उपभोग मांग में सुधार, सामान्य से बेहतर मॉनसून, मजबूत औद्योगिक वृद्धि और निरंतर सार्वजनिक पूंजीगत व्यय के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भी बरकरार रहेगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7 फीसदी से अधिक रह सकती है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि दर 7.8 फीसदी रही थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय 28 नवंबर को दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़े जारी कर सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 1 अक्टूबर को संपन्न अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को पहले के 6.7 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया है। आरबीआई ने कहा था कि सितंबर तिमाही में घरेलू आर्थिक गतिविधि में गति बनी हुई है।
अधिकतर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अनुकूल आधार प्रभाव और कम अपस्फीति दर, जिसने पहली तिमाही में वृद्धि दर को बढ़ावा दिया था, उसका असर दूसरी तिमाही में भी बना रह सकता है। भारतीय निर्यात पर अमेरिका में शुल्क 27 अगस्त से बढ़कर 50 फीसदी हो गया मगर दूसरी तिमाही में इसका पूरा प्रभाव नहीं दिखा। मगर अमेरिका जाने वाली माल की खेप पहली तिमाही की तुलना में कम हुई है। माल एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में कटौती का पूरा प्रभाव दूसरी तिमाही में नहीं दिखेगा क्योंकि नई दरें 22 सितंबर को लागू हुई थीं।
आईडीएफसी बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही में दोपहिया और ट्रैक्टरों की बिक्री में तेजी से ग्रामीण बाजारों में सुधार का संकेत दिख रहा है।
केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने दूसरी तिमाही के लिए 7.2 फीसदी जीडीपी वृद्धि का अनुमान जाहिर किया। उन्होंने कहा कि उच्च टैरिफ के बावजूद गैर-पेट्रोलियम और गैर-कृषि क्षेत्रों में भारत से अमेरिका को निर्यात रफ्तार में है। उन्होंने कहा कि पूंजीगत व्यय के लिए भारी आवंटन के कारण निर्माण क्षेत्र में मजबूती बरकरार रहने की उम्मीद है।
इंडिया रेटिंग्स के सहायक निदेशक पारस जसराय ने दूसरी तिमाही के लिए 7.2 फीसदी जीडीपी वृद्धि का अनुमान जाहिर किया। उन्होंने कहा कि घरेलू मांग में मजबूती के कारण अर्थव्यवस्था मुश्किल हालात से उम्मीद से बेहतर तरीके से उबर रही है। उन्होंने कहा कि अनिश्चितता के माहौल में निवेश मांग को रफ्तार देने में सरकार के पूंजीगत व्यय की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण दिख रही है।
सेनगुप्ता ने कहा कि उच्च टैरिफ श्रम की अधिकता वाले एमएसएमई क्षेत्र को प्रभावित करेंगे। इसका वस्तुओं के कुल निर्यात में 45 फीसदी योगदान है। इससे 12 महीने की अवधि में वास्तविक जीडीपी वृद्धि में 1 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।