रियल एस्टेट क्षेत्र की गतिविधियों के लिए बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) की इजाजत देने के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के प्रस्ताव को बड़ा बदलाव माना जा रहा है, जहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति है। यह ऐसा बदलाव है, जो भारतीय डेवलपरों के पूंजी तकपहुंचने और उसे प्रबंधित करने के तरीके को बदल सकता है।
विधिसम्मत निर्माण और विकास परियोजनाओं के लिए विदेशी कर्ज का रास्ता खोलने वाली इस मसौदा रूपरेखा से लंबे समय से चली आ रही फंडिंग की दिक्कतों को कम करने, उधार लेने की लागत कम करने और देश भर में प्रॉपर्टी के क्षेत्र में रुकी हुई परियोजनाओं के फिर से सक्रिय होने की उम्मीद है।
विशेषज्ञों का कहना है कि तीन दशकों से भी ज्यादा वक्त से देश का का रियल एस्टेट क्षेत्र विदेशी वाणिज्यिक उधारी से कटा रहा है, खास तौर पर जमीन के अत्यधिक जोखिम उठाकर पैसा कमाने वाले सौदों और मुद्रा संबंधी जोखिम की चिंताओं के कारण।
कानूनी विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि यह कदम नीति में बुनियादी बदलाव को दर्शाता है। एजेडबी ऐंड पार्टनर्स के वरिष्ठ साझेदार हरदीप सचदेवा ने कहा कि आरबीआई की यह मसौदा रूपरेखा भारत की बाहरी ऋण नीति में बड़े बदलाव का इंगित करती है।
सचदेवा ने बताया, ‘रियल एस्टेट कारोबार’ और ‘निर्माण-विकास’ के बीच का अंतर बहुत जरूरी है।’ उन्होंने कहा, ‘भारत की प्रत्यक्ष विदेशी निवश नीति के तहत अचल संपत्ति में व्यापार और जमीन से अत्यधिक जोखिम उठाकर पैसा कमाने पर रोक है, लेकिन निर्माण-विकास में स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत एफडीआई की इजाजत है। ईसीबी की यह मसौदा रूपरेखा इसी सीमा को दर्शाती है, जिससे यह पक्का होता है कि बाहारी उधारी, अधिक जोखिम उठाकर पैसा कमाने वाली लैंड बैंकिंग के बजाय उत्पादक, परिसंपत्ति सृजन गतिविधि में जाए।’