बताते हैं, ‘हमारे स्थानीय वितरक उपभोक्ताओं तक जाकर उत्पाद की खासियत बताते हैं। गाड़ियों के जरिए उन तक पहुंचा जाता है और कई दफा नुक्कड़ नाटकों के जरिए भी उत्पाद के विषय में जानकारी दी जाती है।’
वह बताते हैं कि कंपनियों को अब यह समझना होगा कि ग्रामीण बाजारों में भी कारोबार की काफी संभावनाएं हैं। इस वजह से विज्ञापन और प्रचार के लिए तैयार बजट का पूरा हिस्सा वे शहरी उपभोक्ताओं पर ही नहीं खर्च कर सकती हैं। टाटा स्काई के लिए ग्रामीण बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत करने में एक बड़ी समस्या बिजली की थी।
गांवों में बिजली की किल्लत के कारण बिना रुकावट टीवी देखना मुश्किल होता था। लिहाजा, कंपनी ने 2007 में इनवर्टर कंपनियों से गठजोड़ किया। साथ ही टाटा ब्रांड की लोकप्रियता भी काफी है, यहां तक कि इसके ट्रकों को भी लोग पहचानते हैं। सैमसंग ग्रामीण बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। इसके लिये उसने ड्रीम होम रोड शो किया।
देहात का साथ
गांवों में पैसा है और लोग सोच-समझकर ही करते हैं खर्च
शेयरों की गिरावट का असर शहरी वर्ग पर, गांवों में नहीं हुआ कुछ
गांवों में भी बढ़ा है ब्रांडेड चीजों के प्रति लगाव
