भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मुख्य रूप से महंगाई को काबू में लाने के उद्देश्य से बुधवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा (bi-monthly monetary policy review) में एक बार फिर नीतिगत रीपो दर (Repo rate) में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इससे मुख्य नीतिगत दर बढ़कर 6.50 फीसदी हो गई है।
इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर के अनुमान को 6.8 फीसदी से बढ़ाकर सात प्रतिशत कर दिया है। वहीं अगले वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 6.4 फीसदी रहने का अनुमान रखा गया है।
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 6.5 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में 5.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। रीपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। इसमें वृद्धि का मतलब है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा होगा और मौजूदा ऋण की मासिक किस्त (EMI) बढ़ेगी।
मौद्रिक नीति समिति (MPI) की सोमवार से शुरू हुई तीन दिन की बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने डिजिटल माध्यम से प्रसारित बयान में कहा, ‘मौजूदा आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए एमपीसी ने नीतिगत दर रीपो 0.25 फीसदी बढ़ाकर 6.50 फीसदी करने का निर्णय किया है।’
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने रीपो दर बढ़ाने के पक्ष में मतदान किया। हालांकि, रीपो दर में वृद्धि की यह गति पिछली पांच बार की वृद्धि के मुकाबले कम है और बाजार इसकी उम्मीद कर रहा था।
आरबीआई मुख्य रूप से मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये इस साल मई से लेकर अबतक कुल छह बार में रीपो दर में 2.50 फीसदी की वृद्धि कर चुका है। इससे पहले, मई में रीपो दर 0.40 फीसदी तथा जून, अगस्त तथा सितंबर में 0.50-0.50 फीसदी तथा दिसंबर में 0.35 फीसदी बढ़ायी गयी थी।
केंद्रीय बैंक नीतिगत दर पर निर्णय करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई पर गौर करता है।