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मध्य प्रदेश के धार्मिक नगरों में शराब बंद मगर राजस्व में लगेगी मामूली सेंध

प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बताए धार्मिक इलाकों में शराब की बिक्री बंद होने से राजस्व में 2 फीसदी से ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

Last Updated- March 09, 2025 | 10:12 PM IST
government liquor shop
प्रतीकात्मक तस्वीर

मध्य प्रदेश सरकार ने एक बड़ा फैसला करते हुए राज्य के 19 अहम शहरों और कस्बों में शराब की बिक्री बंद करने का फैसला किया है। धार्मिक महत्त्व के इन शहरों-कस्बों में 1 अप्रैल से शराब की बिक्री पूरी तरह बंद कर ली जाएगी। मगर इससे सरकारी खजाने को बहुत चोट नहीं लगेगी क्योंकि इस कदम से राजस्व में सालाना 3 फीसदी की ही कमी आने का अनुमान है।

राज्य सरकार ने कुछ पवित्र क्षेत्र घोषित किए हैं, जिनमें शराबबंदी की जा रही है। ये इलाके उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मंडलेश्वर, ओरछा, मैहर, चित्रकूट, दतिया, पन्ना, मंडला, मुलताई, मंदसौर, अमरकंटक, सलकनपुर, बरमान कला, लिंगा, बरमान खुर्द, कुंडलपुर और बांदकपुर हैं।

प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष में कंपोजिट शराब दुकानों से कुल 15,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिलने की उम्मीद है। उनका गणित कहता है कि ऊपर बताए इलाकों में शराब की बिक्री बंद होने से राजस्व में 2 फीसदी से ज्यादा नुकसान नहीं होगा। आबकारी विभाग के एक उच्च अधिकारी ने अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि विभाग को नहीं लगता कि राजस्व में खास नुकसान होगा। इसकी वजह यह है कि इन स्थानों पर बंद हुई दुकानों से जो कमाई होती थी, उसे अन्य स्थानों की दुकानों से आने वाले राजस्व के जरिये पूरा किया जाएगा।

अधिकारी ने बताया, ‘इस बार शराब के ठेके आवंटित करने के लिए टेंडर कम ऑक्शन का तरीका अपनाया जा रहा है। जिसे ठेका पाना है, उसे इसमें निविदा डालनी होगी और एक तय राशि से ऊपर रकम चुकाने पर ही ठेका मिलेगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि बिक्री का सही ब्योरा और सही निगरानी रखने के लिए सभी दुकानों पर पॉइंट ऑफ सेल मशीनें रखना अनिवार्य बनाया जा रहा है। प्रायोगिक स्तर पर यह काम कई दुकानों पर चालू भी कर दिया गया है।

कैसे होगी राजस्व भरपाई

शराब की बिक्री केंद्र और राज्य सरकारों के लिए राजस्व का बड़ा जरिया होती है। ऐसे में पवित्र घोषित किए गए शरहों और कस्बों में दुकानें बंद होने से सरकार को राजस्व हानि होना लाजिमी है। मगर उसकी भरपाई के लिए वैकल्पिक व्यवस्था या फॉर्मूला गढ़ लिया गया है। जिन जिलों में दुकानें बंद हो रही हैं, उनसे आने वाले राजस्व की भरपाई इस फॉर्मूले के तहत दूसरे जिलों से की जाएगी। सबसे पहले तो शराब की मौजूदा दुकानों का नवीनीकरण शुल्क बढ़ाया जा रहा है। साथ ही नई दुकानों के लिए आरक्षित मूल्य में भी 20 प्रतिशत इजाफा किया जाएगा।

नई आबकारी नीति में पवित्र क्षेत्रों में शराबबंदी की जा रही है मगर प्रदेश में पहली बार ‘लो अल्कोहल बेवरिज बार’ खोलने की इजाजत भी दी जा रही है। इन बार में बीयर, वाइन और अल्कोहल वाले ऐसे ‘रेडी टु ड्रिंक’ पेय परोसे जाएंगे, जिनमें 10 फीसदी से कम अल्कोहल होता है। यह भी राजस्व बढ़ाने की कोशिशों का हिस्सा है। इन मिनी बार का लाइसेंस सामान्य बार से कम रखा जाएगा।

प्रदेश के 19 स्थानों पर शराब की बिक्री बंद होने से 47 कंपोजिट शराब दुकानें प्रभावित होंगी। इन दुकानों में देसी और विदेशी दोनों तरह की शराब बेची जाती है। उज्जैन में 2028 में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाना है। ऐसे में शराबबंदी की यह घोषणा काफी अहम मानी जा रही है।

बसेगी सिंहस्थ कुंभ की नगरी

सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हाल ही में आयोजित महाकुंभ से प्रेरणा लेकर मध्य प्रदेश सरकार भी क्षिप्रा नदी के तट पर एक अस्थायी मेगा सिटी बसाने की योजना बना रही है। श्रद्धालुओं के लिए बनने वाली इस सिटी में हर तरह की सुविधाएं होंगी। उज्जैन प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का गृह जिला भी है।

प्रदेश सरकार ने सिंहस्थ-2028 की तैयारियों के लिए करीब 5,955 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी है। सिंहस्थ मेला क्षेत्र करीब 3,360 हेक्टेयर में फैला है। मेला क्षेत्र में स्थायी बुनियादी ढांचा मसलन सड़कें, जलापूर्ति नेटवर्क, बिजली, उद्यान आदि तैयार किए जाने हैं। सिंहस्थ में करीब 15 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि प्रदेश सरकार प्रयागराज महाकुंभ की व्यवस्थाओं में लगी कंपनियों और स्टार्टअप को उज्जैन बुलाकर उनका एक सम्मेलन कराएगी।

सरकार की योजना के मुताबिक उज्जैन और इंदौर को सिंहस्थ के प्रमुख केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक कुछ वर्ष पहले ‘महाकाल लोक’ की स्थापना के बाद उज्जैन आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या पांच गुना हो गई है। पहले साल भर में करीब 1 करोड़ श्रद्धालु यहा आते थे मगर अब आंकड़ा सालाना 5 करोड़ तक पहुंच चुका है।

First Published - March 9, 2025 | 10:12 PM IST

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