वित्त मंत्रालय ने नॉन लैप्सेबल रक्षा फंड के वित्तपोषण के लिए 15वें वित्त आयोग (एफएफसी) द्वारा सुझाए गए तरीके को खारिज कर दिया है और अब वित्तपोषण के नए साधनों की तलाश कर रहा है। मंत्रालय का मानना है कि एफएफसी द्वारा सुझाए गए तरीके से सीधे नॉन लैप्सेबल फंड में पैसे डाल देने से संसद की सालाना जांच के नियम का उल्लंघन होगा और यह बेहतर संसदीय गतिविधियों के खिलाफ है।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम सार्वजनिक न किए जाने की शर्त पर कहा, ‘रक्षा पर आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया है। सरकार भारत की संचित निधि से धन निकालकर नॉन लैप्सेबल फंड में डालने पर सहमत नहीं है। परंपरागत रूप से नॉन लैप्सेबल फंड कुछ चिह्नित राजस्व जैसे जीएसटी मुआवजा उपकर या स्वास्थ्य देखभाल या स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर से संबंधित होता है। यह बेहतर संसदीय परंपरा के खिलाफ है कि आप आप संसद से अनुमति लें और इसे एक अलग बॉक्स में रख दें। हर साल हमें निश्चित रूप से संसद के पास जाना चाहिए और मंजूरी लेनी चाहिए। यह बेहतरीन संसदीय अनुशासन है। लेकिन वित्तपोषण का निश्चित आश्वासन लेने के लिए हम वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार करेंगे, जिससे निश्चित वित्तपोषण हो सके। हम इस पर काम कर रहे हैं।’
एफएफसी ने रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए बजट आवंटन और धन की जरूरतों के बीच अनुमानित अंतर की भरपाई के लिए भारत के सार्वजनिक लेखा के गठन की सिफारिश की थी, जो एक समर्पित नॉन लैप्सेबल फंड होगा जिसे रक्षा व आंतरिक सुरक्षा आधुनिकीकरण कोष (एमएफडीआईएस) कहा जाएगा। प्रस्तावित एमएफडीआईएस का कुल सांकेतिक आकार वित्त वर्ष 26 तक 5 साल के लिए 2.4 लाख करोड़ रुपये रखा गया था और आयोग ने इस अवधि के दौरान एमएफडीआईएस में 1.5 लाख करोड़ रुपये भारत की संचित निधि से स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी।
एफएफसी के कार्यक्षेत्र (टीओआर) में संशोधन कर सरकार ने जुलाई 2019 में यह कहा था कि वह जांच करे कि रक्षा व आंतरिक सुरक्षा के लिए क्या कुछ अलग से व्यवस्था की जा सकती है और ऐसा है तो इस तरह की व्यवस्था किस प्रकार काम करेगी।
रक्षा संबंधी खरीद और अधिग्रहण की कार्रवाई में लंबा वक्त लगता है और रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित राशि उस खास वित्त वर्ष के लिए होती है। उस वित्त वर्ष में राशि खत्म न होने पर उसे वापस कर दिया जाता है। इससे बचने के लिए नॉन लैप्सेबल फंड का विचार सामने आया था, जिससे जरूरत पडऩे पर धन उपलब्ध रहे।
नॉन लैप्सेबल फंड का मुख्य सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण करना था, जिससे पाकिस्तान और चीन की ओर से दो मोर्चों से पैदा हुए खतरे से निपटा जा सके। इस तरह से इसका मकसद होगा कि फंड का इस्तेमाल प्राथमिक रूप से पूंजीगत व्यय पर होगा।
यह विचार रक्षा पर बनी संसद की समिति की ओर से कई बार रिपोर्टों में आया था। रक्षा मंत्रालय शुरुआत में नॉन लैप्सेबल डिफेंस कैपिटल फंड अकाउंट के गठन के प्रस्ताव के पक्ष में नहीं था, लेकिन वह 2017 में इस पर सहमत हो गया।
बहरहाल रक्षा पर बनी संसद की स्थायी समिति ने 2018-19 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वित्त मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय के प्रस्ताव से सहमत नहीं होगा क्योंकि इससे संचित निधि से धन आना है और इसे इस तरह के कोष में डालना संविधान के अनुच्छेद 266 (1) की धारणा के विरुद्ध होगा।
