प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
केंद्र सरकार ने आईआरईएल से जापान के साथ दुर्लभ खनिजों के निर्यात से संबंधित 13 साल पुराने समझौते को विराम देने के लिए कह दिया है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर चीन द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद अपनी घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को यह निर्देश दिया है। सात दुर्लभ धातुओं (आरईएम) और दुर्लभ मैग्नेट पर चीनी प्रतिबंधों ने भारतीय ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को अनिश्चितता की स्थिति में धकेल दिया है। इससे यहां उनका उत्पादन और आपूर्ति बाधित हो रही है।
चीन और अमेरिका ने 2024 में क्रमशः दुनिया के दुर्लभ तत्वों (आरईई) का लगभग 70 प्रतिशत और 11.5 प्रतिशत उत्पादन किया। म्यांमार ने लगभग 31000 मीट्रिक टन (दुनिया के आरईई उत्पादन का 8 प्रतिशत) निकाला। हालांकि इसके आरईई भंडार के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिली थी। भारत ने अपने 69 लाख टन के भंडार में से 2024 में 2900 टन का खनन किया।
भारत का आरईएम का आयात वित्त वर्ष 20 में 474 टन से बढ़कर वित्त वर्ष 25 में दोगुना से अधिक 1064 टन हो गया है। ऐसे आयात में चीन की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 23 में जहां 92 प्रतिशत थी, वह घटकर वित्त वर्ष 25 में लगभग 62 प्रतिशत ही रह गई। हालांकि, जापान और हॉन्गकॉन्ग की हिस्सेदारी बढ़ने का कारण चीन की हिस्सेदारी कम होना रहा है। आरईएम के कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों का आयात वित्त वर्ष 20 में 1375 टन से घटकर वित्त वर्ष 25 में 786 टन हो गया है। इन आयात में चीनी हिस्सेदारी वित्त वर्ष 20 में 31.56 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में दोगुनी से अधिक 71.82 प्रतिशत हो गई, लेकिन वित्त वर्ष 25 में यह 54.45 प्रतिशत तक गिर गई।