राज्य सरकारों द्वारा कराए गए एक सर्वे से संकेत मिलता है कि हालांकि कई सरकारें कीमतों को नियंत्रित करने के लिए राजनीतिक दबाव का सामना कर रही हैं लेकिन कुछ ही सरकारों ने इसे नियंत्रित करने के लिए कारगर कदम उठाए हैं।
यह हाल सिर्फ उन राज्यों का नहीं है जहां विपक्षी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है बल्कि उन राज्यों में भी ऐसा हुआ है जहां कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सहयोगी पार्टियों जैसे वामदलों की सरकारें हैं। इस मायने में दिल्ली और महाराष्ट्र अपवाद हैं।
ये दोनों राज्य कीमतें नियंत्रित करने के लिए आपूर्ति प्रबंधन पर जोर दे रहे हैं और दोनों राज्यों द्वारा उठाए गए कदम कमोबेश एक जैसे ही दिख पड़ते हैं।मूल्य को नियंत्रित नहीं कर पाने के बाद सबसे साहसी वक्तव्य छत्तीसगढ सरकार के मुख्य वित्त सचिव डी एस मिश्र ने दिया है। मिश्र का कहना है कि राज्य में मूल्य नियंत्रित करने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं की गई है।
मिश्र ने बताया कि अगर इस पर नियंत्रण पाना ही है तो जरूरी जिंसों की कालाबाजारी और जमाखोरी पर रोक लगानी होगी। राज्य सरकार ने इस संबंध में पिछले तीन सप्ताह से कोई मीटिंग नहीं की है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मूल्य को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।पंजाब की भी स्थिति इससे अलग नहीं है।
वहां भी खाद्य पदार्थों की कीमतें तो अनियंत्रित हैं ही, धातुओं की कीमतें भी हाथ से निकल गई है। लुधियाना के सबसे बड़े कॉमर्स और इंडस्ट्री के चैंबर ने कहा कि इस्पात के दामों में लगभग 36,000 प्रति 10 लाख टन का अंतर देखा जा रहा है। उसने कहा है कि इस्पात के दामों में मुद्रास्फीति के बाद 27 प्रतिशत का उछाल आया है जबकि खाद्य तेलों की कीमतों में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सरकार ने हालांकि खाद्य पदार्थों के दामों पर नियंत्रण करने के लिए कदम तो उठाए हैं लेकिन इस्पात की कीमतें स्थिर करने पर कोई कदम नहीं उठा रही है और इस बात की भी मांग की जा रही है कि इस्पात पर उत्पाद शुल्क में कमी की जाए ताकि निर्यात पर अंकुश लगाया जा सके। इस्पात उद्योगी इस बात को मानते हैं कि इसकी कीमत अभी और बढ़ेगी।
लेकिन इसके बावजूद सरकार मूल्य नियंत्रण को लेकर प्रतिबद्धता नहीं दिखा रही है। केरल को भी बढ़ती खाद्य पदार्थों की कीमतों ने कमर तोड़ कर रख दिया है। हालांकि कुट्टंड के किसानों ने राज्य की जरूरत के मुताबिक चावल का समुचित उत्पादन कर दिया है लेकिन राज्य के गोदामों में गर्मी की वजह से आधे से ज्यादा चावल बर्बाद हो गए। वैसे भी कुट्टंड में अब चावल उत्पादन के लिए मात्र 37,000 हेक्टेयर जमीन ही है जो पहले 55,000 हेक्टेयर था।
अगर सरकार इस दिशा में कुछ ठोस कदम नही उठाती है तो यहां के चावल किसान सब कुछ खो बैठेंगे। वैसे केरल सरकार ने सब्जियों की कीमत पर लगाम लगाने के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। राज्य के खाद्य और सिविल आपूर्ति मंत्री सी दिवाकरन ने कहा कि सरकार राज्य और राज्य से बाहर हॉर्टिकल्चर प्रोडक्ट्स कॉरपोरेशन के जरिये सब्जियों का भंडारण करेगी।
ये सब्जियां इसी कॉरपोरेशन के जरिये दुकानों तक पहुंचाई जाएंगी। उन्होंने बताया कि इस कदम का मुख्य उद्देश्य सब्जियों को कम कीमतों पर जनता को उपलब्ध कराना है। सरकार ने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अगले सप्ताह 200 सब्जी दुकानें खोलने जा रही है। केरल सरकार चावल को भी 18 रुपये की कीमतों से कम पर बेचने के लिए जन वितरण प्रणाली को निर्देश देने जा रही है।
उम्मीद की जा रही है कि जन वितरण प्रणाली की दुकानों पर ये चावल 14 रुपये प्रति किलो की दर पर उपलब्ध कराया जाएगा।पश्चिम बंगाल भी केंद्र सरकार की तरह कीमतों की उछाल से परेशान है। वैसे सरकार की कालाबाजारियों और जमाखोरों के खिलाफ कदम उठाने की कोई योजना नही है।
मध्य अप्रैल के बाद सभी राजनीतिक पार्टियां इस कीमत वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने जा रही है।बहुत सारे राज्यों में इस साल के अंत तक चुनाव होने वाले हैं। इसी चुनावी रणनीति के तहत बीजेपी शासित राज्यों में 3 रुपये प्रतिकिलो की दर से चावल बेचने की योजना बनाई । लेकिन यह योजना भी औंधे मुंह गिर गया। छत्तीसगढ़ में एक योजना के तहत 3 रुपये प्रतिकिलो की दर से गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले लोगों को 35 किलो चावल देने की व्यवस्था की है।