भारत-पश्चिम एशिया-यूरोपीय आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) चीन के विवादास्पद बेल्ट ऐंड रोड परियोजना से मुकाबले के लिए भारत को पश्चिम एशिया एवं यूरोप से जोड़ने की परियोजना है। इसे समुद्री एवं भूमि कनेक्टिविटी के जरिये स्थापित किया जाएगा। इससे भारत को इसी तरह की उन पिछली परियोजनाओं के हुए नुकसान की भरपाई करने में भी मदद मिलेगी जो भू-राजनीतिक तनाव का शिकार हो गई थीं।
आईएमईसी में दो अलग-अलग गलियारे होंगे। पूर्वी गलियारा भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा जबकि उत्तरी गलियारा अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा। इसमें रेल मार्ग को भी शामिल किया गया है जो मौजूदा समुद्री एवं सड़क परिवहन मार्गों के पूरक के तौर पर भरोसेमंद सीमापार परिवहन के लिए जहाज-रेल ट्रांजिट नेटवर्क उपलब्ध कराएगा। इसके जरिये परिवहन लागत भी अपेक्षाकृत कम होगी। इससे भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजरायल एवं यूरोप के बीच वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित होगी।
इसे इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) पर अपने घाटे को कम करने के लिए नई दिल्ली द्वारा उठाए गए एक कदम के रूप में भी देखा जा सकता है। आईएनएसटीसी रूस एवं यूरोप तक शिपमेंट में लगने वाले समय को कम करने और मध्य एशियाई बाजारों तक पहुंचने के लिए भारत की प्रमुख योजना थी। इसमें दक्षिण में ईरान के चाबहार बंदरगाह से लेकर उत्तर में अजरबैजान से होते हुए रूस और यूरोप तक हजारों किलोमीटर लंबे सभी मौसम के अनुकूल राजमार्ग शामिल हैं।
यह मार्ग आसपास के राष्ट्रमंडल देशों तक बेहतर कनेक्टिविटी एवं व्यापार सुनिश्चित करने के लिए भारत के प्रयासों का भी हिस्सा है। मगर अपनी स्थापना के बाद से ही ईरान के रेगिस्तान से होकर रूस तक 7,200 किलोमीटर लंबे वैकल्पिक व्यापार मार्ग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
इस मार्ग के जरिये रूस के साथ भारत का व्यापार बढ़ा है, मगर सड़क के जरिये यूरोपीय बाजारों तक पहुंचने के लिए इसकी उपयोगिता अभी पूरी नहीं हुई है।
कूटनीतिक कारण जो भी हों, मगर उद्योग के विशेषज्ञों एवं विश्लेषकों का मानना है कि भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच स्थापित होने वाला यह गलियारा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश एवं कारोबारी अवसरों पर जबरदस्त प्रभाव डालेगा।
केईसी इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी विमल केजरीवाल का मानना है कि इससे नए कारोबारी अवसर पैदा होंगे।