आयुर्वेदिक, यूनानी और सिध्द दवाओं के निर्यात के लिए केंद्र सरकार बैच के मुताबिक गुणवत्ता प्रमाणपत्र दिए जाने की योजना बना रही है।
नए प्रमाणपत्र, उद्योग मंत्रालय में आने वाली निर्यात जांच एजेंसियां देंगी। ये एजेंसियां इस बात का खयाल रखेंगी कि निर्यात की जाने वाली यूनानी आयुर्वेदिक और सिध्द दवाएं भारत और निर्यात किए जाने वाले देश के मानकों के अनुरूप हैं या नहीं।
यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में इन दवाओं को लेकर स्वास्थ्य संबंधी चिंता व्यक्त की जा रही है। आयात करने वाले देशों ने आरोप लगाया है कि भारत से आने वाली परम्परागत दवाओं में भारी मेटल्स, कीटनाशक या माइक्रोबियल कंटामिनेशन की मात्रा स्वीकृत स्तर से बहुत ज्यादा है। भारत से आयात की गई दवाओं के बारे में इन देशों में दवा नियामक को भी निर्देश दिए गए हैं।
भारत से परम्परागत दवाओं के निर्यात का कारोबार करीब 1000 करोड़ रुपये का है। इसमें से ज्यादातर दवाएं खाद्य पदार्थों के पूरक के रूप में निर्यात की जाती हैं और एक चौथाई दवाएं आयुर्वेदिक हैं।
प्रस्तावित प्रमाण पत्र पहले से दिए जा रहे प्रमाण पत्र के अतिरिक्त होगा। वर्तमान में इन दवाओं के निर्यात के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आने वाला सेंट्रल ड्रग कंट्रोल स्टैंडर्ड आर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) इन दवाओं को अनुमति प्रदान करता है।
यह भी योजना है कि प्रमाणपत्र दिए जाने के लिए नए सिरे से मानक तय किए जाएं, जिसकी निगरानी निर्यात जांच एजेंसियां करेंगी। इस तरह से निर्यात की जाने वाली दवाओं में भारी मेटल्स, कीटनाशक और माइक्रोबियल कंटामिनेशन की मात्रा को मानकों के मुताबिक नियंत्रित किया जा सकेगा। निर्यात के लिए अलग से पैकेजिंग और लेबलिंग मानकों का भी निर्धारण किया जाएगा।
लगातार निरीक्षण की जिम्मेदारी निर्यात जांच काउंसिल की होगी। यह विनिर्माण प्रक्रिया की भी जांच करेगी, जिससे उत्पादन के स्तर पर बेहतर विनिर्माण और हाइजिन पर ध्यान रखा जा सके। बहरहाल निर्यातकों को इस बात का डर है कि दोहरे निरीक्षण से दवा उद्योग के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। आयुर्वेदिक ड्रग मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी रंजीत पुराणिक ने कहा कि ‘हम सरकार की गुणवत्ता नियंत्रण की पहल केकदम का स्वागत करते हैं।
इससे निर्यात की जाने वाली दवाइयों की गुणवत्ता में सुधार होगा। हालांकि इसकी प्रक्रिया को लेकर चिंता है। दो स्तरों पर प्रमाणपत्र दिए जाने से निर्यात की गति कम होगी और यह महंगी प्रक्रिया साबित होगी। बहरहाल जब तक देशज दवाओं की गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा तब तक निर्यात में धार नहीं आएगी।’
इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन की इंटरनेशनल ट्रेड सब कमेटी के अध्यक्ष डीबी मोदी ने कहा कि यह कदम पूरी तरह से भारतीय परम्परागत दवाओं के निर्यात के खिलाफ है। इससे निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कोई भी कदम, जिससे दवा के खर्च में बढ़ोतरी होगी, उससे निर्यात प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी।
कठिन होगी मानकों की डगर
उद्योग मंत्रालय की निर्यात जांच एजेंसियां भी देंगी प्रमाण पत्र।
गुणवत्ता को लेकर अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने उठाए थे सवाल।
भारत से परम्परागत दवाओं के निर्यात का कारोबार 1000 करोड़ रुपये का है।
निर्यात से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि दोहरे प्रमाण पत्र से खर्च बढ़ेगा।
निर्यात के लिए बनेंगे पैकेजिंग और लेबलिंग के नए मानक।