भारतीय रिजर्व बैंक साल 2008 में ही ब्याज दरों में 0.25 ले 0.50 फीसदी की और बढ़ोतरी कर सकता है।
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि बढ़ती महंगाई के बीच अगले साल से पहले ब्याज दरों में नरमी की कोई संभावना नहीं है। हालांकि अगले साल की शुरुआत से ब्याज दरों में कमी शुरू हो सकती है। केंद्रीय बैंक साल 2008 के पहले आठ महीनों में ब्याज दरों में 1.25 फीसदी की बढोतरी कर चुका है।
लेकिन कम होती वृध्दि दर, बढ़ती कमोडिटी की कीमतों और वैश्विक माहौल के प्रतिकूल होने के चलते भारतीय कंपनियों के लिए विदेशों से पूंजी इकठ्ठा करना मुश्किल हो गया है। इन परिस्थितियों में अगले साल की शुरुआत से रिजर्व बैंक ब्याज दरों मे कटौती करना शुरु कर सकता है।
जून की तिमाही में अर्थव्यवस्था में 7.9 फीसदी की सालाना दर से विकास किया। यह साढ़े तीन सालों में सबसे कम है। लेकिन आरबीआई ने चेतावनी दी है कि मांग में किसी भी प्रकार का दबाव प्रतीत नहीं होता है और कहा कि मौद्रिक नीति फिलहाल कठोर रहेगी।
एचएसबीसी में इकोनोमिस्ट रॉबर्ट प्रीयर-वैंडसफोर्ड का अनुमान है कि आरबीआई अभी कर्ज की ब्याज दरों में 0.50 फीसदी की और वृध्दि करेगी जबकि बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो में 0.75 फीसदी की वृध्दि कर सकती है। आरबीआई यह कदम महंगाई के साथ केंद्रीय कर्मियों के वेतनमान में 21 फीसदी की बढोतरी से निपटने के लिए उठा सकती है।
उन्होंने कहा कि बैंक का फोकस महंगाई पर रहेगा और वह केंद्रीय कर्मचारियों के वेतनमान में बढोतरी के मामले से ज्यादा दबाव नहीं लेगी। पिछले महीने सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के वेतनमान में 21 फीसदी की बढोतरी करने का ऐलान किया था। जिससे केंद्र सरकार पर वित्तीय वर्ष 2008-09 के लिए 125.6 अरब रुपये का बोझ बढ़ा है जबकि 2006 से की गई बढ़ोतरी पर सरकार को 180.6 अरब रुपये खर्च करने होंगे।
महंगाई की दर जो भारत में महंगाई के लिए मुख्य पैमाना है, मध्य अगस्त में 12 फीसदी से ऊपर बढ़कर 12.63 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। यह आरबीआई के मार्च 2009 की महंगाई दर के अनुमान सात फीसदी से कहीं ज्यादा है। एचएसबीसी का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2008-09 में औसत महंगाई की दर 11.9 फीसदी जबकि 2008 में 10.3 फीसदी रहेगी।
सिटी ग्रुप की रोहिनी मलकानी और अनुष्का शाह का अनुमान है कि आने वाले महीनों में महंगाई के दोहरे अंकों में ही बने रहने की संभावना है। इसकी वजह बेस इफेक्ट और तेल की ऊंची कीमतें हैं जबकि अनाज की कीमतों में गिरावट आने के परिणाम 2009 की शुरुआत से ही दिखने शुरु होंगे।
सिटी ग्रुप के विश्लेषक ने हाल में अपने नोट में लिखा था कि महंगाई के ब्राडबेस्ट प्रकृति की वजह से बैंक को सीआरआर और रेपो रेट में एक बार और वृध्दि करनी पड़ सकती है। कड़ी मौद्रिक नीति का प्रभाव पूंजी निवेश पर भी पड़ा है और इसमें वित्तीय वर्ष 2008-09 में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
लेहमैन ब्रदर्स में इकोनोमिस्ट सोनाली वर्मा ने कहा कि धीमी पड़ती विकास दर और बढ़ती महंगाई के बीच हमारा अनुमान है कि आरबीआई को अप्रैल 2009 से ब्याज दरों में कटौती पर काम करना होगा और यदि इसके लिए जल्द कदम नहीं उठाया जाता है तो वृध्दि दर अनुमान से कहीं अधिक तेजी से गिर सकती है।
कर्ज दरें नहीं बढ़ाएंगे बैंक
पीएनबी के सीएमडी के सी चक्रवर्ती का मानना है कि रिजर्व बैंक अपनी दरें बढ़ा भी दे तो भी अगले 5-6 महीने तक बैंक अपनी कर्ज की दरें नहीं बढ़ाएंगे।
उन्होने कहा कि इस साल मौद्रिक नीति में आगे की जाने वाली बढ़ोतरी को जून और जुलाई के इजाफे में पूरा कर लिया है। चक्रवर्ती ने कहा कि डिपॉजिट दरों में वृध्दि हो सकती है क्योंकि महंगाई की दर 12 फीसदी के स्तर पर होने के साथ ही जमाकर्ताओं को मौजूदा हालात में कुछ राहत मिलनी चाहिए।