बीते संवत 2081 के दौरान रुपये पर दबाव बना रहा। इस अवधि में डॉलर के मुकाबले उसमें 4.36 फीसदी तक की गिरावट आई। यह गिरावट मुख्य तौर पर वैश्विक व्यापार से जुड़ी चिंताएं बढ़ने से आई। भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी शुल्क लागू होने से (जिससे कुछ सेक्टर में प्रभावी शुल्क 50 प्रतिशत तक बढ़ गए) भारतीय बाजारों के प्रति निवेशकों की धारणा कमजोर पड़ी।
भारत, चीन और एशिया के अन्य देशों पर लागू इस शुल्क वृद्धि ने वैश्विक व्यापार को बाधित किया। इस कारण जोखिम बढ़ने से रुपये सहित उभरते बाजारों की मुद्राएं कमजोर हुईं। इसके अलावा बढ़ते चालू खाता घाटे और कम होते विदेशी निवेश प्रवाह की चिंताओं ने दबाव और बढ़ा दिया।
विदेशी पूंजी निकासी के कारण संवत के दौरान घरेलू मुद्रा रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई। एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, ‘साल भर रुपया लगातार दबाव में रहा। पहले अमेरिकी चुनाव, फिर टैरिफ की वजह से। विदेशी पूंजी निकासी के कारण भी रुपये में भारी गिरावट आई।’उन्होंने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने तीनों बाजारों में हस्तक्षेप किया, जिससे रुपया 89 प्रति डॉलर से पार नहीं गया।’
अत्यधिक अस्थिरता से निपटने के लिए आरबीआई ने कई बार हस्तक्षेप किया, विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर बेचे और रुपये को और अधिक गिरने से रोकने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल किया। इन हस्तक्षेपों के बावजूद रुपया सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक रहा।
दूसरी ओर, आरबीआई के ब्याज दरों में कुल 100 आधार अंक (बीपीएस) की कटौती करने से सरकारी बॉन्ड बाजार में वर्ष के दौरान अधिक सकारात्मक रुझान देखा गया। इस दौरान बेंचमार्क 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल में 33 आधार अंकों की गिरावट आई।
वर्ष की शुरुआत में, मुद्रास्फीति और जीडीपी से जुड़ी चिंताओं के कारण बॉन्ड प्रतिफल में तेजी देखी गई। हालांकि, जैसे-जैसे मुद्रास्फीति धीरे-धीरे कम हुई, डेट बाजार में अधिक उदार नीतिगत रुख अपनाए जाने की उम्मीदें बनने लगीं। केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कटौती सुनिश्चित करने के लिए नकदी से जुड़े विभिन्न साधनों का इस्तेमाल किया।
शुरुआत में, सभी परिपक्वता अवधियों के सरकारी बॉन्डों के प्रतिफल में गिरावट का दबाव रहा, जो नीतिगत दरों में कटौती, आरबीआई द्वारा नकदी डालने और घरेलू निवेशकों की मजबूत मांग के कारण बढ़ा। तिमाही के दौरान आरबीआई ने ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) के जरिये 2.4 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की जिससे बैंकों को ट्रेजरी लाभ दर्ज करने में मदद मिली।
एक प्राथमिक डीलरशिप के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘बॉन्ड यील्ड मुख्य रूप से ब्याज दरों में कटौती, तरलता बढ़ाने और कम मुद्रास्फीति के कारण नीचे की ओर थी।’ अधिकारी ने कहा, ‘दूसरी तिमाही में आपूर्ति पर कुछ दबाव था, जिसे भी दूर किया गया।’
पहली तिमाही के दौरान बेंचमार्क 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड में लगभग 20 आधार अंक की गिरावट आई जो लगभग 6.58 प्रतिशत से घटकर 6.38 प्रतिशत रह गई। जून में आरबीआई के नीतिगत कदम से पहले ही यील्ड में सबसे तेज गिरावट आई। एक समय तो यील्ड 6.24 प्रतिशत तक पहुंच गया था, जो बॉन्ड पोर्टफोलियो के लिए खासे मार्क-टू-मार्केट लाभ का संकेत था।