प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
देश में उपभोग में सुधार के संकेत साफ नजर आने लगे हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही के 6 प्रतिशत से बढ़ कर 7 प्रतिशत हो गया। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में निजी अंतिम उपभोग व्यय पांच तिमाही के निचले स्तर पर आ गया था।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि निजी उपभोग में यह तेजी देश की अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर खपत में सुधार का संकेत हो सकता है।
शुक्रवार को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में निजी अंतिम उपभोग व्यय की हिस्सेदारी 60.3 प्रतिशत रही। यह पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में 58.3 प्रतिशत थी।
इंडिया रेटिंग्स में सहायक निदेशक पारस जसराय का कहना है, ‘एफएमसीजी क्षेत्र में बिक्री चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में बढ़कर 6 प्रतिशत हो गई, जो वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में 5 प्रतिशत रही थी। ग्रामीण इलाकों ने लगातार छह तिमाहियों तक शहरी क्षेत्रों को एफएमसीजी बिक्री के लिहाज से पीछे छोड़ दिया था। हालांकि दोनों क्षेत्रों में एफएमसीजी उत्पादों की कुल बिक्री में अंतर अब कम हो रहा है।’
जसराय ने कहा, ‘इसके अलावा, आयात में तेजी संपन्न लोगों द्वारा खर्च बढ़ाने की तरफ इशारा कर रही है। यह औपचारिक क्षेत्र (निजी गैर-वित्तीय कंपनियां) में वास्तविक वेतन में मजबूत बढ़ोतरी से संभव हो पाया है। अप्रैल-जून तिमाही में औपचारिक क्षेत्र में वेतन बढ़ोतरी 7.4 प्रतिशत रही, जो पिछली आठ तिमाहियों में सर्वाधिक है। ग्रामीण वास्तविक वेतन वृद्धि भी लगातार चौथी तिमाही में मजबूत बनी रही।‘
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि आयकर में राहत, ब्याज दरों में 100 आधार अंक की कमी, खरीफ फसलों की अच्छी बोआई और जीएसटी कर संरचना में बदलाव से निजी उपभोग बढ़ने की संभावनाओं को ताकत मिली है। जीएसटी दरों में कमी की घोषणा के बाद लोग कुछ दिनों तक खरीदारी भले टाल देंगे मगर त्योहारों के अवसर पर वे जमकर खर्च कर सकते हैं। आंकड़ों से यह भी पता चला कि सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की। हालांकि, यह वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही की तुलना में दर्ज 9.4 प्रतिशत बढ़ोतरी से कम रही।
जीएफसीएफ को अर्थव्यवस्था में परोक्ष रूप से निवेश मांग के संकेत रूप में देखा जाता है। हालांकि, नॉमिनल जीडीपी के हिस्से के रूप में जीएफसीएफ पिछली तिमाही के 31 प्रतिशत से घट कर चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून अवधि में 30.4 प्रतिशत रह गया। जसरायने कहा, ‘केंद्र और 25 राज्य सरकारों द्वारा पहली तिमाही में पूंजीगत व्यय में 33.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे निवेश को लेकर दिलचस्पी जगाने में मदद मिली है।
निजी क्षेत्र में भी हलचल रही और इस बात का संकेत पहली तिमाही में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 9.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि से मिलता है। अब महत्त्वपूर्ण यह है कि सरकार मौजूदा वैश्विक आर्थिक हालात के बीच पूंजीगत व्यय की रफ्तार बनाए रखें और भविष्य के लिए भी अभी से पूंजीगत व्यय योजनाओं को आगे बढ़ाना शुरू कर दे।‘
सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (जीएफसीई) में द्वारा दर्शाए जाने वाले सरकारी खर्च में भी पहली तिमाही के दौरान 7.4 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की, जबकि पिछली तिमाही में यह बढ़ने के बजाय कम हो गई थी।