सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि कारोबार में अस्थायी रुकावट का मतलब कारोबारी गतिविधियों का बंद होना नहीं है और इसलिए कारोबार का खर्च तथा अप्रयुक्त मूल्यह्रास लागत का दावा किया जा सकता है।
17 अक्टूबर को एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक कंपनी कारोबार फिर से शुरू करने और अपने बताए गए व्यापार के लिए प्रयास में लगी रहती है, तब तक वह कंपनी कर के मकसद से ‘कारोबार में’ बनी रहती है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऑयल ड्रिलिंग कंपनी प्राइड फोरमर एसए के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसने कर निर्धारण वर्ष 1996-97, 1997-98 और 1999-2000 के लिए कारोबार के खर्च और अप्रयुक्त मुल्यह्रास लागत का दावाा किया था।
न्यायालय ने कहा, ‘वैश्विकरण के इस दौर में, जिसके लिए अंतर-राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य नितांत आवश्यक है, उच्च न्यायालय (उत्तराखंड) की यह सख्त व्याख्या कि कोई ऐसी बाहरी कंपनी, जो अपने विदेशी कार्यालय से किसी भारतीय कंपनी के साथ कारोबारी संपर्क कर रही है, उसे भारत में कारोबार करने वाला नहीं माना जा सकता – यह देश की सीमाओं के पार ‘कारोबारी सुगमता’ से जुड़े सतत विकास लक्ष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता से पूरी तरह अलग है।’
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और जॉयमाल्या बागची के दो न्यायाधीशों वाले पीठ ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया। इस फैसले में दावों को खारिज कर दिया गया था और आय कर अपील पंचाट (आईटीएटी) की राय को सही ठहराया गया था।